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सिविल कानून

अभिकरण के अधीन उपाभिकर्त्ता

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 14-Feb-2025

परिचय 

  • यह दस्तावेज़ मालिक, अभिकर्त्ता और उपाभिकर्त्ता के बीच संबंधों, अधिकारों और उत्तरदायित्तवों को नियंत्रित करने वाले विधिक ढाँचे को निर्धारित करता है। 
  • इसमें स्पष्ट रूप से उन परिस्थितियों उल्लेख किया गया है जिनके अधीन उपाभिकर्त्ता की नियुक्ति की जा सकती है, ऐसी नियुक्तियों के विधिक निहितार्थ और परिणामस्वरूप सभी संबंधित पक्षकारों के दायित्त्व और देनदारियाँ।   
  • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) का अध्याय 10 अभिकरण के अधीन उपाभिकर्त्ता के बारे में उपबंध करता है। 
  • इसमें दिये गए उपबंध मालिक, अभिकर्त्ता और अन्य पक्षकार के हितों की रक्षा करते हैं जबकि उचित रूप से संरचित अभिकरण संबंधों के माध्यम से कुशल व्यावसायिक संचालन की सुविधा प्रदान करते हैं। 
  • इन दिशा-निर्देशों का उचित पालन विधिक जोखिमों को कम करने और अभिकरण व्यवस्थाओं में अधिकार और उत्तरदायित्त्व की स्पष्ट रेखाएँ सुनिश्चित करने में सहायता करेगा। 

उपाभिकर्त्ता के संबंध में उपबंध  

धारा 190: अभिकर्त्ता कब प्रत्यायोजन नहीं कर सकता 

  • किसी अभिकर्त्ता को उन कर्त्तव्यों के पालन के लिये उपाभिकर्त्ता को नियोजित करने का अधिकार नहीं होगा, जिनका पालन करने का भार उसने स्वयं अपने द्वारा अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से लिया हो, सिवाय निम्नलिखित परिस्थितियों के। 
    • जहाँ व्यापार की मामूली रूढ़ि उपाभिकर्त्ता को नियोजन करने की अनुमति देती है। 
    • जहाँ अभिकरण की प्रकृति उपाभिकर्त्ता के नियोजन को आवश्यक बनाती है। 

धारा 191: "उपाभिकर्त्ता" की परिभाषा 

  • उपाभिकर्त्ता वह व्यक्ति है जो अभिकरण के कारबार में मूल अभिकर्त्ता द्वारा नियोजित हो और उनके नियंत्रण के अधीन कार्य करता हो। 

धारा 192: उचित तौर पर नियुक्त उपाभिकर्त्ता द्वारा मालिक का प्रतिनिधित्व 

  • जब उपाभिकर्त्ता को उचित तौर पर नियुक्त किया जाता है: 
    • अन्य पक्षकार के साथ लेन-देन में मालिक का प्रतिनिधित्व उपाभिकर्त्ता द्वारा किया जाता है। 
    • मालिक उपाभिकर्त्ता के कार्यों से आबद्ध होता है। 
    • मालिक उपाभिकर्त्ता के कार्यों के लिये उसी प्रकार उत्तरदायी होता है, जैसे कि उपाभिकर्त्ता को मालिक द्वारा सीधे नियुक्त किया गया हो। 

अभिकर्त्ता का दायित्त्व 

  • मूल अभिकर्त्ता उपाभिकर्त्ता द्वारा किये गए सभी कार्यों के लिये मालिक के प्रति उत्तरदायित्त्व रखता है। 

उपाभिकर्त्ता का दायित्त्व 

  • उपाभिकर्त्ता अपने कार्यों के लिये अभिकर्त्ता के प्रति उत्तरदायी होता है, किंतु मालिक के प्रति नहीं, सिवाय उन मामलों के जिनमें सम्मिलित हैं: 
    • कपट 
    • जानबूझकर किया गया अनुचित आचरण।  

धारा 193: प्राधिकार के बिना नियुक्त उपाभिकर्त्ता के लिये अभिकर्त्ता का उत्तरदायित्त्व 

