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आपराधिक कानून

पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की शक्तियाँ तथा मजिस्ट्रेटों एवं पुलिस को की जाने वाली सहायता

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 08-Nov-2024

परिचय

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अध्याय IV के अधीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की शक्तियों तथा मजिस्ट्रेटों एवं पुलिस को सहायता से संबंधित प्रावधान दिये गए हैं।

  • इस अध्याय में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के विधिक अधिकार एवं उत्तरदायित्व के साथ-साथ उन तरीकों को शामिल किया गया है जिनसे पुलिस मजिस्ट्रेटों एवं अन्य अधिकारियों से सहायता प्राप्त कर सकती है।
  • इसमें उन शक्तियों का उल्लेख किया गया है जो उच्च-श्रेणी के पुलिस अधिकारियों को अधीनस्थ श्रेणी के अधिकारियों को निर्देश एवं सहायता प्रदान करने के लिये हैं, साथ ही पुलिस द्वारा अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने के लिये आवश्यकता पड़ने पर न्यायालयों एवं अन्य सरकारी संस्थाओं से सहायता मांगने की प्रक्रियाओं का भी उल्लेख किया गया है।

पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की शक्तियां तथा मजिस्ट्रेटों और पुलिस को सहायता

  • पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की शक्तियाँ (धारा 30):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि कोई पुलिस अधिकारी, जो पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी से उच्चतर रैंक का है, थाने की सीमाओं के अंदर पुलिस प्रभारी को प्राप्त समान शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
  • जनता को मजिस्ट्रेट एवं पुलिस की सहायता कब करनी चाहिये (धारा 31):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति पुलिस एवं मजिस्ट्रेट की सहायता करने के लिये बाध्य है, जब भी वे उचित तरीके से सहायता मांगते हैं:
      • किसी अन्य व्यक्ति को पकड़ने या भागने से रोकने में, जिसे गिरफ्तार करने के लिये मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी अधिकृत है।
      • शांति भंग करने की रोकथाम या दमन में।
      • किसी सार्वजनिक संपत्ति को पहुँचाने के प्रयास की रोकथाम में।
  • वारंट निष्पादित करने वाले पुलिस अधिकारी के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति को सहायता प्रदान करना (धारा 32):
    • इस धारा में यह प्रावधानित किया गया है कि किसी व्यक्ति को भारतीय न्याय संहिता, 2023 की निम्नलिखित धाराओं के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के होने का ज्ञान है:
      • धारा 103 से 105 तक (दोनों शामिल)
      • धारा 111 से 113 तक (दोनों शामिल)
      • धारा 140 से 144 तक (दोनों शामिल)
      • धारा 147 से 154 तक (दोनों शामिल) और धारा 158
      • धारा 178 से 182 तक (दोनों शामिल)
      • धारा 189 और 191 तक
      • धारा 274 से 280 तक (दोनों शामिल)
      • धारा 307
      • धारा 309 से 312 तक (दोनों शामिल)
      • धारा 316 की उपधारा (5) तक
      • धारा 326 से 328 तक (दोनों शामिल)
      • धारा 331 और 332 तक
    • किसी उचित कारण के अभाव में ऐसे अपराध के किये जाने या किये जाने के आशय की सूचना निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस को देगा तथा उसे सिद्ध करने का भार भी उस व्यक्ति पर होगा जो ऐसे आशय या किये जाने के विषय में जानता है।
    • "अपराध" शब्द में भारत से बाहर किसी भी स्थान पर किया गया कोई भी कार्य शामिल है, जो भारत में किये जाने पर अपराध माना जाएगा।
  • गांव के मामलों के संबंध में नियुक्त अधिकारियों का कर्त्तव्य कुछ रिपोर्ट तैयार करना (धारा 34):
    • यह धारा पुलिस अधिकारियों, गांव के अधिकारियों एवं निवासियों के लिये न्यायिक अधिकारियों या पुलिस को कुछ सूचना रिपोर्ट करने का विधिक कर्त्तव्य अध्यारोपित करती है।
  • रिपोर्ट करने का कर्त्तव्य:
    • गांव प्रशासन में कार्यरत या गांव में रहने वाले व्यक्तियों को तुरंत निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस स्टेशन को सूचित करना चाहिये यदि उन्हें निम्नलिखित के विषय में सूचना हो:
    • गांव में या उसके आस-पास रहने वाले चोरी के सामान के ज्ञात रिसीवर या विक्रेता।
    • गांव से गुजरने वाले संदिग्ध अपराधी (लुटेरे, फरार अपराधी, घोषित अपराधी)।
    • गंभीर आपराधिक अपराधों की योजना बनाई या चल रही है।
    • गांव में संदिग्ध मौतें, गायब होना या शवों की खोज।
    • भारत के बाहर लेकिन गांव के पास किये गए कुछ अपराध।
  • परिभाषा:
    • "गांव" में गांव की जमीनें शामिल हैं।
    • "घोषित अपराधी" से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसे भारत के किसी भी भाग में न्यायालय या प्राधिकरण द्वारा भगोड़ा घोषित किया गया हो, ऐसे अपराधों के लिये जो दण्ड संहिता के अधीन बहुत गंभीर अपराध होंगे।
    • "ग्राम अधिकारियों" में पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान और प्रशासनिक भूमिकाओं में नियुक्त अन्य लोग शामिल हैं।
  • रिपोर्टिंग की प्रक्रिया:
    • रिपोर्ट करने योग्य कोई भी सूचना निकटतम मजिस्ट्रेट या निकटतम पुलिस स्टेशन को ही दी जानी चाहिये।

निष्कर्ष

पुलिस के नेतृत्व के मामले में, पुलिस अधीक्षकों एवं निरीक्षकों जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को अपने अधीनस्थ अधिकारियों को निर्देश एवं निगरानी प्रदान करने का अधिकार देता है। यह एक पदानुक्रमिक संरचना की अनुमति देता है जहाँ वरिष्ठ कर्मचारी हस्तक्षेप कर सकते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर अधीनस्थों के कार्यों का मार्गदर्शन कर सकते हैं।

इसके विपरीत, विधि पुलिस के लिये मजिस्ट्रेट और अन्य अधिकारियों के साथ सहयोग करने एवं उनसे सहायता प्राप्त करने के दायित्व भी स्थापित करता है। इसमें अधिकारियों एवं गांव के निवासियों के लिये विभिन्न प्रकार की संदिग्ध गतिविधि या आपराधिक घटनाओं की तुरंत निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस स्टेशन को रिपोर्ट करने की आवश्यकताएँ शामिल हैं। यह पुलिस को अपने कर्त्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिये आवश्यक होने पर न्यायालयों एवं अन्य सरकारी एजेंसियों से औपचारिक रूप से सहायता मांगने में भी सक्षम बनाता है।