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पारिवारिक कानून

शून्य विवाह

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 20-Oct-2023

परिचय

  • शून्य शब्द का अर्थ है अकृत या जो कानूनी रूप से अप्रभावी है।
  • एक शून्य विवाह शुरुआत से ही अमान्य होता है, आमतौर पर कानून के तहत ऐसा माना जाता है कि इसका कभी अस्तित्व ही नहीं था।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 5 के तहत, विवाह को वैध होने के लिये कुछ शर्तों को पूरा करना होगा; यदि ये शर्तें पूरी नहीं होती हैं, तो विवाह को शून्य माना जाता है।

शून्य विवाह

  • हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA) की धारा 11 शून्य विवाह के प्रावधान से संबंधित है।
  • धारा 11 शून्य विवाह को परिभाषित नहीं करती है बल्कि वह आधार प्रदान करती है कि इसके आधार पर विवाह को शून्य कहा जा सकता है।
    • धारा 11: शून्य विवाह - इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् अनुष्ठापित कोई भी विवाह यदि वह धारा 5 के खंड (i), (iv) और (v) में निर्दिष्ट शर्तों में से किसी एक का भी उल्लंघन करता हो तो अकृत और शून्य होगा और विवाह के किसी पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार के विरुद्ध उपस्थापित अर्जी पर अकृतता की डिक्री द्वारा ऐसा घोषित किया जा सकेगा।

आधार

  • हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA) के तहत कोई भी विवाह शून्य है यदि वह धारा 5 के खंड (i), (iv) और (v) के तहत उल्लिखित शर्तों को पूरा नहीं करता है।
    • धारा 5 के खंड (i) के तहत विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से, न तो वर की कोई जीवित पत्नी हो और न ही वधू का कोई जीवित पति हो।
    • धारा 5 के खंड (iv) के तहत जब तक कि दोनों पक्षकारों में से हर एक को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा से उन दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हो, वे प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियों के के भीतर न हों।
    • धारा 5 के खंड (v) के तहत जब तक कि दोनों पक्षकारों में से हर एक को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा से उन दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हो, जब तक वे एक दूसरे के सपिंड न हों।

