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होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)

आपराधिक कानून

भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सबूत का भार

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 11-Dec-2024

परिचय

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA), जिसे पहले भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) कहा जाता था, एक महत्त्वपूर्ण कानून है जो भारतीय न्यायालयों में साक्ष्य की स्वीकार्यता को नियंत्रित करता है।
  • इस अधिनियम में निहित प्रमुख सिद्धांतों में से एक है सबूत के भार की अवधारणा, जो यह निर्धारित करती है कि कानूनी कार्यवाही में किसी विशेष तथ्य को साबित करने के लिये कौन-सा पक्ष ज़िम्मेदार है।
  • BSA के अध्याय VII में सबूत के भार के प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।
  • इन प्रावधानों का सामूहिक उद्देश्य तथ्यों को साबित करने और कानूनी अनुमान स्थापित करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण तैयार करना है, तथा यह सुनिश्चित करना है कि साक्ष्य की ज़िम्मेदारी उस पक्ष पर हो जो इसे प्रदान करने के लिये सर्वोत्तम स्थिति में हो।
  • सबूत का भार किसी कानूनी विवाद में किसी पक्ष के अपने दावों या कथनों को साबित करने के दायित्व को संदर्भित करता है।
  • BSA के अंतर्गत, साक्ष्य का भार मुख्यतः धारा 104 से धारा 114 तक नियंत्रित होता है।
  • ये धाराएँ किसी मामले में शामिल पक्षों की ज़िम्मेदारियों को रेखांकित करती हैं तथा साक्ष्य प्रस्तुत करने के मानक निर्धारित करती हैं।

