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आपराधिक कानून

BNSS में अधीन संपत्ति का निपटान

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 21-Oct-2024

परिचय

  • संपत्ति के निपटान से संबंधित प्रावधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अध्याय XXXVI के अंतर्गत दिये गए हैं।
  • निपटान शब्द का प्रयोग न्यायालयों द्वारा विभिन्न कारणों से किसी भी संपत्ति को ध्वस्त करने या उसका निपटान करने के लिये किया जाता है।
  • संपत्ति की समय बीतना, पालन के नियमों में परिवर्तन या संपत्ति का मूल्य में परिवर्तन की आवश्यकता जैसे कुछ कारण हैं।
  • न्यायालय सबसे पहले BNSS के अधीन दिये गए प्रावधानों के अनुसार संपत्ति की जाँच करता है।

शामिल किये जाने योग्य संपत्तियाँ

  • BNSS की धारा 497 के अधीन दिये गए स्पष्टीकरण के अनुसार संपत्ति में शामिल हैं:
    • किसी भी प्रकार की संपत्ति या दस्तावेज जो न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया हो या जो न्यायालय की अभिरक्षा में हो।
    • कोई संपत्ति जिसके संबंध में कोई कारित अपराध किया गया प्रतीत होता है या जिसका उपयोग किसी अपराध को करने के लिये किया गया प्रतीत होता है।

