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आपराधिक कानून

BNSS के अधीन आपराधिक न्यायालयों का गठन

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 06-Sep-2024

परिचय:

भारत में न्यायिक प्रणाली इस तरह से स्थापित की गई है कि यह अपने नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करती है।

  • हमारे पास न्यायालयों की एक जटिल एवं लंबी प्रणाली है।
  • न्यायालय को इस तरह से बनाया गया है कि कोई भी व्यक्ति आसानी से न्यायालयों का रुख कर सकता है।
  • भारत में दुनिया की सबसे कुशल न्यायिक प्रणाली है।

भारत में न्यायालयों के प्रकार:

  • भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 6 के अनुसार, उच्च न्यायालयों एवं इस संहिता के अतिरिक्त किसी अन्य विधि के अंतर्गत गठित न्यायालयों के अतिरिक्त, प्रत्येक राज्य में निम्नलिखित प्रकार के आपराधिक न्यायालय होंगे, अर्थात्–
    • सत्र न्यायालय
    • प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट
    • द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट
    • कार्यकारी मजिस्ट्रेट।

न्यायालयों का पदानुक्रम

अधीनस्थ न्यायालय

न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय:

  • धारा 9 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालयों के लिये निम्नलिखित प्रावधान हैं:
    • खंड (1) में कहा गया है कि प्रत्येक ज़िले में प्रथम श्रेणी एवं द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेटों के उतने ही न्यायालय स्थापित किये जाएंगे तथा ऐसे स्थानों पर, जिन्हें राज्य सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट करे।
    • परंतु राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, किसी स्थानीय क्षेत्र के लिये किसी विशिष्ट मामले या मामलों के विशेष वर्ग का विचारण करने के लिये प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेटों का एक या अधिक विशेष न्यायालय स्थापित कर सकेगी तथा जहाँ ऐसा कोई विशेष न्यायालय स्थापित है, वहाँ स्थानीय क्षेत्र में किसी अन्य मजिस्ट्रेट न्यायालय को किसी ऐसे मामले या मामलों के वर्ग का विचारण करने की अधिकारिता नहीं होगी जिसके विचारण के लिये न्यायिक मजिस्ट्रेट का ऐसा विशेष न्यायालय स्थापित किया गया है।
    • खंड (2) में कहा गया है कि ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जाएगी।
    • खंड (3) में कहा गया है कि उच्च न्यायालय, जब भी उसे समीचीन या आवश्यक प्रतीत हो, राज्य की न्यायिक सेवा के किसी सदस्य को, जो सिविल न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहा हो, प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्रदान कर सकता है।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट:

  • BNSS की धारा 10 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आदि के लिये प्रावधान है:
    • खंड (1) में कहा गया है कि प्रत्येक ज़िले में उच्च न्यायालय प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगा।
    • खंड (2) में कहा गया है कि उच्च न्यायालय प्रथम श्रेणी के किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है, तथा ऐसे मजिस्ट्रेट के पास इस संहिता के अंतर्गत या उच्च न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट किसी अन्य विधि के अंतर्गत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सभी या कोई भी शक्तियाँ होंगी।
    • खंड (3) में कहा गया है कि उच्च न्यायालय किसी भी उप-विभाग में प्रथम श्रेणी के किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट को उप-विभागीय न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नामित कर सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उसे इस धारा में निर्दिष्ट उत्तरदायित्व से मुक्त कर सकता है।
    • खंड (4) में कहा गया है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामान्य नियंत्रण के अधीन रहते हुए, प्रत्येक उप-विभागीय न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास उप-विभाग में न्यायिक मजिस्ट्रेटों (अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों के अतिरिक्त) के कार्य पर पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण की ऐसी शक्तियाँ भी होंगी तथा वह उनका प्रयोग करेगा, जैसा कि उच्च न्यायालय सामान्य या विशेष आदेश द्वारा इस संबंध में निर्दिष्ट कर सकता है।

विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट:

