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आपराधिक कानून
पत्नी, बच्चों और माता-पिता की देखभाल
« »22-Nov-2023
परिचय:
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure- CrPC) की धारा 125 में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास अपना भरण-पोषण करने के लिये पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं, वह अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता का भरण-पोषण करने से इनकार नहीं कर सकता, यदि वे अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं हैं।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के अनुरक्षण के प्रावधान सभी धर्मों के व्यक्तियों पर लागू होते हैं और उन पक्षों के व्यक्तिगत कानूनों से इसका कोई संबंध नहीं है।
पत्नी का भरण-पोषण:
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 (1)(a) में प्रावधान है कि यदि पर्याप्त साधन रखने वाला कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, जो स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, की उपेक्षा करता है या उसका भरण-पोषण करने से इनकार करता है, तो ऐसे मामले में प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ऐसी उपेक्षा या इनकार के साक्ष्य के आधार पर, इनकार करने वाले व्यक्ति को ऐसी मासिक दर पर मासिक भत्ता देने का आदेश दे सकता है जो उसके लिये उचित हो।
- यहाँ पत्नी में वह महिला शामिल है जिसका अपने पति से तलाक हो रहा है या उसने तलाक ले लिया है तथा दोबारा विवाह नहीं किया है।
- धारा 125 (1)(a) के तहत 'पत्नी' का अर्थ कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और वह अवयस्क या वयस्क किसी भी आयु की हो सकती है।
- पत्नी को तीन मामलों में अपने पति से भत्ता प्राप्त करने की अनुमति नहीं है:
- यदि वह जारकर्म में जी रही है, या
- यदि वह बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इनकार कर देती है, या
- यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं।
- धारा 125(1)(a) के तहत कोई भी आदेश पारित करते समय यह ध्यान रखना होगा कि पति के पास पर्याप्त साधन उपलब्ध हों और यह भी कि पत्नी के पास अलग होने के बाद अपना भरण-पोषण करने के लिये पर्याप्त धन न हो।
- मामला लंबित रहने के दौरान न्यायालय द्वारा अंतरिम भरण-पोषण का आदेश भी पारित किया जा सकता है।
बच्चों का भरण-पोषण:
- धारा 125(1)(b) स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ बच्चे को भरण-पोषण प्रदान करने का प्रावधान करती है। यहाँ बच्चा धर्मज या अधर्मज हो सकता है, चाहे वह शादीशुदा हो या नहीं।
- धारा 125 (1)(c) धर्मज या अधर्मज बच्चे (विवाहित बेटी नहीं) के लिये भरण-पोषण का प्रावधान करती है, जो वयस्क हो गए हैं, लेकिन शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।
- बच्चे की उपेक्षा या उसके भरण-पोषण से इनकार करने के साक्ष्य के आधार पर मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को एक निर्दिष्ट दर पर मासिक भत्ता देने का आदेश जारी करता है जिसे वह नामित करता है।
- हालाँकि मजिस्ट्रेट धारा 125(1)(b) में निर्दिष्ट अवयस्क लड़की के पिता को उसके वयस्क होने तक इस प्रकार का भत्ता देने का आदेश दे सकता है, यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि ऐसी अवयस्क लड़की (यदि वह विवाहित है) के पति के पास पर्याप्त साधन नहीं हैं।
- यहाँ ‘अवयस्क’ का मतलब उस व्यक्ति से है, जिसे भारतीय बहुमत अधिनियम, 1875 के प्रावधानों के तहत वयस्क नहीं माना जाता है।
- मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के लागू होने के बाद भी एक मुस्लिम अवयस्क लड़की अपने पिता से भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी।
