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आपराधिक कानून

समन मामले

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 27-Feb-2024

परिचय

समन, एक कानूनी दस्तावेज़ है जो उस व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित होने और उसके खिलाफ दर्ज शिकायत का बचाव करने का आदेश देता है। किसी आरोपी व्यक्ति हेतु समन का प्रपत्र नीचे दिया गया है:

फॉर्म नंबर 1

[धारा 61]

किसी आरोपी व्यक्ति को समन

समन मामले

  • किसी ऐसे अपराध से जुड़ा मामला जो वारंट मामला नहीं है, उसे समन केस कहा जाता है।
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2(w) के अनुसार समन मामले का अर्थ किसी अपराध से संबंधित मामला है, न कि वारंट मामला।
  • समन मामले वे होते हैं जिनमें अधिकतम 2 वर्ष का कारावास होता है।
  • CrPC की धारा 251 से 259 में मजिस्ट्रेट द्वारा समन-मामलों की सुनवाई के संबंध में प्रावधान निर्धारित किये गए हैं।
  • इसमें संबंधित दस्तावेज़ के साथ ही अन्य को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है

समन मामलों में प्रक्रिया (धारा 251 से 259)

  • समन मामलों में परीक्षण की प्रक्रिया (धारा 251)
    • CrPC की धारा 251 में प्रावधान है कि जब अभियुक्त किसी समन मामले में मजिस्ट्रेट के सामने पेश होता है या उनके समक्ष लाया जाता है, तो उस पर जिस अपराध का आरोप लगाया गया है उसका विवरण उसे बताया जाता है।
    • इस स्तर पर न्यायालय औपचारिक आरोप तय करने के लिये बाध्य नहीं है या इसकी आवश्यकता नहीं है, बजाय इसके कि अभियुक्त से पूछा जाए कि क्या वह अपना अपराध स्वीकार करता है या उसके पास बचाव के लिये कोई विकल्प है।
  • दोषी की याचिका पर दोषसिद्धि (धारा 252)
    • यदि किसी समन मामले में अभियुक्त अपना दोष स्वीकार करता है तबअभियुक्त की स्वीकारोक्ति उसके अपने शब्दों में दर्ज की जानी चाहिये।
    • यदि एक से अधिक आरोपी व्यक्ति अपना दोष स्वीकार कर रहे हैं, तो उनमें से प्रत्येक को अधिग्रहण पढ़ने के बाद प्रत्येक आरोपी व्यक्ति की याचिका को उसके अपने शब्दों में अलग से दर्ज किया जाना चाहिये।
    • अपराध की याचिका को स्वीकार करना अथवा न करना मजिस्ट्रेट की विवेकाधीन शक्ति है। लेकिन यदि वह अपराध की याचिका स्वीकार करने का निर्णय करता है, तब वह उचित सजा तय करने के लिये साक्ष्य मांग सकता है।
  • छोटे-मोटे मामलों में अभियुक्त की अनुपस्थिति में दोषी होने की याचिका पर सजा (धारा 253)
    • यह धारा, याचिका पर दोषसिद्धि के समय अभियुक्त की अनुपस्थिति से संबंधित है।
    • सामान्यतया CrPC की धारा 206 के अनुसार समन जारी किया गया है। यदि अभियुक्त न्यायाधीश के समक्ष गए बिना आरोपों के लिये दोषी होने की याचिका देने का निर्णय करता है, तब वह अपनी याचिका और समन में उल्लिखित ज़ुर्माना राशि को व्यक्त करते हुए एक पत्र मेल या पोस्ट करके ऐसा कर सकता है।
    • इसके अतिरिक्त आरोपी अधिकृत वकील के पास अपनी ओर से दोष स्वीकार करने का अधिकार है।
  • जब अभियुक्त को याचिका पर दोषी नहीं ठहराया जाता है (धारा 254)
    • यदि अभियुक्त को धारा 252 तथा धारा 253 के तहत याचिका पर दोषी नहीं ठहराया जाता है, तब अभियोजन एवं बचाव पक्ष के लिये धारा 254 प्रदान की जाती है।
    • मजिस्ट्रेट, अभियुक्त की बात सुनने के बाद अभियोजन पक्ष को मामले से संबंधित सभी तथ्य एवं परिस्थितियाँ तथा साक्ष्य प्रस्तुत करके मामले को स्पष्ट करने के लिये कहता है।