  • BNSS की धारा 11 में विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेटों के लिये प्रावधान है:
    • खंड (1) में यह प्रावधान है कि यदि केंद्रीय या राज्य सरकार द्वारा ऐसा करने का निवेदन किया जाता है तो उच्च न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति को, जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है या कर चुका है, किसी स्थानीय क्षेत्र में विशेष मामलों या मामलों के विशेष वर्गों के संबंध में प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को इस संहिता द्वारा या इसके अधीन प्रदान की गई या प्रदान की जा सकने वाली सभी या कोई शक्तियाँ प्रदान कर सकता है।
    • हालाँकि किसी व्यक्ति को ऐसी कोई शक्ति तब तक प्रदान नहीं की जाएगी जब तक कि उसके पास विधिक मामलों के संबंध में ऐसी योग्यता या अनुभव न हो, जैसा कि उच्च न्यायालय नियमों द्वारा निर्दिष्ट करे।
    • खंड (2) में प्रावधान है कि ऐसे मजिस्ट्रेटों को विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट कहा जाएगा तथा उन्हें एक वर्ष से कम की अवधि के लिये नियुक्त किया जाएगा, जैसा कि उच्च न्यायालय सामान्य या विशेष आदेश द्वारा निर्दिष्ट कर सकता है।

न्यायिक मजिस्ट्रेटों की अधिकारिता:

  • BNSS की धारा 13 में प्रावधान है कि न्यायिक मजिस्ट्रेटों की अधिकारिता इस प्रकार होगी:
    • खंड (1) में कहा गया है कि प्रत्येक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सत्र न्यायाधीश के अधीन होगा; तथा प्रत्येक अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सत्र न्यायाधीश के सामान्य नियंत्रण के अधीन रहते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीन होगा।
    • खंड (2) में कहा गया है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट समय-समय पर अपने अधीनस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेटों के बीच कार्यप्रणाली के वितरण के संबंध में इस संहिता के अनुरूप नियम बना सकता है या विशेष आदेश दे सकता है।

कार्यकारी मजिस्ट्रेट

कार्यकारी मजिस्ट्रेट:

  • BNSS की धारा 14 में कार्यकारी मजिस्ट्रेट के लिये प्रावधान है:
    • खंड (1) में कहा गया है कि राज्य सरकार प्रत्येक ज़िले में उतने व्यक्तियों को, जितने वह उचित समझे, कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकेगी तथा उनमें से एक को ज़िला मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगी।
    • खंड (2) में कहा गया है कि राज्य सरकार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है तथा ऐसे मजिस्ट्रेट को इस संहिता के अधीन या किसी अन्य वर्तमान विधि के अधीन ज़िला मजिस्ट्रेट की ऐसी शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा निर्देशित किया जा सकता है।
    • खंड (3) में कहा गया है कि जब कभी ज़िला मजिस्ट्रेट का पद रिक्त हो जाने के परिणामस्वरूप कोई अधिकारी अस्थायी रूप से ज़िले के कार्यकारी प्रशासन का कार्यभार ग्रहण करता है, तो ऐसा अधिकारी राज्य सरकार के आदेशों के लंबित रहने तक इस संहिता द्वारा ज़िला मजिस्ट्रेट को प्रदत्त सभी शक्तियों का प्रयोग करेगा तथा सभी कर्त्तव्यों का पालन करेगा।
    • खंड (4) में कहा गया है कि राज्य सरकार किसी कार्यकारी मजिस्ट्रेट को उप-मंडल का प्रभारी बना सकती है तथा आवश्यकता पड़ने पर उसे प्रभार से मुक्त भी कर सकती है; तथा उप-मंडल का इस प्रकार प्रभारी बनाया गया मजिस्ट्रेट उप-मंडल मजिस्ट्रेट कहलाएगा।
    • खंड (5) में कहा गया है कि राज्य सरकार सामान्य या विशेष आदेश द्वारा तथा ऐसे नियंत्रण एवं निर्देशों के अधीन, जिन्हें वह लागू करना उचित समझे, उप-धारा (4) के अंतर्गत अपनी शक्तियों को ज़िला मजिस्ट्रेट को सौंप सकती है।
    • खंड (6) में कहा गया है कि इस खंड में कुछ भी राज्य सरकार को किसी भी विधि के अंतर्गत पुलिस आयुक्त को कार्यकारी मजिस्ट्रेट की सभी या कोई भी शक्तियाँ प्रदान करने से नहीं रोकेगा।

विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट:

  • BNSS की धारा 15 में विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेटों के लिये प्रावधान है:
    • इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार, कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक या समकक्ष पद से नीचे का न हो, किसी पुलिस अधिकारी को, जिसे विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट के रूप में जाना जाएगा, किसी विशेष क्षेत्र के लिये या किसी विशेष कार्य के निष्पादन के लिये, ऐसी अवधि के लिये, जिसे वह ठीक समझे, नियुक्त कर सकेगी तथा ऐसे विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेटों को ऐसी शक्तियाँ प्रदान कर सकेगी, जो इस संहिता के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेटों को प्रदान की जा सकती हैं, जैसी वह ठीक समझे।