- संहिता में चाइल्ड शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। इसका अर्थ है एक पुरुष या महिला व्यक्ति जो पूर्ण आयु (अर्थात् भारतीय बहुमत अधिनियम, 1875 द्वारा निर्धारित 18 वर्ष) तक नहीं पहुँचा है तथा जो किसी भी अनुबंध में प्रवेश करने या विधि के तहत किसी भी दावे को लागू करने में अक्षम है।
माता-पिता का भरण-पोषण:
- धारा 125(1)(d) उन पिता और माता को भरण-पोषण का प्रावधान करती है जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।
- एक मजिस्ट्रेट, पर्याप्त साधनों वाले किसी व्यक्ति की ओर से इनकार या उपेक्षा के साक्ष्य पर, उसके द्वारा निर्धारित पूर्व निश्चित दर पर मासिक भत्ते के भुगतान का आदेश दे सकता है तथा इस भत्ते का भुगतान समय-समय पर मजिस्ट्रेट के माध्यम से किया जाएगा।
- बेटी चाहे विवाहित हो या अविवाहित, माता-पिता के भरण-पोषण के लिये भी उत्तरदायी होगी क्योंकि भारतीय समाज माता-पिता के भरण-पोषण का दायित्व बच्चों पर डालता है तथा यह सामाजिक दायित्व बेटी पर भी समान रूप से लागू होता है।
- संहिता की धारा 125 स्पष्ट रूप से यह नहीं बताती है कि 'पिता' या 'माँ' में 'दत्तक पिता' (Adoptive Father) या 'दत्तक माँ' या 'सौतेला पिता' (Step Father) या 'सौतेली माँ' शामिल हैं।
- हालाँकि 'माँ' में 'सौतेली माँ' शामिल नहीं होगी, हालाँकि एक निःसंतान सौतेली माँ, संहिता की धारा 125 के तहत अपने सौतेले बेटे से भरण-पोषण का दावा कर सकती है, बशर्ते कि वह विधवा हो या उसका पति, जीवित होने पर भी उसका समर्थन व भरण-पोषण करने में असमर्थ हो। और यदि महिला के अकृत्रिम संतान (Natural Born) बेटे-बेटियाँ हैं व उसका पति जीवित है तथा कमाने में सक्षम है तो वह अपने सौतेले बेटे से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती।
- यदि महिला के दो या दो से अधिक बच्चे हैं तो माता-पिता, उनमें से किसी एक या अधिक से अलग रहने के लिये, स्थान या स्थानों का उपाय ढूँढ सकते हैं।
- धारा 125 माँ को पिता या पुत्र और पुत्री, जैसा भी मामला हो, को भरण-पोषण देने के लिये बाध्य नहीं करती है।
भरण-पोषण के लिये आवश्यक शर्तें:
- भरण-पोषण के लिये पर्याप्त साधन: जिस व्यक्ति से भरण-पोषण का दावा किया गया है उसके पास भरण-पोषण का दावा करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के भरण-पोषण के लिये पर्याप्त साधन उपलब्ध होने चाहिये। 'पर्याप्त साधन' शब्द वास्तविक आर्थिक संसाधनों तक ही सीमित नहीं होना चाहिये, बल्कि इसका संदर्भ उपार्जन सामर्थ्य से भी होना चाहिये।
- भरण-पोषण की उपेक्षा या इनकार: इस स्थिति में यह सिद्ध करना होगा कि जिस व्यक्ति से भरण-पोषण का दावा किया गया है, उसने भरण-पोषण का दावा करने वाले व्यक्ति की उपेक्षा की है या उसे भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया है।
- भरण-पोषण का दावा करने वाला व्यक्ति अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ होना चाहिये: भरण-पोषण का भुगतान करने की आवश्यकता केवल उन व्यक्तियों के संबंध में होनी चाहिये जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।
भरण-पोषण की प्रक्रिया:
CrPC की धारा 126 'भरण-पोषण की प्रक्रिया' से संबंधित है।
- धारा 125 के तहत कार्यवाही उस ज़िले में की जा सकती है:
- जहाँ वह रहता है, या
- जहाँ वह या उसकी पत्नी रहती है, या
- जहाँ वह आखिरी बार अपनी पत्नी या अधर्मज बच्चे की माँ के साथ रहता था।
- साक्ष्य उस व्यक्ति की उपस्थिति में लिया जाना चाहिये जिसके विरुद्ध भरण-पोषण का आदेश दिया जाना है।
- यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर समन से बच रहा है तो उस स्थिति में एक पक्षीय साक्ष्य लिया जाता है।
भत्ते में परिवर्तन:
- CrPC की धारा 127 'भत्ते में परिवर्तन' (Alteration in Allowance) का प्रावधान करती है। परिवर्तन (Alteration) का अर्थ मासिक भत्ते में परिवर्तन से है, यानी पक्षों की शर्तों में बदलाव के अनुसार, यह घट या बढ़ सकता है।