  • जहाँ कोई अभिकर्त्ता उचित प्राधिकार के बिना उपाभिकर्त्ता को नियुक्त करता है:  
    • अभिकर्त्ता अनाधिकृत उपाभिकर्त्ता के संबंध में मालिक की स्थिति ग्रहण करता है। 
    • अभिकर्त्ता अनाधिकृत उपाभिकर्त्ता के कार्यों के लिये मालिक और अन्य पक्षकार दोनों के प्रति उत्तरदायी होता है। 
    • मालिक अनाधिकृत उपाभिकर्त्ता के कार्यों के लिये न तो प्रतिनिधित्व करता है और न ही उत्तरदायी होता है। 
    • अनाधिकृत उपाभिकर्त्ता मालिक के प्रति कोई प्रत्यक्ष उत्तरदायित्त्व नहीं रखता है। 

धारा 194: अभिकर्त्ता द्वारा अभिकरण के कारबार में कार्य करने के लिये सम्यक् रूप से नियुक्त व्यक्ति के बीच का संबंध 

  • जब कोई अभिकर्त्ता, मालिक के लिये कार्य करने के लिये किसी अन्य व्यक्ति को नामित करने के लिये अभिव्यक्त या विवक्षित प्राधिकार रखता है, तो ऐसी नियुक्ति करता है: 
    • नियुक्त व्यक्ति को उपाभिकर्त्ता नहीं माना जाता है।  
    • नियुक्त व्यक्ति को उसे सौंपे गए विशिष्ट कारबार के लिये मालिक का प्रत्यक्ष अभिकर्त्ता माना जाता है। 

दृष्टांतदर्शक उदाहरण 

  • जब कोई सालिसिटर, जिसे नीलामी द्वारा संपत्ति बेचने का निदेश दिया जाता है, एक नीलामकर्त्ता को नियोजित करता है, तो नीलामकर्ता विक्रय के संचालन के लिये मालिक का प्रत्यक्ष अभिकर्त्ता बन जाता है। 
  • जब धन की वसूली के लिये प्राधिकृत कोई वणिक किसी सालिसिटर को विधिक कार्यवाही करने का निदेश देता है, तो सालिसिटर मालिक का प्रत्यक्ष विधिक प्रतिनिधि बन जाता है। 

धारा 195: ऐसे व्यक्ति को नामित करने में अभिकर्त्ता का कर्त्तव्य 

  • अपने मालिक के लिये अभिकर्त्ता का चयन करते समय, नियोजित करने वाले अभिकर्त्ता को: 
    • उतना ही विवेक प्रयुक्त करने के लिये आबद्ध है जितना सामान्य प्रज्ञावाला व्यक्ति अपने निजी मामलों में करता है। 
    • यदि यह मानक पूरा हो जाता है, तो नियोजित करने वाला अभिकर्त्ता चयनित अभिकर्त्ता के कार्यों या उपेक्षा के लिये उत्तरदायी नहीं है। 

दृष्टांत: 

  • यदि कोई वणिक किसी जहाज सर्वेक्षक को नियोजित करता है जो उपेक्षा से किसी अयोग्य जहाज का चयन करता है, तो वणिक नहीं अपितु सर्वेक्षक ही उत्तरदायी होता है। 
  • जब कोई वणिक किसी प्रतिष्ठित नीलामकर्त्ता को नियुक्त करता है जो दिवालिया हो जाता है, तो वणिक बेहिसाब आगमों के लिये उत्तरदायी नहीं होता। 

निष्कर्ष  

यह ढाँचा अभिकरण और उपाभिकर्त्ता के संबंधों के निर्माण और प्रबंधन के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करता है। यह उन विशिष्ट परिस्थितियों को रेखांकित करता है जिनके अंतर्गत ऐसे संबंध निर्मित हो सकते हैं, सभी पक्षकारों के परिणामी दायित्त्व और इन संबंधों के भीतर की गई कार्यवाहियों के लिये दायित्त्व का आवंटन। अभिकरण संबंधों में संलग्न सभी पक्षकारों को अनुपालन और उचित जोखिम प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये इन प्रावधानों पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिये।