होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)
आपराधिक कानून
विवाह के दौरान संवाद
« »30-May-2024
परिचय
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 122 के प्रावधानों के तहत पति और पत्नी के बीच वैवाहिक संवाद के प्रकटीकरण के विरुद्ध दृढ़ता से संरक्षित किया गया है।
- पति या पत्नी अथवा पत्नी या पति के बीच कही गई कोई भी बात भारतीय कानून की धारा 122 के प्रावधानों के तहत विशेषाधिकार प्राप्त संवाद मानी जाती है।
IEA की धारा 122
- यह धारा विवाह के दौरान संवाद से संबंधित है।
- यह धारा विवाहित स्थिति के दौरान की गई संसूचनाओं (संवाद) से संबंधित है जो कहती है कि- कोई भी व्यक्ति, जो विवाहित है या जो विवाहित रह चुका है, किसी संसूचना को, जो किसी व्यक्ति द्वारा, जिससे वह विवाहित है या रह चुका है, विवाहित स्थिति के दौरान उसे दी गई थी, प्रकट करने के लिये विवश नहीं किया जाएगा और न वह किसी ऐसी संसूचना को प्रकट करने के लिये अनुज्ञात किया जाएगा, जब तक वह व्यक्ति, जिसने वह संसूचना दी है या उसका हित-प्रतिनिधि सम्मत न हो, सिवाय उन वादों में जो विवाहित व्यक्तियों के बीच हों या उन कार्यवाहियों में, जिनमें एक विवाहित व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध किये गए किसी अपराध के लिये अभियोजित है।
IEA की धारा 122 का उद्देश्य
- यह एक सुरक्षात्मक प्रावधान है और पति-पत्नी के बीच घरेलू शांति एवं वैवाहिक विश्वास को बनाए रखने के सिद्धांत पर आधारित है।
- इसका उद्देश्य उन बातों से बचना है जो अन्यथा परिवारों की शांति को भंग कर सकती हैं तथा उस आपसी विश्वास को कमज़ोर कर सकती हैं, जिस पर विवाहित पक्षों की प्रसन्नता निर्भर करती है।
IEA की धारा 122 का दायरा
- इस धारा में दो भाग हैं:
- पहले भाग में यह प्रावधान है कि किसी विवाहित व्यक्ति को विवाह के दौरान अपने जीवनसाथी द्वारा उससे किये गए किसी भी संवाद को प्रकट करने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा।
- दूसरे भाग में एक ऐसे मामले पर विचार किया गया है, जहाँ गवाह निम्नलिखित को छोड़कर किसी भी संवाद का प्रकटीकरण करने को तैयार है:
- जब इस संवाद को करने वाला व्यक्ति या उसका प्रतिनिधि सहमति दे।
- विवाहित व्यक्तियों के बीच वाद में।
- ऐसी कार्यवाहियों में जिसमें एक विवाहित व्यक्ति पर दूसरे के विरुद्ध किये गए किसी अपराध के लिये वाद चलाया जाता है।
विशेषाधिकार की अवधि
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के अंतर्गत विशेषाधिकार पति-पत्नी के विवाह की तिथि से प्रारंभ होता है।
- विवाह के कारण ही यह विशेषाधिकार प्राप्त होता है तथा विवाह से पूर्व पुरुष और महिला के बीच कोई भी संवाद विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है, भले ही वह पूर्ण गोपनीयता में किया गया हो।
- विवाह विच्छेद के उपरांत किया गया संवाद सुरक्षित नहीं है।
- यह विशेषाधिकार विवाह समाप्ति के उपरांत भी लागू रहता है।
- यह विशेषाधिकार किसी तीसरे व्यक्ति के विरुद्ध लागू नहीं होता।
IEA की धारा 122 का अपवाद
- विशेषाधिकार प्राप्त संवाद का साक्ष्य पति या पत्नी द्वारा संचार करने वाले पक्ष की स्पष्ट सहमति से या उसके हित प्रतिनिधि की सहमति से दिया जा सकता है।
- विवाह से पूर्व अथवा उसकी समाप्ति के उपरांत किया गया संचार।
- ऐसे मामलों में जहाँ पति-पत्नी स्वयं एक-दूसरे के विरुद्ध वाद चला रहे हों, यह धारा लागू नहीं होगी।
- केवल संवाद को प्रकटीकरण से संरक्षित किया गया है, परंतु कृत्यों या आचरण को नहीं।
निर्णयज विधियाँ
- एम. सी. वर्गीस बनाम टी. जे. पूनन (1970) मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि IEA की धारा 122, वैवाहिक जीवन के दौरान किये गए प्रत्येक संवाद पर लागू होगी तथा यही विशेषाधिकार, वैवाहिक जीवन से अलग होने, विवाह विच्छेद अथवा पृथक्करण के बाद भी जारी रहेगा।
- शाहनवाज अख्तर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1991) में यह माना गया कि पत्नी ने पति द्वारा किये गए कार्य के संबंध में न्यायालय में जो प्रस्तुत किया; पत्नी के समक्ष पति का आचरण IEA की धारा 122 के अंतर्गत संवाद के दायरे में नहीं रखा जा सकता क्योंकि इस आचरण को करने के उद्देश्य के साथ किया गया था, प्रकट करने के लिये नहीं।