    • अभियोजन पक्ष के आवेदन पर मजिस्ट्रेट गवाहों को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने अथवा मामले के तथ्यों से संबंधित कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिये समन जारी करता है। मजिस्ट्रेट सभी साक्ष्य लेता है और साथ ही यह अभियोजन के समर्थन में भी प्रस्तुत किये जा सकते है।
  • दोषमुक्ति अथवा दोषसिद्धि (धारा 255)
    • यदि मजिस्ट्रेट, मामले में प्रस्तुत किये गए सभी साक्ष्यों को देखने के बाद अभियुक्त को दोषी नहीं पाता है, तो वह दोषमुक्ति का आदेश दे सकता है और यदि मजिस्ट्रेट आरोपी को दोषी पाता है, तो उसे कानून के अनुसार सजा देने की आवश्यकता होती है।
    • हालाँकि, अपराध की प्रकृति अथवा परिस्थितियों एवं अपराधी के चरित्र को ध्यान में रखते हुए, मजिस्ट्रेट संहिता की धारा 360 या धारा 325 के तहत अच्छे आचरण के लिये चेतावनी अथवा परिवीक्षा का आदेश दे सकता है।
  • शिकायतकर्त्ता की मृत्यु अथवा अनुपस्थिति (धारा 256)
    • यदि शिकायतकर्त्ता उपस्थिति के लिये निर्धारित तिथि पर न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ है, तब न्यायालय आरोपी को दोषमुक्त कर सकती है, जब तक कि न्यायालय के पास मामले को किसी अन्य दिन के लिये स्थगित करने का कारण न हो।
    • ऐसे प्रावधान जहाँ तक संभव हो, उन मामलों पर भी लागू होंगे जहाँ शिकायतकर्त्ता की अनुपस्थिति उसकी मृत्यु के कारण है।
    • एस.रामकृष्ण बनाम रामी रेड्डी (2008) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यदि मृत शिकायतकर्त्ता का प्रतिनिधि 15 दिनों तक उपस्थित नहीं होता है तो प्रतिवादी को दोषमुक्त किया जा सकता है।
  • शिकायत की वापसी (धारा 257)
    • शिकायतकर्त्ता अंतिम आदेश पारित होने से पहले किसी भी समय अपनी शिकायत वापस ले सकता है:
      • एकल अभियुक्त के विरुद्ध, या
      • कोई एक या अधिक अभियुक्त व्यक्ति
    • शिकायतकर्त्ता अभियुक्त व्यक्ति या व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत तभी वापस ले सकता है जब न्यायालय संतुष्ट हो जाए कि उसे शिकायत वापस लेने की अनुमति देने के लिये पर्याप्त आधार हैं।
    • यदि मजिस्ट्रेट शिकायतकर्त्ता द्वारा शिकायत वापस लेने के लिये स्पष्ट किये गए आधारों से संतुष्ट हो जाता है, तब अभियुक्त को दोषमुक्त कर देता है।
  • कुछ मामलों में कार्यवाही रोकने की शक्ति (धारा 258)
    • इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट CrPC की धारा 190(1)(b) के तहत पुलिस रिपोर्ट के आधार पर किसी भी समन मामले की कार्यवाही को रोक सकता है।
    • कार्यवाही रोकी जा सकती है: -  
      • प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट, या
      • मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति से कोई अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा।
    • ऐसा करने का कारण दर्ज करने के बाद ही इस धारा के तहत समन मामले में कार्यवाही रोकी जा सकती है।
  • समन को बदलने की न्यायालय की शक्ति (धारा 259)
    • यदि कोई अपराध छह महीने से अधिक कारावास से दंडित है और मजिस्ट्रेट की राय है कि समन मामलों की सुनवाई के बजाय वारंट मामले की सुनवाई की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिये, तब वह न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ऐसा कर सकता है।
    • इस धारा के प्रयोजनों हेतु वह किसी भी गवाह को वापस बुलाने के लिये भी अधिकृत है जिससे पहले ही पूछताछ की जा चुकी है।