ऐसी स्थितियाँ जो विवाह को शून्य बनाती हैं

  • विवाह के समय एक अन्य पति/पत्नी का जीवित रहना
    • द्विविवाह शब्द का अर्थ एक व्यक्ति के साथ विवाह करने की क्रिया है, जबकि वह कानूनी रूप से दूसरे व्यक्ति से विवाहित है।
      • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5(i) कहती है कि विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से, न तो वर की कोई जीवित पत्नी हो और न ही वधू का कोई जीवित पति हो।
  • लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2000) मामले में, उच्चतम न्यायालय (SC) ने कहा कि जब एक हिंदू पति या पत्नी ऐसे धर्म का पालन करने के आशय से पुनर्विवाह करने के लिये अपना धर्म परिवर्तित करते हैं, जो केवल एक गुप्त उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये हो, तो दूसरा विवाह शून्य होगा। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन है।
  • श्रीमती यमुनाबाई बनाम अनंत राव (1988) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दूसरे विवाह की पत्नी को पत्नी नहीं माना जा सकता क्योंकि ऐसा विवाह प्रारंभ से ही अमान्य है, और वह CrPC (दंड प्रक्रिया संहिता, 1973) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है।
  • प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्री
    • हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA)की धारा 3(g) के अनुसार, दो व्यक्ति प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियों के भीतर कहे जाते हैं -
      • यदि एक उनमें से दूसरे का पारंपरिक पूर्वपुरुष है; या
      • यदि एक उनमें से दूसरे के पारंपरिक पूर्वपुरुष या वंशज की पत्नी या पति रहा हो; या
      • यदि एक उनमें से दूसरे के भाई की या पिता अथवा माता के भाई को या पितामह अथवा पितामही के भाई की या मातामह अथवा मातामही के भाई की पत्नी रही हो; या
      • यदि वे भाई-बहन, ताया, चाचा और भतीजी, मामा, और भांजी, फूफी और भतीजा, मौसी और भांजा, या भाई-बहन के अपत्य, भाई-भाई के अपत्य अथवा बहिन-बहिन के अपत्य हों।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA) की धारा 5(iv) के अनुसार, प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्री के भीतर विवाह शून्य है।
    • धारा 5(iv) में यह भी उल्लेख है कि यदि विवाह के प्रत्येक पक्षकार रीति-रिवाज या प्रथागत ऐसे विवाह की अनुमति देते हैं, तो विवाह को वैध विवाह माना जाएगा।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA) की धारा 18(b) ऐसे विवाह के पक्षकारों को साधारण कारावास से दंड का प्रावधान करती है, जिसे एक माह तक बढ़ाया जा सकता है या अर्थ दंड, जिसे 1000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
  • सपिंड
    • हिंदू विधि के अनुसार, जब दो व्यक्ति एक ही पूर्वपुरुष को पिंड अर्पित करते हैं तो इसे सपिंड नातेदारी कहा जाता है। सपिंड नातेदारी वह नातेदारी है जो सामान रक्त संबंध की होती है।
    • सपिंड नातेदारी में यदि कोई व्यक्ति विवाह करता है, तो उसका विवाह शून्य कहा जाता है।
    • हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA) की धारा 3(f) के अनुसार, सपिंड का अर्थ निम्नलिखित है:
      • ‘सपिंड नातेदारी’ जब निर्देश किसी व्यक्ति के प्रति हों तो माता के माध्यम से उसकी ऊपरली ओर की परंपरा में तीसरी पीढी तक (जिसके अंतर्गत तीसरी पीढी भी आती है), और उसकी ऊपरली ओर की परंपरा में पाँचवीं पीढी तक (जिसके अंतर्गत पाँचवीं पीढी भी आती है) जाती है, हर एक दशा में वंश परंपरा संपृक्त व्यक्ति, जिसे पहली पीढ़ी का गिना जाएगा,ऊपर की ओर चलेगी।
      • दो व्यक्ति एक-दूसरे के सपिंड तब कहे जाते हैं, जबकि या तो एक उसमें से दूसरे का सपिंड नातेदारी की सीमाओं के भीतर पूर्वपुरुष हो जबकि उनका ऐसा कि एक ही पारंपरिक पूर्वपुरुष, जो निर्देश उनमें से जिस किसी के भी प्रति हों, सपिंड नातेदारी की सीमाओं के भीतर हो;
    • हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA) की धारा 5(v) के आधार पर, सपिंड के भीतर विवाह शून्य है।
      • धारा 5(iv) में यह भी उल्लेख है कि जब तक कि दोनों पक्षकारों में से हर एक को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा से उन दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हो, जब तक वे एक दूसरे के सपिंड न हों।
    • हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA) की धारा 18(b) ऐसे विवाह के लिये पक्षकारों को साधारण कारावास से दंडित करती है जिसे एक माह तक बढ़ाया जा सकता है, या अर्थदंड जिसे 1000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

शून्य विवाह का प्रभाव

  • शून्य विवाह में पक्षकारों को पति और पत्नी का स्थान नहीं मिलता है।
  • शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे, हिंदू विवाह अधिनियम, (HMA) की धारा 16, के अनुसार वैध हैं।
    • उच्चतम न्यायालय ने रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2023) के मामले में पुष्टि की है कि शून्य या अकृत विवाह से पैदा हुए बच्चे को मिताक्षरा कानून के तहत हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) में अपने माता-पिता की संपत्ति के हिस्से में हिस्सेदारी का दावा करने का अधिकार है।
      • हालाँकि, इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ऐसे बच्चे को जन्म से हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) में स्वायत्त रूप से सह्दायिक नहीं माना जा सकता है।
  • एक शून्य विवाह में कोई पारस्परिक अधिकार और दायित्व मौज़ूद नहीं हैं।