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आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का अध्याय XXIV
« »13-Aug-2024
परिचय:
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अध्याय XXIV में जेलों में बंद या निरुद्ध किये गए व्यक्तियों की उपस्थिति के लिये प्रावधान दिये गए हैं।
- यह पहले दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के अध्याय XXII में शामिल था।
परिभाषा:
- BNSS की धारा 301 इस अध्याय में परिभाषित करती है:
- “निरुद्ध” शब्द में किसी भी विधि के अधीन निवारक निरुद्धि हेतु प्रावधानित व्यक्ति शामिल है।
- “जेल” शब्द में शामिल हैं:
- कोई भी स्थान जिसे राज्य सरकार द्वारा सामान्य या विशेष आदेश द्वारा सहायक जेल घोषित किया गया हो
- कोई भी सुधार गृह, बोर्स्टल संस्थान या इसी प्रकार की अन्य संस्था।
- पहले यह प्रावधान CrPC की धारा 266 में निहित था।
कैदियों की उपस्थिति अनिवार्य करने की शक्ति:
- BNSS की धारा 302 (1) में प्रावधान है कि जब भी इस संहिता के अधीन किसी जाँच, विचारण या कार्यवाही के दौरान किसी आपराधिक न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि:
- किसी जेल में बंद या निरुद्ध व्यक्ति को किसी अपराध के आरोप का उत्तर देने के लिये या उसके विरुद्ध किसी कार्यवाही के प्रयोजनार्थ न्यायालय के समक्ष लाया जाना चाहिये;
- या न्याय के लिये ऐसे व्यक्ति की साक्षी के रूप में जाँच करना आवश्यक है।
- न्यायालय, कारागार के भारसाधक अधिकारी को यह अपेक्षा करते हुए आदेश दे सकता है कि वह ऐसे व्यक्ति को आरोप का उत्तर देने के लिये या ऐसी कार्यवाही के प्रयोजन के लिये या साक्ष्य देने के लिये न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे।
- BNSS की धारा 302 (2) में यह प्रावधान है कि जहाँ उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है, तो उसे जेल के प्रभारी अधिकारी को तब तक अग्रेषित नहीं किया जाएगा या उसके द्वारा उस पर कार्यवाही नहीं की जाएगी, जब तक कि वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित न हो, जिसके अधीनस्थ वह मजिस्ट्रेट है।
- BNSS की धारा 302 (3) में यह प्रावधान है कि उपधारा (2) के अधीन प्रतिहस्ताक्षर के लिये प्रस्तुत प्रत्येक आदेश के साथ तथ्यों का विवरण संलग्न किया जाएगा, जो मजिस्ट्रेट की राय में आदेश को आवश्यक बनाते हैं तथा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष आदेश प्रस्तुत किया गया है, ऐसे विवरण पर विचार करने के बाद आदेश पर प्रतिहस्ताक्षर करने से मना कर सकता है।
- यह पहले CrPC की धारा 267 में निहित था।
उपरोक्त में से कुछ व्यक्तियों का बहिष्करण:
- BNSS की धारा 303 (1) में प्रावधान है कि राज्य सरकार या केंद्र सरकार सामान्य या विशेष आदेश द्वारा निर्देश दे सकती है कि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को तब तक जेल से नहीं हटाया जाएगा जब तक आदेश लागू रहता है।
- धारा 302 के अधीन किया गया कोई भी आदेश, चाहे वह राज्य सरकार या केंद्रीय सरकार के आदेश से पहले हो या बाद में, ऐसे व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्ग के संबंध में प्रभावी नहीं होगा।
- उपधारा (1) के अंतर्गत आदेश देने से पहले राज्य सरकार या केंद्रीय सरकार, अपनी केंद्रीय एजेंसी द्वारा स्थापित मामलों में, निम्नलिखित बातों पर ध्यान देगी:
- अपराध की प्रकृति जिसके लिये, या जिन आधारों पर, व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को जेल में बंद या निरुद्धि में रखने का आदेश दिया गया है।
- यदि व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को जेल से बाहर निकालने की अनुमति दी जाती है तो सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी की संभावना;
- सामान्य रूप से लोक हित।
- पहले यह प्रावधान CrPC की धारा 268 में निहित था।
जेल का प्रभारी अधिकारी आदेश जारी करने से विरत रह सकता है:
- BNSS की धारा 304 में यह प्रावधान है कि जहाँ वह व्यक्ति जिसके संबंध में धारा 302 के अंतर्गत आदेश दिया गया है:
- बीमारी या दुर्बलता के कारण जेल से निकाले जाने के अयोग्य है; या
- विचारण के लिये प्रतिबद्ध है या विचारण के लंबित रहने तक या प्रारंभिक जाँच लंबित रहने तक रिमांड पर है; या
- वह उस अवधि के लिये निरुद्धि में है जो आदेश का अनुपालन करने तथा उसे उस जेल में वापस ले जाने के लिये आवश्यक समय की समाप्ति से पहले समाप्त हो जाएगी जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध है; या
- वह व्यक्ति है जिस पर धारा 303 के अधीन राज्य सरकार या केंद्र सरकार द्वारा दिया गया आदेश लागू होता है।
- कारागार का प्रभारी अधिकारी न्यायालय के आदेश का पालन करने से विरत रहेगा तथा ऐसा विरत रहने के कारणों का विवरण न्यायालय को भेजेगा:
- BNSS की धारा 304 के प्रावधान में यह प्रावधान है कि जहाँ ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति जेल से पच्चीस किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित स्थान पर साक्ष्य देने के लिये आवश्यक है, वहाँ जेल का प्रभारी अधिकारी खंड (b) में उल्लिखित कारण से ऐसा करने से विरत नहीं रहेगा।
- यह पहले CrPC की धारा 269 में निहित था।
कैदी को अभिरक्षा में न्यायालय में लाया जाएगा:
- BNSS की धारा 305 में प्रावधान है कि धारा 304 के प्रावधानों के अधीन पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी,
- धारा 302 की उपधारा (1) के अधीन पारित आदेश के वितरण पर तथा जहाँ आवश्यक हो, उसकी उपधारा (2) के अधीन सम्यक रूप से प्रतिहस्ताक्षरित आदेश में नामित व्यक्ति को उस न्यायालय में ले जाएगा जिसमें उसकी उपस्थिति अपेक्षित है तथा उसे न्यायालय में या उसके निकट अभिरक्षा में तब तक रखा जाएगा जब तक उसकी जाँच न हो जाए या जब तक न्यायालय उसे उस कारागार में वापस ले जाने के लिये प्राधिकृत न कर दे जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध था।
- धारा 302 की उपधारा (1) के अधीन पारित आदेश के वितरण पर तथा जहाँ आवश्यक हो, उसकी उपधारा (2) के अधीन सम्यक रूप से प्रतिहस्ताक्षरित आदेश में नामित व्यक्ति को उस न्यायालय में ले जाएगा जिसमें उसकी उपस्थिति अपेक्षित है तथा उसे न्यायालय में या उसके निकट अभिरक्षा में तब तक रखा जाएगा जब तक उसकी जाँच न हो जाए या जब तक न्यायालय उसे उस कारागार में वापस ले जाने के लिये प्राधिकृत न कर दे जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध था।
- पहले यह प्रावधान CrPC की धारा 270 में निहित था।
कमीशन जारी करने की शक्ति:
- BNSS की धारा 306 में प्रावधान है कि:
- इस अध्याय के प्रावधान, धारा 319 के अधीन, जेल में परिरुद्ध या निरुद्ध किसी व्यक्ति की साक्षी के रूप में परीक्षा करने के लिये कमीशन जारी करने की न्यायालय की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होंगे;
- तथा अध्याय 25 के भाग b के प्रावधान जेल में ऐसे किसी व्यक्ति की कमीशन पर परीक्षा के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे किसी अन्य व्यक्ति की कमीशन पर परीक्षा के संबंध में लागू होते हैं।
- पहले यह प्रावधान CrPC की धारा 271 में शामिल था।
निष्कर्ष:
अध्याय XXIV में जेल में बंद या निरुद्धि में लिये गए व्यक्तियों की उपस्थिति के लिये प्रावधान दिये गए हैं। इसमें BNSS की धारा 301 से धारा 306 तक के प्रावधान सम्मिलित हैं।