मध्य न्यायालय

सत्र न्यायालय:

  • BNSS की धारा 8 में सत्र न्यायालय के लिये प्रावधान है:
    • खंड (1) में कहा गया है कि राज्य सरकार प्रत्येक सत्र प्रभाग के लिये एक सत्र न्यायालय की स्थापना करेगी।
    • खंड (2) में कहा गया है कि प्रत्येक सत्र न्यायालय की अध्यक्षता एक न्यायाधीश द्वारा की जाएगी, जिसे उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
  • अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश:
    • BNSS की धारा 8 के खंड (3) में कहा गया है कि उच्च न्यायालय सत्र न्यायालय में अधिकारिता का प्रयोग करने के लिये अतिरिक्त सत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति भी कर सकता है।
    • खंड (4) में कहा गया है कि एक सत्र डिवीज़न के सत्र न्यायाधीश को उच्च न्यायालय द्वारा किसी अन्य डिवीज़न का अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश भी नियुक्त किया जा सकता है तथा ऐसे मामले में, वह अन्य डिवीज़न में ऐसे स्थान या स्थानों पर मामलों के निपटान के लिये कार्य कर सकता है जैसा कि उच्च न्यायालय निर्देशित कर सकता है।
    • खंड (5) में कहा गया है कि जहाँ सत्र न्यायाधीश का पद रिक्त है, वहाँ उच्च न्यायालय किसी अत्यावश्यक आवेदन के निपटान के लिये अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा या यदि कोई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश न हो तो सत्र खंड में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा व्यवस्था कर सकता है, जो सत्र न्यायालय के समक्ष किया गया हो या लंबित हो सकता है; तथा प्रत्येक ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को ऐसे किसी आवेदन पर विचार करने का अधिकार होगा।
    • खंड (6) में कहा गया है कि सत्र न्यायालय सामान्यतः ऐसे पद या पदों पर अपना कार्य करेगा, जिसे उच्च न्यायालय अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट करे; किंतु यदि किसी विशेष मामले में सत्र न्यायालय की यह राय है कि पक्षकारों एवं साक्षियों की सामान्य सुविधा के लिये सत्र खंड में किसी अन्य स्थान पर अपना कार्य आयोजित करना उचित होगा, तो वह अभियोजन पक्ष एवं अभियुक्त की सहमति से मामले के निपटान या उसमें किसी साक्षी या साक्षियों की परीक्षा के लिये उस स्थान पर बैठ सकता है।
    • खंड (7) में कहा गया है कि सत्र न्यायाधीश, समय-समय पर, इस संहिता के अनुरूप, ऐसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीशों के बीच कार्यों के वितरण के संबंध में आदेश दे सकते हैं।
    • खंड (8) में कहा गया है कि सत्र न्यायाधीश, अपनी अनुपस्थिति या कार्य करने में असमर्थता की स्थिति में, किसी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा या यदि कोई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नहीं है, तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किसी अत्यावश्यक आवेदन के निपटारे के लिये भी प्रावधान कर सकते हैं तथा ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को ऐसे किसी भी आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र माना जाएगा।

सहायक सत्र न्यायाधीश:

  • सहायक सत्र न्यायाधीश की अवधारणा को BNSS के प्रावधानों से हटा दिया गया है, जो पहले दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के अंतर्गत मौजूद थी।

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट:

  • मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अवधारणा, जो पहले CrPC में निहित थी, अब BNSS के नए आपराधिक अधिनियम के अधीन निहित नहीं है।

उच्चतर न्यायालय

  • भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 124 में भारत में उच्चतम न्यायालय की स्थापना के संबंध में प्रावधान हैं।
  • COI के अनुच्छेद 214 में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य के लिये एक उच्च न्यायालय होना चाहिये।

निष्कर्ष:

संविधान का लक्ष्य न्याय का प्रशासन है। इसके न्यायालयों में जाकर न्याय प्राप्त किया जा सकता है। न्याय प्रणाली की सहायता से देश के लोगों के लिये गलत के विरुद्ध खड़ा होना तथा अपने अधिकारों का दावा करना आसान हो गया है। यह प्रणाली इस तरह बनाया गया है कि अधीनस्थ न्यायालय से पीड़ित व्यक्ति असंतुष्ट होने पर उच्च न्यायालयों में अपील कर सकता है।