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आपराधिक कानून

दण्ड न्यायालयों की अधिकारिता

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 03-Apr-2024

परिचय:

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के अध्याय XIII में निहित धारा 177 से 189 जाँच और विचारणों में दण्ड न्यायालयों की अधिकारिता से संबंधित है।

  • CrPC के अध्याय XIII का अनुप्रयोग:
  • यह जाँच और विचारणों पर लागू होता है।
  • यह CrPC के अध्याय VIII, अध्याय IX और अध्याय X के तहत की गई कार्यवाही पर लागू नहीं होता है।

विधिशास्त्रीय सार:

  • देश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक के आकार एवं दूरी के संबंध में यह समीचीन व वांछनीय होगा कि जाँच और विचारण आमतौर पर अपराध के आसपास के क्षेत्र में होने चाहिये।
  • किसी अपराध की जाँच एवं विचारण का स्थान मुख्य रूप से शिकायत या पुलिस रिपोर्ट (आरोप पत्र) में दिये गए दावे से निर्धारित होता है कि अपराध कहाँ और कैसे किया गया था।
  • इसके विपरीत किसी भी साक्ष्य के अभाव में, यह माना जाता है कि न्यायालय के पास अभिकथन द्वारा बनाए गए तथ्यों के आधार पर अधिकार क्षेत्र है।
  • यदि अधिकारिता का प्रश्न उत्पन्न होता है, तो उस प्रश्न का निर्णय लेने के बाद ही विचारण शुरू किया जा सकता है।

CrPC की धारा 177:

  • इस धारा में कहा गया है कि प्रत्येक अपराध की जाँच और विचारण मामूली तौर पर ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर वह अपराध किया गया है।
  • इस धारा में आई अभिव्यक्ति "स्थानीय अधिकारिता" को CrPC की धारा 2 (j) में परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है किसी न्यायालय या मजिस्ट्रेट के संबंध में, वह स्थानीय क्षेत्र जिसके भीतर न्यायालय या मजिस्ट्रेट संहिता के तहत अपनी सभी या किसी शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
  • सम्राट बनाम गंगा (1912) के मामले में, यह माना गया कि न्यायालय की अधिकारिता उस अपराध की सुनवाई करना है जिसके लिये CrPC की धारा 177 के तहत संज्ञान लिया गया है और न्यायालय की अधिकारिता न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिता में किसी भी बाद के परिवर्तन से अप्रभावित रहेगी।

CrPC की धारा 178:

  • यह धारा जाँच और विचारण के स्थान से संबंधित है।
  • इस धारा में कहा गया है कि निम्नलिखित मामलों में ऐसे किसी भी स्थानीय क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय द्वारा अपराध की जाँच या विचारण चलाया जा सकता है:
    • जहाँ यह अनिश्चित है कि कई स्थानीय क्षेत्रों में से किसमें अपराध किया गया है।
    • जहाँ अपराध अंशत: एक स्थानीय क्षेत्र में और अंशत: किसी दूसरे में किया गया है।
    • जहाँ अपराध चालू रहने वाला है और उसका किया जाना एक से अधिक स्थानीय क्षेत्रों में चालू रहता है।
    • जहाँ वह विभिन्न स्थानीय क्षेत्रों में किये गए कई कार्यों से मिलकर बनता है, वहाँ उसकी जाँच या विचारण ऐसे स्थानीय क्षेत्रों में से किसी पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।

CrPC की धारा 179:

  • यह धारा अपराध वहाँ विचारणीय होगा जहाँ कार्य किया गया या जहाँ परिणाम निकला, विचारणीय अपराध से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जब कोई कार्य किसी की गई बात के और किसी निकले हुए परिणाम के कारण अपराध है तब ऐसे अपराध की जाँच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसी बात की गई या ऐसा परिणाम निकला।

CrPC की धारा 180:

  • यह धारा विचारण के स्थान से संबंधित है जहाँ कार्य अन्य अपराध से संबंधित होने के कारण अपराध है।
  • इसमें कहा गया है कि जब कोई कार्य किसी ऐसे अन्य कार्य से संबंधित होने के कारण अपराध है, जो स्वयं भी अपराध है या अपराध होता यदि कर्त्ता अपराध करने के लिये समर्थ होता, तब प्रथम वर्णित अपराध की जाँच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर उन दोनों में से कोई भी कार्य किया गया है।

CrPC की धारा 181:

  • यह धारा कुछ अपराधों की दशा में विचारण का स्थान से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
    (1)  ठगी होने के, या ठग द्वारा हत्या के, डकैती के, हत्या सहित डकैती के, डकैतों की टोली का होने के, या अभिरक्षा से निकल भागने के किसी अपराध की जाँच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत अपराध किया गया है या अभियुक्त व्यक्ति मिला है।
    (2) किसी व्यक्ति के व्यपहरण या अपहरण के किसी अपराध की जाँच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत वह व्यक्ति व्यपहृत या अपहृत किया गया या ले जाया गया या छिपाया गया या निरुद्ध किया गया है।
    (3) चोरी, उद्दापन या लूट के किसी अपराध की जाँच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत ऐसा अपराध किया गया है या चुराई हुई संपत्ति को जो कि अपराध का विषय है उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा कब्ज़े में रखी गई है जिसने उस संपत्ति को चुराई हुई संपत्ति जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए प्राप्त किया या रखे रखा।
    (4) आपराधिक दुर्विनियोग या आपराधिक न्यासभंग के किसी अपराध की जाँच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत अपराध किया गया है या उस संपत्ति का, जो अपराध का विषय है, कोई भाग अभियुक्त व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया गया या रखा गया है अथवा उसका लौटाया जाना या लेखा दिया जाना अपेक्षित है।
    (5) किसी ऐसे अपराध की, जिसमें चुराई हुई संपत्ति का कब्ज़ा भी है, जाँच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत ऐसा अपराध किया गया है या चुराई हुई संपत्ति किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा कब्ज़े में रखी गई है, उसने उसे चुराई हुई जानते हुए या विश्वास करने का कारण होते हुए प्राप्त किया या रखे रखा।

CrPC की धारा 182:

  • यह धारा पत्रों, आदि द्वारा किये गए अपराध से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -
    (1) किसी ऐसे अपराध की, जिसमें छल करना भी है, जाँच या उनका विचारण, उस दशा में जिसमें ऐसी प्रवंचना पत्रों या दूरसंचार संदेशों के माध्यम से की गई है ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसे पत्र या संदेश भेजे गए हैं या प्राप्त किये गए हैं तथा छल करने और बेईमानी से संपत्ति का परिदान उत्प्रेरित करने वाले किसी अपराध की जाँच या उनका विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर संपत्ति, प्रवंचित व्यक्ति द्वारा परिदत्त की गई है या अभियुक्त व्यक्ति द्वारा प्राप्त की गई है।
    (2) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45 ) की धारा 494 या धारा 495 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध की जाँच या उनका विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत अपराध किया गया है या अपराधी ने प्रथम विवाह की अपनी पत्नी या पति के साथ अंतिम बार निवास किया है या प्रथम विवाह की पत्नी अपराध के किये जाने के पश्चात् स्थायी रूप से निवास करती है।

CrPC की धारा 183:

  • यह धारा यात्रा या जलयात्रा में किये गए अपराध से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि यदि कोई अपराध उस समय किया गया है जब वह व्यक्ति, जिसके द्वारा, या वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध, या वह चीज़ जिसके बारे में वह अपराध किया गया, किसी यात्रा या जलयात्रा पर है, तो उसकी जाँच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता में होकर या उसके अंतर्गत वह व्यक्ति या चीज़ उस यात्रा या जलयात्रा के दौरान गई है।
  • "यात्रा या जलयात्रा" शब्द में खुले समुद्र या किसी अन्य देश की जलयात्रा शामिल नहीं होती है।

CrPC की धारा 184:

  • यह धारा एक साथ विचारणीय अपराधों के लिये विचारण का स्थान से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि निम्नलिखित मामलों में किसी भी अपराध की जाँच या विचारण करने के लिये सक्षम न्यायालय द्वारा अपराधों की जाँच या विचारण चलाया जा सकता है।
    • किसी व्यक्ति द्वारा किये गए अपराध ऐसे हैं कि प्रत्येक ऐसे अपराध के लिये धारा 219, धारा 220 या धारा 221 के उपबंधों के आधार पर एक ही विचारण में उस पर आरोप लगाया जा सकता है और उसका विचारण किया जा सकता है।
    • कई व्यक्तियों द्वारा किया गया अपराध या किये गए अपराध ऐसे हैं कि उनके लिये उन पर धारा 223 के उपबंधों के आधार पर एक साथ आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है।

CrPC की धारा 185:

  • यह धारा विभिन्न सेशन खंडों में मामलों के विचारण का आदेश देने की शक्ति से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि इस अध्याय के पूर्ववर्ती उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार निदेश दे सकती है कि ऐसे किन्हीं मामलों का या किसी वर्ग के मामलों का विचारण, जो किसी ज़िले में विचारणार्थ सुपुर्द हो चुके हैं, किसी भी सेशन खंड में किया जा सकता है : परंतु यह तब जब कि ऐसा निदेश उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान के अधीन या इस संहिता के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन पहले ही जारी किये गए किसी निदेश के विरुद्ध नहीं है।

CrPC की धारा 186 

  • यह धारा संदेह की दशा में उच्च न्यायालय का वह ज़िला विनिश्चित करना जिसमें जाँच या विचारण होगा से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जहाँ दो या अधिक न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान कर लेते हैं और यह प्रश्न उठता है कि उनमें से किसे उस अपराध की जाँच या विचारण करना चाहिये, वहाँ वह प्रश्न-
    (a) यदि वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ हैं तो उस उच्च न्यायालय द्वारा;
    (b) यदि वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ नहीं हैं, तो उस उच्च न्यायालय द्वारा जिसकी अपीली दाण्डिक अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अंतर्गत कार्यवाही पहले प्रारंभ की गई है,
  • विनिश्चित किया जाएगा, और तब उस अपराध के संबंध में अन्य सब कार्यवाहियाँ समाप्त कर दी जाएँगी।

CrPC की धारा 187:  

  • यह धारा अपने स्थानीय अधिकारिता के परे किये गए अपराध के लिये समन या वारंट जारी करने की शक्ति से संबंधित है।
  • प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को अपनी अधिकारिता के भीतर किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई शुरू करने की शक्ति है, जिस पर उस अधिकारिता के बाहर किसी न्यायालय द्वारा विचारणीय अपराध करने का पर्याप्त संदेह है।
  • एक बार जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा उचित संदेह बन जाता है, तो मजिस्ट्रेट:
    • अपराध की ऐसे जाँच कर सकता है जैसे कि यह उसके स्थानीय अधिकारिता में किया गया हो।
    • ऐसे व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित होने के लिये बाध्य कर सकता है।
    • संदिग्ध व्यक्ति को ऐसे अपराध के विचारण की अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट के पास भेज सकता है।
    • यदि अपराध के विचारण की अधिकारिता एक से अधिक मजिस्ट्रेट के पास है, तो संबंधित उच्च न्यायालय में मामले की रिपोर्ट कर सकता है।
  • मजिस्ट्रेट को उन अपराधों के संबंध में ज़मानत देने की शक्ति होती है जो मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय नहीं होते हैं।
  • इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट को दी गई शक्ति संज्ञेय और असंज्ञेय दोनों अपराधों के संबंध में उपलब्ध होती है।

CrPC की धारा 188:  

  • यह धारा भारत से बाहर किया गया अपराध से संबंधित है।
  • यह धारा भारतीय नागरिकों और गैर-नागरिकों पर भी अतिरिक्त-क्षेत्रीय अधिकारिता प्रदान करती है।
  • इसमें कहा गया है कि जब कोई अपराध भारत से बाहर-
    (a) भारत के किसी नागरिक द्वारा चाहे खुले समुद्र पर या अन्यत्र; अथवा
    (b) किसी व्यक्ति द्वारा, जो भारत का नागरिक नहीं है, भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत या विमान पर, किया जाता है तब उस अपराध के बारे में उसके विरुद्ध ऐसी कार्यवाही की जा सकती है मानो वह अपराध भारत के अंदर उस स्थान में किया गया है, जहाँ वह पाया गया है।
  • परंतु इस अध्याय की पूर्ववर्ती धाराओं में से किसी बात के होते हुए भी, ऐसे किसी अपराध की भारत में जाँच या उसका विचारण केंद्रीय सरकार की पूर्व मंज़ूरी के बिना नहीं किया जाएगा।
  • सरताज खान बनाम उत्तराखंड राज्य (2022) मामले में यह माना गया था कि यदि कोई अपराध आंशिक रूप से भारत में किया जाता है और आंशिक रूप से भारत के बाहर किया जाता है, तो वह मामला संहिता की धारा 188 के दायरे में नहीं आएगा।

CrPC की धारा 189:  

  • यह धारा भारत के बाहर किये गए अपराधों के बारे में साक्ष्य लेना से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जब किसी ऐसे अपराध की, जिसका भारत से बाहर किसी क्षेत्र में किया जाना अभिकथित है, जाँच या विचारण धारा 188 के उपबंधों के अधीन किया जा रहा है तब, यदि केंद्रीय सरकार उचित समझे तो यह निदेश दे सकती है कि उस क्षेत्र में या उस क्षेत्र के लिये न्यायिक अधिकारी के समक्ष या उस क्षेत्र में या उस क्षेत्र के लिये भारत के राजनयिक या कौंसलीय प्रतिनिधि के समक्ष दिये गए अभिसाक्ष्यों की या पेश किये गए प्रदर्शों की प्रतियों को ऐसी जाँच या विचारण करने वाले न्यायालय द्वारा, किसी ऐसे मामले में साक्ष्य के रूप में लिया जाएगा जिसमें ऐसा न्यायालय ऐसी किन्हीं बातों के बारे में, जिनसे ऐसे अभिसाक्ष्य या प्रदर्श संबंधित हैं साक्ष्य लेने के लिये कमीशन जारी कर सकता है:
    • बयान की बनाई गईं प्रतियाँ।
    • प्रदर्शन प्रक्रिया पहले-
      • एक न्यायिक अधिकारी
      • उस क्षेत्र के लिये एक कांसुलर या राजनयिक प्रतिनिधि।