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आपराधिक कानून
झूठी प्रथम सूचना रिपोर्ट
«25-Nov-2024
परिचय
प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 173 के तहत परिभाषित किया गया है।
- FIR से संबंधित प्रावधान BNSS के अध्याय XIII के अंतर्गत आते हैं, जो पुलिस को सूचना देने और जाँच करने की उनकी शक्तियों के बारे में है।
- FIR किसी पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी द्वारा दर्ज की गई संज्ञेय अपराध की सबसे प्रारंभिक और पहली सूचना होती है।
- कभी-कभी FIR दुर्भावनापूर्ण आशय से दर्ज की जाती है और ऐसी FIR को झूठी FIR माना जाता है।
- गलत तरीके से आरोपित व्यक्तियों के लिये झूठी FIR के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, तथा उनसे संबंधित कानूनी ढाँचे को समझना, अभियुक्त और आरोप लगाने वाले दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण होता है।
झूठी FIR क्या है?
- झूठी FIR से तात्पर्य पुलिस को दी गई ऐसी रिपोर्ट से है जिसमें किसी अपराध के बारे में गलत जानकारी दी गई हो जो हुआ ही नहीं है या जिसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया हो।
- यह कानून प्रवर्तन अधिकारियों को गुमराह करने का एक प्रयास होता है और इससे निर्दोष व्यक्तियों को गलत तरीके से गिरफ्तार किया जा सकता है, उन्हें परेशान किया जा सकता है और कानूनी परेशानियाँ हो सकती हैं।
- भारतीय कानून के तहत झूठी एफआईआर दर्ज करना एक आपराधिक अपराध है।
झूठी FIR के लिये कानूनी प्रावधान
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS):
- धारा 212: यह धारा झूठी सूचना देने के प्रावधानों को इस प्रकार बताती है:
- यह कानून किसी भी ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है जिसे कानूनी तौर पर किसी लोक सेवक को सूचना उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है।
- यह अपराध तब होता है जब कोई व्यक्ति गलत जानकारी प्रदान करता है:
- यह जानते हुए कि यह झूठी सूचना है, या
- यह मानने का कारण होना कि यह झूठी सूचना है।
- सूचना की प्रकृति के आधार पर दो अलग-अलग दंड लागू होते हैं:
- 6 महीने तक का साधारण कारावास और/या 5,000 रुपये तक का जुर्माना।
- जब झूठी सूचना निम्न से संबंधित हो:
- किसी अपराध का किया जाना।
- किसी अपराध का निवारण।
- किसी अपराधी को पकड़ना।
- इसकी सज़ा (साधारण या कठोर) 2 वर्ष तक की हो सकती है, और/या जुर्माना (राशि निर्दिष्ट नहीं) हो सकता है।
- धारा 216: इस धारा में प्रावधान इस प्रकार हैं:
- यह धारा कानूनी रूप से शपथ या प्रतिज्ञान से बंधे व्यक्तियों पर लागू होती है।
- शपथ/प्रतिज्ञान सत्य कथन के बारे में होना चाहिये।
- निम्न में से किसी एक के लिये:
- कोई लोक सेवक, या
- ऐसी शपथ/प्रतिज्ञान दिलाने के लिये कानून द्वारा अधिकृत कोई भी व्यक्ति।
- अपराध तब घटित होता है जब:
- व्यक्ति ऐसी शपथ/प्रतिज्ञान के तहत झूठा बयान देता है और या तो:
- जानता है कि कथन झूठा है, या
- मानता है कि कथन झूठा है, या
- मानता है कि कथन सत्य नहीं है।
- व्यक्ति ऐसी शपथ/प्रतिज्ञान के तहत झूठा बयान देता है और या तो:
- दंड:
- तीन वर्ष तक का कारावास (साधारण या कठोर) तथा जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- यह धारा कानूनी रूप से शपथ या प्रतिज्ञान से बंधे व्यक्तियों पर लागू होती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS):
- धारा 528: उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियाँ:
- इस संहिता की कोई भी बात उच्च न्यायालय की ऐसे आदेश देने की अंतर्निहित शक्तियों को सीमित या प्रभावित करने वाली नहीं समझी जाएगी, जो इस संहिता के अधीन किसी आदेश को प्रभावी करने के लिये या किसी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये या अन्यथा न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिये आवश्यक हो सकते हैं।
झूठी FIR दर्ज करने के परिणाम
- झूठी FIR दर्ज करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- आपराधिक आरोप: परिवादी को गलत जानकारी देने के लिये BNS के तहत आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ सकता है।
- सिविल दायित्व: अभियुक्त परिवादी के विरुद्ध मानहानि का सिविल वाद दायर कर सकता है।
- विश्वसनीयता की हानि: परिवादी की विश्वसनीयता को गंभीर नुकसान पहुँच सकता है, जिससे व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
झूठी FIR के पीड़ितों के लिए उपाय
- यदि किसी व्यक्ति पर झूठी FIR के कारण गलत आरोप लगाया जाता है, तो वे निम्नलिखित कदम उठा सकता है:
- अग्रिम ज़मानत की मांग: यदि गिरफ्तारी की संभावना है, तो अभियुक्त हिरासत में लिये जाने से बचने के लिये अग्रिम ज़मानत के लिये आवेदन कर सकता है।
- रद्द करने की याचिका दायर: यदि झूठी FIR को BNSS की धारा 528 के तहत निराधार पाया जाता है, तो अभियुक्त इसे रद्द करने के लिये उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।
- परिवादी के विरुद्ध शिकायत दर्ज: अभियुक्त झूठी FIR दर्ज करने के लिये परिवादी के विरुद्ध शिकायत दर्ज कर सकता है, जिससे उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
- मुआवज़े की मांग: अभियुक्त झूठी FIR के कारण हुए नुकसान के लिये मुआवज़े की भी मांग कर सकता है।
झूठी FIR पर हालिया निर्णय
- वरुण बग्गा बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (2022):
- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि अपने अहं को संतुष्ट करने के लिये झूठी FIR दर्ज कराकर कानूनी प्रणाली का दुरुपयोग करना आम बात हो गई है।
- मनोज कुमार गुप्ता एवं 2 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 3 अन्य (2024):
- इस मामले में CJM द्वारा सरकारी अधिकारी के विरुद्ध झूठी शिकायत दर्ज की गई थी।
- जिसमें यह माना गया कि भविष्य में यदि कोई न्यायिक अधिकारी या न्यायाधीश किसी FIR में अपनी व्यक्तिगत क्षमता में प्रथम सूचनाकर्त्ता बनना चाहता है, तो उसे अपने संबंधित ज़िला न्यायाधीश को विश्वास में लेना होगा और ज़िला न्यायाधीश की सहमति के बाद ही वह किसी भी FIR का सूचनाकर्त्ता बन सकता है [हत्या, आत्महत्या, बलात्कार या अन्य यौन अपराध, दहेज़ हत्या, डकैती जैसे गंभीर और संगीन प्रकृति के मामले को छोड़कर]।
निष्कर्ष
झूठी FIR का व्यक्तियों और उनके परिवारों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। झूठी FIR दर्ज करने के कानूनी निहितार्थों और गलत तरीके से आरोपित लोगों के लिये उपलब्ध उपायों को समझना आवश्यक है। इन मुद्दों के बारे में जागरुकता कानूनी प्रणाली के दुरुपयोग को रोकने और इसमें शामिल सभी पक्षों के लिये न्याय सुनिश्चित करने में सहायता कर सकती है। यदि आप स्वयं को ऐसी स्थिति में पाते हैं, तो कानून की जटिलताओं को प्रभावी ढंग से समझने के लिये कानूनी सलाह लेना उचित है।