- धारा 127(1) के अनुसार, यदि कोई मजिस्ट्रेट उस समय पक्षकारों की शर्तों के अनुसार धारा 125 के तहत भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश देता है, लेकिन यदि पक्षकारों की वर्तमान स्थितियाँ बदल गई हैं, तो वह भत्ते में परिवर्तन का भी आदेश दे सकता है।
- धारा 127(2) के अनुसार, मजिस्ट्रेट धारा 125 के तहत दिये गए किसी भी आदेश को रद्द कर देगा, यदि ऐसा प्रतीत होता है कि सक्षम सिविल कोर्ट के किसी निर्णय के परिणामस्वरूप इसे रद्द किया जाना चाहिये।
- धारा 127(3) के अनुसार, जहाँ धारा 125 के तहत महिलाओं के पक्ष में कोई आदेश दिया गया है, तो मजिस्ट्रेट निम्नलिखित मामले में आदेश को रद्द कर सकता है:
- यदि कोई महिला तलाक के बाद दोबारा विवाह करती है।
- यदि किसी महिला ने तलाक के बाद किसी स्वीय विधि/पर्सनल लॉ के तहत भत्ता लिया है।
- यदि कोई महिला स्वेच्छा से भरण-पोषण के अधिकार का त्याग करती है।
- धारा 127(4) के अनुसार, सिविल कोर्ट किसी भी भरण-पोषण या दहेज की वसूली के लिये कोई डिक्री करते समय उस राशि को ध्यान में रखेगा जो धारा 125 के तहत भरण-पोषण और अंतरिम भरण-पोषण के लिये मासिक भत्ते के रूप में ऐसे व्यक्ति को भुगतान किया गया है।
भरण-पोषण के आदेश का प्रवर्तन:
- धारा 128 'भरण-पोषण के आदेश के प्रवर्तन' से संबंधित है।
- धारा 125 के तहत आदेश की एक प्रति उस व्यक्ति को निःशुल्क दी जाती है जिसके पक्ष में यह किया गया है। यदि आदेश बच्चों के पक्ष में है तो आदेश की प्रति बच्चों के संरक्षक (Guardian) को दी जाएगी।
- यदि किसी मजिस्ट्रेट ने धारा 125 के तहत कोई आदेश दिया है, तो भारत का कोई भी मजिस्ट्रेट इस आदेश को वहाँ लागू कर सकता है जहाँ भरण-पोषण देने वाला व्यक्ति रहता है।
- आदेश लागू करने से पहले मजिस्ट्रेट को दो शर्तें पूरी करनी होंगी:
- पक्षों की पहचान, और
- भत्तों का भुगतान न करने का प्रमाण।
निर्णयज़ विधि:
- सविताबेन सोमाभाई भाटिया बनाम गुजरात राज्य (2005):
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 को पत्नी के हित में अधिनियमित किया गया है तथा जो व्यक्ति धारा 125 की उपधारा (1)(a) के तहत लाभ प्राप्त करना चाहता है, उसे यह स्थापित करना होगा कि वह संबंधित व्यक्ति की पत्नी है।
- विकास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021):
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को भुगतान किये जाने वाले भरण-पोषण की राशि में बदलाव करने का अधिकार है, यदि उसे लगता है कि मासिक भत्ते का भुगतान करने या प्राप्त करने वाले व्यक्ति की परिस्थितियों में कोई परिवर्तन आया है।
- मो. अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (1985):
- उच्चतम न्यायालय की पीठ ने घोषणा की कि एक मुस्लिम तलाकशुदा महिला जो अपना भरण-पोषण नहीं कर सकती, वह पुनर्विवाह होने तक अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की हकदार है।
निष्कर्ष:
- यह प्रावधान सामाजिक लक्ष्य प्राप्त करने करने और कमज़ोर वर्ग के कल्याण के इरादे से तैयार किया गया है।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता का अध्याय-IX तलाकशुदा पत्नी, बच्चों और वृद्ध माता-पिता के अधिकारों की सुरक्षा के लिये आवश्यक है। यह उन्हें असामान्य आजीविका से बचाने के लिये बनाया गया है। भरण-पोषण हर उस व्यक्ति का कर्तव्य है जिसके पास इसके लिये पर्याप्त साधन हैं।
- हालाँकि इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिये कि प्रावधान का कोई दुरुपयोग न हो। न्यायालय को अपना न्यायिक चित्त लगाना चाहिये तथा पति व आश्रितों की आजीविका के साधनों के बारे में हर छोटी से छोटी बात की जाँच करनी चाहिये और फिर उसके अनुसार एक आदेश पारित करना चाहिये।