संपत्ति के निपटान से संबंधित विभिन्न प्रावधान

  • कुछ मामलों में वाद लंबित रहने तक संपत्ति की अभिरक्षा एवं निपटान के लिये आदेश (धारा 497):
    •  उपधारा (1) में यह प्रावधानित किया गया है कि जब संपत्ति संबंधी विवाद जाँच, पूछताछ या परीक्षण के अधीन हो तथा संपत्ति शीघ्र एवं प्राकृतिक क्षय के अधीन हो या ऐसा करना आवश्यक हो तो न्यायालय या मजिस्ट्रेट ऐसा साक्ष्य दर्ज करने के बाद, जैसा वह आवश्यक समझे, उसे बेचने या अन्यथा निपटाने का आदेश दे सकता है।
    • उपधारा (2) में यह प्रावधानित किया गया है कि न्यायालय या मजिस्ट्रेट संपत्ति प्रस्तुत किये जाने से 14 दिन की अवधि के अंदर राज्य सरकार के नियम के अनुसार ऐसी संपत्ति का विवरण तैयार करेगा।
    • उपधारा (3) में यह प्रावधानित किया गया है कि न्यायालय संपत्ति का इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड ले सकता है।
    • उपधारा (4) में यह प्रावधानित किया गया है कि लिये गए रिकॉर्ड का उपयोग इस अधिनियम के अधीन किसी भी जाँच, परीक्षण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में किया जाएगा।
    • उपधारा (5) में यह प्रावधानित किया गया है कि न्यायालय साक्ष्य एकत्र करने से 30 दिनों की अवधि के अंदर संपत्ति के निपटान, नष्ट, जब्ती या सुपुर्दगी का आदेश देगा, जैसा कि इसके बाद निर्दिष्ट किया गया है।
  • वाद के समापन पर संपत्ति के निपटान का आदेश (धारा 498):
    • उपधारा (1) में यह प्रावधानित किया गया है कि जब किसी आपराधिक मामले में जाँच, पूछताछ या परीक्षण समाप्त हो जाता है, तो न्यायालय ऐसा आदेश पारित कर सकता है, जैसा वह उचित समझे, किसी संपत्ति या दस्तावेज को, जो उसके समक्ष या उसकी अभिरक्षा में प्रस्तुत किया गया हो, या जिसके विषय में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता हो, या जिसका उपयोग किसी अपराध को करने के लिये किया गया हो, नष्ट करने, जब्त करने या किसी व्यक्ति को सौंपने के लिये, जो कब्जे का अधिकारी होने का दावा करता हो या अन्यथा, निपटान कर सकता है।
    • उपधारा (2) में कहा गया है कि न्यायालय किसी संपत्ति को कब्जे का दावा करने वाले व्यक्ति को बिना किसी शर्त के या इस शर्त पर सौंपने का आदेश दे सकता है कि वह न्यायालय या मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के लिये प्रतिभूतियों सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे, जिसमें यह वचनबद्धता हो कि यदि उपधारा (1) के अधीन दिया गया आदेश अपील या पुनरीक्षण पर संशोधित या अपास्त कर दिया जाता है तो वह संपत्ति न्यायालय को वापस कर देगा।
    • उपधारा (3) में यह प्रावधानित किया गया है कि न्यायालय उपधारा (1) के अधीन आदेश देने के बजाय संपत्ति को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपने का निर्देश दे सकता है, जो इसके बाद धारा 503, 504 एवं 505 में दिये गए प्रावधान के माध्यम से निपटान करेगा।
    • उपधारा (4) में यह प्रावधानित किया गया है कि उपधारा (1) के अधीन दिया गया आदेश दो महीने तक या अपील प्रस्तुत होने पर तब तक लागू नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसी अपील का निपटान नहीं हो जाता, सिवाय इसके कि संपत्ति पशुधन से संबंधित हो या शीघ्र और प्राकृतिक क्षय के अधीन हो।
  • उपधारा (5) में यह प्रावधानित किया गया है कि इस धारा के अधीन संपत्ति में शामिल हैं:
    • ऐसी संपत्ति जिसके लिये कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है।
    • ऐसी संपत्ति जो मूल रूप से किसी पक्ष के कब्जे या नियंत्रण में रही हो।
    • कोई संपत्ति जिसके लिये उसे परिवर्तित या विनिमय किया गया हो।
    • ऐसे रूपांतरण या विनिमय द्वारा अर्जित कोई भी वस्तु, चाहे तुरन्त या अन्यथा।
    • अभियुक्त से प्राप्त धनराशि का निर्दोष क्रेता को भुगतान (धारा 499):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि जब किसी व्यक्ति को किसी ऐसे अपराध के लिये दोषी ठहराया जाता है जिसमें चोरी या चोरी की संपत्ति प्राप्त करना शामिल है, तो न्यायालय ऐसे क्रेता के आवेदन पर एवं चोरी की गई संपत्ति को उस व्यक्ति को वापस करने पर, जो उस पर कब्जे का अधिकारी है, आदेश दे सकता है कि ऐसी धनराशि में से ऐसी राशि, जो ऐसे क्रेता द्वारा भुगतान की गई कीमत से अधिक न हो, ऐसे आदेश की तिथि से छह महीने के अंदर उसे सौंप दी जाए।
  •  धारा 498 या धारा 499 (धारा 500) के अधीन आदेशों के विरुद्ध अपील:
    • उपधारा (1) में यह प्रावधानित किया गया है कि धारा 498 एवं 499 के अधीन व्यथित व्यक्ति उस न्यायालय के समक्ष अपील दायर कर सकता है जहाँ अपील सामान्यतः होती है।
    • उपधारा (2) में यह प्रावधानित किया गया है कि अपीलीय न्यायालय आदेश पर रोक लगा सकता है, उसका निपटान कर सकता है, उसे संशोधित, परिवर्तित या रद्द कर सकता है।
    • उपधारा (3) में यह प्रावधानित किया गया है कि अपीलीय न्यायालय उस मामले का निपटान करते समय पुष्टि या पुनरीक्षण भी दे सकता है जिसमें उपधारा (1) में निर्दिष्ट आदेश दिया गया था।
  •  मानहानिपूर्ण एवं अन्य मामले का नष्ट हो जाना(धारा 501):
    • उपधारा (1) में यह प्रावधानित किया गया है कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 294, धारा 295 या धारा 356 की उपधारा (3) एवं (4) के अधीन दोषसिद्धि पर न्यायालय उस चीज की सभी प्रतियों को नष्ट करने का आदेश दे सकता है जिसके संबंध में दोषसिद्धि हुई थी तथा जो न्यायालय की अभिरक्षा में हैं या दोषसिद्ध व्यक्ति के कब्जे या शक्ति में हैं।
    • उपधारा (2) में यह प्रावधानित किया गया है कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 274, धारा 275, धारा 276 या धारा 277 के अधीन दोषसिद्धि पर उस खाद्य, पेय, औषधि या चिकित्सा तैयारी को नष्ट करने का आदेश दे सकता है जिसके संबंध में दोषसिद्धि हुई थी।
  • स्थावर संपत्ति पर कब्ज़े का पुनर्स्थापन की शक्ति (धारा 502):
    • उपधारा (1) में यह प्रावधानित किया गया है कि जब किसी व्यक्ति को आपराधिक बल का प्रयोग या बल प्रदर्शन या आपराधिक धमकी द्वारा अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तथा न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है कि बल के ऐसे प्रयोग या बल प्रदर्शन या धमकी से किसी व्यक्ति को किसी अचल संपत्ति से बेदखल किया गया है, तो न्यायालय, यदि वह उचित समझे, आदेश दे सकता है कि यदि आवश्यक हो तो बल द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को, जो उस संपत्ति पर कब्जा कर रहा हो, बेदखल करने के बाद उस व्यक्ति को उस संपत्ति का कब्जा वापस लौटा दिया जाए।
    • यह प्रावधान है कि सजा की तिथि के एक महीने के अंदर आदेश दिया जाएगा।
    • जहाँ अपराध का विचारण करते समय न्यायालय ने उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश नहीं दिया है, वहाँ अपील, पुष्टिकरण या पुनरीक्षण न्यायालय, यदि ठीक समझे तो, यथास्थिति, अपील, निर्देश या पुनरीक्षण को निपटाते समय ऐसा आदेश दे सकेगा ।
    • उपधारा (3) के अधीन आदेश दिया गया है कि धारा 500 के प्रावधान इसके संबंध में उसी तरह लागू होंगे जैसे वे धारा 499 के अधीन आदेश के संबंध में लागू होते हैं।
    • उपधारा (4) में कहा गया है कि कोई भी आदेश इस प्रकार नहीं दिया जाएगा जिससे किसी स्थावर संपत्ति पर या उस पर कोई अधिकार या हित प्रतिकूल प्रभाव पड़े जिसे कोई भी व्यक्ति सिविल वाद के रूप में संस्थित करने में सक्षम हो सकता है।
  • संपत्ति जब्त करने पर पुलिस द्वारा की जाने वाली प्रक्रिया (धारा 503):
    • उपधारा (1) में यह प्रावधानित किया गया है कि यदि संपत्ति जब्ती की सूचना दी जाती है और उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाता है, तो न्यायालय ऐसी संपत्ति के निपटान या उस संपत्ति को उस व्यक्ति को सौंपने के संबंध में, जो उस पर कब्जे का हकदार है, या यदि ऐसे व्यक्ति का पता नहीं लगाया जा सकता है, तो ऐसी संपत्ति की अभिरक्षा एवं प्रस्तुत करने के संबंध में ऐसा आदेश दे सकता है, जैसा वह उचित समझे।
    • उपधारा (2) में कहा गया है कि यदि हकदार व्यक्ति कोई ज्ञात व्यक्ति है, तो मजिस्ट्रेट संपत्ति या उसे सौंपने का आदेश दे सकता है।
    • यदि व्यक्ति अज्ञात है तो न्यायालय उसे निरुद्ध कर सकता है और ऐसी स्थिति में वह एक उद्घोषणा जारी करेगा जिसमें ऐसी संपत्ति में शामिल वस्तुओं को निर्दिष्ट किया जाएगा तथा उस पर दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाएगी कि वह ऐसी उद्घोषणा की तिथि से छह महीने के अंदर उसके समक्ष उपस्थित हो तथा अपना दावा सिद्ध करे।
  • प्रक्रिया जहाँ छह महीने के अंदर कोई दावेदार उपस्थित नहीं हो(धारा 504):
    • उपधारा (1) में यह प्रावधानित किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति संपत्ति पर अपना दावा स्थापित नहीं करता है तथा यह सिद्ध करने में असफल रहता है कि उसने संपत्ति विधिक रूप से अर्जित की है, तो मजिस्ट्रेट आदेश द्वारा निर्देश दे सकता है कि ऐसी संपत्ति राज्य सरकार के अधीन होगी तथा उस सरकार द्वारा बेची जा सकती है और ऐसी बिक्री की आय का निपटान उस तरीके से किया जाएगा जैसा कि राज्य सरकार नियमों द्वारा प्रदान कर सकती है।
    • उपधारा (2) में कहा गया है कि ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील उस न्यायालय के समक्ष की जाएगी जहाँ अपील आमतौर पर होती है।
    • विनश्वर संपत्ति को बेचने की शक्ति (धारा 505):
    •  इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि यदि ऐसी संपत्ति पर कब्जे का हकदार व्यक्ति अज्ञात या अनुपस्थित है तथा संपत्ति शीघ्र एवं प्राकृतिक रूप से क्षयशील है, या यदि वह मजिस्ट्रेट, जिसे उसकी जब्ती की सूचना दी गई है, की राय है कि उसकी बिक्री उसके स्वामी के लाभ के लिये होगी, या ऐसी संपत्ति का मूल्य दस हजार रुपए से कम है, तो मजिस्ट्रेट किसी भी समय उसे बेचने का निर्देश दे सकता है; तथा धारा 503 एवं 504 के उपबंध, यथासम्भव, ऐसी बिक्री के शुद्ध आगमों पर यथासाध्य निकटतम लागू होंगे।

निष्कर्ष

संपत्ति के निपटान से संबंधित प्रावधानों को स्पष्ट रूप से प्रावधानित किया गया है तथा उल्लिखित परिसीमा का विशेष रूप से पालन किया जाना है। प्रावधानों में किसी भी प्रकार की न्याय की चूक को रोकने के लिये पुलिस अधिकारियों एवं न्यायिक अधिकारियों के कर्त्तव्यों को स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया है।