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आपराधिक कानून
CrPC की धारा 157
« »07-May-2024
परिचय:
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC), धारा 157, निर्दिष्ट करती है कि उन मामलों में जाँच कैसे की जानी चाहिये जहाँ संदेह है कि कोई संज्ञेय अपराध किया गया है। यह जाँच प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
CrPC की धारा 157
● अन्वेषण के लिये प्रक्रिया; प्रकट करती है कि—
(1) यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को, इत्तिला प्राप्त होने पर या अन्यथा यह संदेह करने का कारण है कि ऐसा अपराध किया गया है जिसका अन्वेषण करने के लिये धारा 156 के अधीन वह सशक्त है तो वह उस अपराध की रिपोर्ट उस मजिस्ट्रेट को तत्काल भेजेगा जो ऐसे अपराध का पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान करने के लिये सशक्त है और मामले के तथ्यों तथा परिस्थितियों का अन्वेषण करने के लिये एवं यदि आवश्यक हो तो अपराधी का पता चलाने व उसकी गिरफ्तारी के उपाय करने के लिये, उस स्थान पर या तो स्वयं जाएगा या अपने अधीनस्थ अधिकारियों में से एक को भेजेगा जो ऐसी पंक्ति से निम्नतर पंक्ति का न होगा जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विहित करे:
परंतु–
(क) जब ऐसे अपराध के किये जाने की कोई शिकायत किसी व्यक्ति के विरुद्ध उसका नाम देकर की गई है और मामला गंभीर प्रकार का नहीं है तब यह आवश्यक न होगा कि पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी उस स्थान पर अन्वेषण करने के लिये स्वयं जाए या अधीनस्थ अधिकारी को भेजे;
(ख) यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि अन्वेषण करने के लिये पर्याप्त आधार नहीं है तो वह उस मामले का अन्वेषण नहीं करेगा।
परंतु यह कि बलात्संग के अपराध के संबंध में, पीड़ित के कथन का अभिलेखन, पीड़ित के निवास पर या उसकी पसंद के स्थान में तथा जहाँ तक व्यवहार्य हो, उसके माता-पिता या संरक्षक या निकट नातेदारों या मोहल्ले के सामाजिक कार्यकर्त्ता की उपस्थिति में किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा आयोजित किया जाएगा।
(2) उपधारा (1) के परंतुक के खंड (क) और (ख) में वर्णित दशाओं में से प्रत्येक दशा में पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी अपनी रिपोर्ट में उस उपधारा की अपेक्षाओं का पूर्णतया अनुपालन न करने के अपने कारणों का कथन करेगा तथा उक्त परंतुक के खण्ड (ख) में वर्णित दशा में ऐसा अधिकारी इत्तिला देने वाले को, यदि कोई हो, ऐसी रीति से, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए, तत्काल इस बात की सूचना दे देगा कि वह उस मामले में अन्वेषण न तो करेगा एवं न कराएगा।
CrPC की धारा 157 का उद्देश्य
- पुलिस के पास जो शक्ति है उसे देखते हुए इस धारा को काफी महत्त्व मिलता है, इसलिये पुलिस द्वारा की जाने वाली हर जाँच पर कड़ी निगरानी रखना बहुत आवश्यक है। यह अनुभाग इस कर्त्तव्य को निम्नलिखित दो तरीकों से लागू करता है:
- यह अभियोजन पक्ष की कहानी में सुधार और विचार-विमर्श तथा परामर्श द्वारा किसी विकृत संस्करण को पेश करने की संभावना से बचाता है।
- यह न्यायिक मजिस्ट्रेट को जाँच की प्रगति पर निगरानी में सक्षम बनाता है।
CrPC की धारा 157 की आवश्यक विशेषताएँ
- इस धारा की प्रकृति पूर्वव्यापी है।
- यह संज्ञेय और असंज्ञेय दोनों प्रकार के अपराधों पर लागू होता है।
- इस अनुभाग में, 'या अन्यथा' शब्द सूचना के प्रत्येक स्रोत को शामिल करने के लिये पर्याप्त व्यापक हैं।
- अभिव्यक्ति 'अविलंब' यथोचित समय में और बिना किसी अनुचित तथा अप्रत्याशित देरी के सूचना प्रदान करना है।
- यह धारा पुलिस अधिकारी पर उस अपराध की जाँच करने का कर्त्तव्य निर्धारित करती है जिसके बारे में उसे सूचना प्राप्त होती है।
निर्णयज विधि:
- उच्चतम न्यायालय ने ओमबीर सिंह बनाम यूपी राज्य और अन्य, (2011) मामले में निर्णय दिया कि अभियुक्त को इस आधार पर बरी नहीं किया जा सकता कि CrPC की धारा 157 के अनुपालन में विलंब के कारण मुकदमा खारिज हो गया था।