सबूत के भार से संबंधित प्रमुख प्रावधान

  • धारा 104: सबूत का भार
    • BSA की धारा 104 में कहा गया है कि सबूत का भार उस पक्ष पर होता है जो किसी तथ्य के अस्तित्व का दावा करता है।
    • इसका अर्थ यह है कि अगर कोई पक्ष दावा करता है कि कोई निश्चित तथ्य सत्य है, तो उस दावे का समर्थन करने वाले साक्ष्य प्रदान करना उनकी ज़िम्मेदारी है।
    • उदाहरण के लिये, एक आपराधिक मामले में, अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे अभियुक्त के अपराध को साबित करने का भार वहन करना होता है।
  • धारा 105: सबूत का भार किस पर होता है
    • धारा 105 स्पष्ट करती है कि सिविल मामलों में सबूत पेश करने का भार उस पक्षकार पर होता है, जो आगे कोई सबूत पेश न किये जाने पर हार जाएगा।
    • यह धारा इस बात पर ज़ोर देती है कि दावा करने वाले पक्ष को पर्याप्त सबूतों के साथ इसे पुष्ट करना चाहिये, जबकि विरोधी पक्ष को केवल प्रस्तुत किये गए सबूतों का खंडन करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • धारा 106: विशेष तथ्यों के संबंध में सबूत का भार
    • BSA की धारा 106 उन स्थितियों को संबोधित करती है जहाँ कोई पक्ष किसी विशेष तथ्य पर भरोसा करना चाहता है जो सबूत के सामान्य भार का हिस्सा नहीं है।
    • ऐसे मामलों में, पक्ष को उस विशिष्ट तथ्य के अस्तित्व को साबित करना होगा।
  • धारा 107: साक्ष्य को स्वीकार्य बनाने के लिये तथ्य को साबित करने का भार
    • BSA की धारा 107 में कहा गया है कि मामले के लिये आवश्यक तथ्य को साबित करने का भार उस पक्ष पर होता है जो उस तथ्य पर भरोसा करना चाहता है।
    • यह धारा इस सिद्धांत को पुष्ट करती है कि पक्षों को उन तथ्यों के लिये सबूत प्रदान करने चाहिये जिन्हें वे अपने तर्कों में उपयोग करना चाहते हैं।
  • धारा 108: यह साबित करने का भार कि अभियुक्त का मामला अपवाद के अंतर्गत आता है
    • BSA की धारा 108 में कहा गया है कि जब किसी पर किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है, तो यह साबित करने की ज़िम्मेदारी अभियुक्त की होती है कि उसके कृत्य कानून में उल्लिखित किसी सामान्य या विशेष अपवाद के अंतर्गत आते हैं।
    • न्यायालय यह मान लेगा कि ऐसी असाधारण परिस्थितियाँ तब तक मौजूद नहीं होती हैं जब तक कि अन्यथा साबित न हो जाएँ।
    • इसका अर्थ है कि अभियुक्त को सक्रिय रूप से यह प्रदर्शित करना होगा कि उसके कृत्यों को सामान्य कानूनी परिणामों से मुक्त क्यों माना जाना चाहिये।
  • धारा 109: तथ्य को विशेषकर ज्ञान के अंतर्गत, साबित करने का भार
    • BSA की धारा 109 में कहा गया है कि कानूनी कार्यवाही में, यदि कोई विशिष्ट तथ्य ऐसा है जिसे केवल एक विशेष व्यक्ति ही अच्छी तरह से जानता है, तो उस व्यक्ति को ऐसे तथ्य को साबित करने का भार वहन करना होगा।
    • यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि प्रत्यक्ष, अद्वितीय ज्ञान वाले व्यक्ति उन दावों को प्रमाणित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं जिन्हें केवल वे ही प्रभावी रूप से समझा सकते हैं।
  • धारा 110: तीस वर्षों के भीतर जीवित रहे किसी व्यक्ति की मृत्यु साबित करने का भार
    • BSA की धारा 110 में कहा गया है कि जीवन और मृत्यु के सवालों के संबंध में कानूनी प्रणाली में सबूत स्थापित करने के लिये विशिष्ट नियम हैं।
    • यदि यह दिखाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति पिछले 30 वर्षों के भीतर जीवित था, तो कोई भी व्यक्ति जो यह दावा करता है कि वह व्यक्ति अब मृत है, उसे उस दावे का समर्थन करने के लिये सबूत पेश करने होंगे।
  • धारा 111: यह साबित करने का भार कि वह व्यक्ति जीवित है, जिसके बारे में सात वर्षों से कोई जानकारी नहीं है
    • धारा 111 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति से सात वर्षों तक उन लोगों द्वारा संपर्क नहीं किया जाता है जो सामान्यतः उसके संपर्क में रहते हैं (जैसे परिवार या करीबी मित्र), तो यह दायित्व उन लोगों पर आ जाता है जो दावा करते हैं कि वह व्यक्ति अभी भी जीवित है, कि वह उसकाअस्तित्व सिद्ध करें।
  • धारा 112: भागीदारों, मकान मालिक और किरायेदार, स्वामी और अभिकर्त्ता के मामलों में संबंध के बारे में सबूत का भार
    • धारा 112 में कहा गया है कि कानून कुछ विशेष संबंधों के संदर्भ में अनुमानों को भी संबोधित करता है।
    • जब व्यक्ति स्पष्ट रूप से भागीदार, मकान मालिक और किरायेदार, या स्वामी और अभिकर्त्ता के रूप में कार्य कर रहे हों, तो कोई भी व्यक्ति जो यह दावा करता है कि ऐसा संबंध मौजूद नहीं है या समाप्त हो गया है, उसे अपने दावे का समर्थन करने के लिये सबूत पेश करना होगा।
    • यह दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से मौजूदा संबंध को चुनौती देने वाले पक्ष पर सबूत का भार डालकर अनावश्यक विवादों को रोकता है।
  • धारा 113: स्वामित्व के संबंध में साक्ष्य का भार
    • धारा 113 में कहा गया है कि स्वामित्व के मामलों में, यदि किसी के पास कोई वस्तु पाई जाती है, तो उसे उसका मालिक माना जाएगा।
    • इस स्वामित्व को चुनौती देने वाले किसी भी व्यक्ति को यह साबित करने के लिये साक्ष्य प्रस्तुत करना होगा कि कब्जाधारक वास्तविक मालिक नहीं है।
    • यह सिद्धांत वर्तमान मालिकों की सुरक्षा करता है और स्वामित्व स्थापित करने के लिये एक स्पष्ट मानक प्रदान करता है।
  • धारा 114: ऐसे संव्यवहार में सद्भावना का सबूत जहाँ एक पक्ष सक्रिय विश्वास के संबंध में है
    • धारा 114 में कहा गया है कि असमान शक्ति गतिशीलता वाले पक्षों से जुड़े संव्यवहार में, विशेष रूप से जहाँ एक पक्ष सक्रिय विश्वास की स्थिति में है (जैसे कि एक प्रत्ययी संबंध), संव्यवहार की सद्भावना साबित करने का भार अधिक शक्तिशाली स्थिति में मौजूद पक्ष पर पड़ता है।
    • यह नियम अधिक प्रभावशाली लोगों से उनके कार्यों की निष्पक्षता और अखंडता को प्रदर्शित करने की आवश्यकता के माध्यम से कमज़ोर पक्षों को संभावित शोषण से बचाने में सहायता करता है।

सबूत के भार के निहितार्थ

  • कानूनी कार्यवाही के संचालन के लिये सबूत के भार का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
  • यह दोनों पक्षों द्वारा नियोजित रणनीतियों को प्रभावित करता है, क्योंकि उन्हें सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिये कि अपने साक्ष्य और तर्क कैसे प्रस्तुत करें।
  • इसके अतिरिक्त, सबूत का भार न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह पक्षों को अपेक्षित साक्ष्य के बिना निराधार दावे करने से रोकता है।

निष्कर्ष

BSA के तहत सबूत का भार एक मौलिक सिद्धांत है जो भारत में कानूनी कार्यवाही के परिदृश्य को आकार देता है। शामिल पक्षों की ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से चित्रित करके, अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि न्याय निष्पक्ष और न्यायसंगत प्रक्रिया के माध्यम से दिया जाता है। सबूत के भार की बारीकियों को समझना कानूनी पेशेवरों के लिये आवश्यक है, क्योंकि यह कानून के विभिन्न क्षेत्रों में मामलों के परिणाम को सीधे प्रभावित करता है।