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आपराधिक कानून

उद्घोषणा और कुर्की

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 14-Apr-2025

परिचय 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अध्याय 6 का भाग- ग में उद्घोषणा और कुर्की का उपबंध है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 84 से धारा 89 में उद्घोषणा और कुर्की का उपबंध है। 
  • पहले यह दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 से धारा 86 में निहित था। 

फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा से संबंधित प्रावधान क्या है? 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 84 में फरार व्यक्ति के लिये उद्घोषणा का उपबंध है। यह पहले दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 82 में मौजूद था।  
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 84 (1) में उपबंध है कि: 
    • यदि किसी न्यायालय के पास यह विश्वास का कारण है कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध वारण्ट जारी किया गया है, वह फरार है या वारण्ट के निष्पादन से बचने के लिये छिप रहा है, तो वह औपचारिक सार्वजनिक उद्घोषणा जारी कर सकता है। 
    • इस उद्घोषणा के लिये व्यक्ति को विनिर्दिष्ट स्थान और समय पर उपस्थित होना होगा, जो इसके प्रकाशन की तिथि से कम से कम तीस दिन के भीतर होना चाहिये 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 84 (2) में उद्घोषणा के प्रकाशन की प्रक्रिया के रीति का उपबंध है। उद्घोषणा को निम्नलिखित तरीकों से सार्वजनिक किया जाना चाहिये: 
    • इसे उस नगर या ग्राम के, जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य स्थान में सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाना चाहिये 
    • इसे व्यक्ति के गृह या वासस्थान के, जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य भाग पर या ऐसे नगर या ग्राम के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगाया जाना चाहिये 
    • इसकी एक प्रति न्यायालय के किसी दृश्य क्षेत्र में भी प्रदर्शित की जानी चाहिये 
    • इसके अतिरिक्त, यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह आदेश दे सकता है कि उद्घोषणा को स्थानीय दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित किया जाए। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 84 (3) में उपबंध है कि न्यायालय द्वारा लिखित कथन जिसमें कहा गया है कि उद्घोषणा को आवश्यकतानुसार एक निश्चित तिथि पर उचित रूप से प्रकाशित किया गया था, को अंतिम साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाएगा कि सभी विधिक अपेक्षाओं का अनुपालन किया गया था, और उद्घोषणा को उसी तिथि को प्रकाशित किया गया था। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 84 (4) में यह उपबंध है कि यदि उद्घोषणा किसी ऐसे व्यक्ति के लिये है जो दस वर्ष या अधिक के कारावास से, या आजीवन कारावास या मृत्यु दण्ड से दण्डनीय किसी गंभीर अपराध का अभियुक्त है और वह व्यक्ति विनिर्दिष्ट समय और स्थान पर उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय उचित जांच के पश्चात् उसे "उद्घोषित अपराधी" घोषित कर सकता है। 
    • यह उल्लेखनीय है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में पूर्व में यह उपबंध था कि यदि किसी अभियुक्त के विरुद्ध उद्घोषणा ऐसे अपराध के लिये की जाती है जो भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की विशिष्ट गंभीर धाराओं के अंतर्गत आता है, और यदि वह व्यक्ति निर्धारित समय एवं स्थान पर न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय उचित जांच के उपरांत उसे उद्घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) घोषित कर सकता है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 84 (5) में यह उपबंध है कि उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबंध न्यायालय द्वारा उपधारा (4) के अधीन की गई घोषणा को उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा को लागू होते हैं। 

फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की से संबंधित उपबंध क्या है? 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 85 में फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की का उपबंध है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 85 (1) में उपबंधित है कि: 
    • यदि न्यायालय किसी व्यक्ति को उद्घोषित अपराधी घोषित करते हुए धारा 84 के अधीन उद्घोषणा जारी करता है, तो वह उद्घोषणा के पश्चात् किसी भी समय उस व्यक्ति की जंगम (जैसे वाहन, आभूषण) या स्थावर (जैसे भूमि, भवन) संपत्ति की कुर्की (जब्ती) का आदेश भी दे सकता है, किंतु न्यायालय को इसके कारणों को स्पष्ट रूप से लेखबद्ध करना होगा। 
    • यद्यपि, यदि न्यायालय के पास यह विश्वास का कारण है (उद्घोषणा जारी करने से पूर्व भी) कि व्यक्ति: 
      • अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग का व्ययन करने का प्रयास कर रहा है, या 
      • अपनी संपत्ति को न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से हटाने वाला है, 
    • तो न्यायालय उद्घोषणा जारी करने के साथ ही संपत्ति की कुर्की का आदेश भी दे सकता है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 85 (2) में उपबंध है: 
    • संपत्ति को कुर्क करने (जब्ती करने) का न्यायालय का आदेश उस जिले के भीतर व्यक्ति की किसी भी संपत्ति पर लागू होगा, जहाँ आदेश दिया गया है। 
    • यदि व्यक्ति उस जिले के बाहर संपत्ति का स्वामी है, तो कुर्की तभी वैध होगी, जब उस दूसरे जिले का जिला मजिस्ट्रेट उसे मंजूरी दे (समर्थन करे)। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 85 (3) और 85 (4) में उपबंध है: 
    • न्यायालय चल संपत्ति को निम्नलिखित में से किसी भी रीति से कुर्क कर सकता है: 
      • इसे भौतिक रूप से लेकर (जब्ती करके)। 
      • इसे प्रबंधित या नियंत्रित करने के लिये किसी व्यक्ति (रिसीवर) को नियुक्त करके। 
      • किसी को भी उद्घोषित व्यक्ति या उनके लिये काम करने वाले किसी व्यक्ति को इसे देने से रोकने के लिये लिखित आदेश जारी करके। 
      • या न्यायालय द्वारा तय किये गए इन रीतियों में से किसी दो या सभी का प्रयोग करके। 
    • न्यायालय अचल संपत्ति को निम्न रीतियों से कुर्की कर सकता है: 
      • यदि यह भूमि राज्य सरकार को कर (tax) देती है, तो उस क्षेत्र का कलेक्टर कुर्की की प्रक्रिया को संभालेगा। 
      • अन्य सभी अचल संपत्तियों के लिये, न्यायालय निम्न कर सकता है: 
      • उस पर कब्ज़ा कर सकता है। 
      • रिसीवर नियुक्त कर सकता है। 
      • उद्घोषित व्यक्ति या उनके अभिकर्त्ता को किराए के संदाय या संपत्ति के परिदान को रोकने के लिये लिखित आदेश जारी कर सकता है। 
      • या न्यायालय द्वारा उपयुक्त समझे जाने वाले इनमें से किसी भी दो या सभी रीतियों का उपयोग कर सकता है।  
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 85 (5) और 85 (6) में प्रावधान है: 
    • यदि संपत्ति जीवधन या विनश्वर प्रकृति की है, तो यदि न्यायालय समीचीन समझता है तो वह उसे तुरंत विक्रय का आदेश दे सकता है। और ऐसी दशा में विक्रय के आगम न्यायालय के अधीन रहेंगे 
    • न्यायालय द्वारा नियुक्त रिसीवर के पास सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन नियुक्त रिसीवर के समान ही शक्तियाँ और दायित्त्व होंगे 

उद्घोषणा और कुर्की से संबंधित शेष उपबंध क्या हैं? 

  • न्यायालय, पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त की पंक्ति या इससे ऊपर के किसी पुलिस अधिकारी से लिखित अनुरोध प्राप्त होने पर अध्याय 8 में उपबंधित प्रक्रिया के अनुसार किसी उ‌द्घोषित व्यक्ति से संबंधित संपत्ति की पहचान, कुर्की और जब्ती के लिए किसी न्यायालय या संबंधित राज्य के किसी प्राधिकारी से सहायता का अनुरोध करने की प्रक्रिया का आरंभ करेगा। 
  • धारा 87 में उपबंध है: 
    • यदि उद्घोषित व्यक्ति के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति 6 ​​मास के भीतर स्वामित्व का दावा करता है या कुर्की पर आपत्ति करता है, तो न्यायालय जांच करेगा और दावे को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है (पूरी तरह या आंशिक रूप से)। 
      • यदि दावेदार की मृत्यु हो जाती है, तो उनका विधिक प्रतिनिधि दावा जारी रख सकता है। 
    • दावा/आपत्ति उस न्यायालय में दायर की जा सकती है जिसने कुर्की जारी की थी या यदि संपत्ति किसी अन्य जिले में कुर्क की गई थी, तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में। 
    • जिस न्यायालय में दावा किया गया है, वह जांच करेगा। 
      • मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट इसे अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को सौंप सकता है। 
    • यदि दावा खारिज हो जाता है, तो व्यक्ति संपत्ति पर अपना अधिकार साबित करने के लिये1 वर्ष के भीतर सिविल वाद दायर कर सकता है। उस वाद के परिणाम तक, न्यायालय का आदेश अंतिम होता है। 
  • धारा 88 में उपबंध है:
    • यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में दिये गए समय के भीतर उपस्थित होता है, तो न्यायालय कुर्क की गई संपत्ति को मुक्त कर देगा। 
    • यदि व्यक्ति उपस्थित नहीं होता है, तो संपत्ति राज्य सरकार को चली जाएगी - किंतु इसे 6 मास तक और किसी भी दावे (धारा 87 के अधीन) के निपटारा होने तक विक्रय नहीं किया जा सकता है, 
      • जब तक कि यह खराब न हो जाए, या न्यायालय को न लगे कि इसे बेचना मालिक के लिए बेहतर है। 
    • यदि व्यक्ति कुर्की के 2 वर्ष के भीतर (स्वेच्छया से या गिरफ्तारी द्वारा) उपस्थित होता है और साबित करता है कि उसने जानबूझकर वारण्ट या उद्घोषणा से बचने के लिये फरार नहीं हुआ था, 
      • न्यायालय उसकी संपत्ति या बिक्री आय (खर्चे में कटौती के पश्चात्) वापस कर देगा। 
  • धारा 89 में उपबंध है कि यदि किसी व्यक्ति (धारा 88(3) के अनुसार) को संपत्ति या उसके विक्रय के आगमों के परिदान के इंकार से व्यथित है, तो वे उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं जो मूल न्यायालय से अपीलों का निपटारा करता है। 

निष्कर्ष 

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 84 से 89 के अधीन उपबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि फरार व्यक्तियों के विरुद्ध उद्घोषणा एवं संपत्ति की कुर्की की कार्यवाही एक विधिसम्मत एवं संरचित प्रक्रिया के माध्यम से की जाए, साथ ही प्रभावित पक्षकारों  के अधिकारों का विधिपूर्ण संरक्षण भी किया जाए