होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)

आपराधिक कानून

BSA एवं IEA का तुलनात्मक विश्लेषण

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 13-Jan-2025

परिचय

भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023 भारत की साक्ष्य विधि के एक महत्त्वपूर्ण आधुनिकीकरण का प्रतिनिधित्व करता है, जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 (IEA) द्वारा रखी गई नींव पर आधारित है।

  • जबकि IEA का प्राथमिक उद्देश्य साक्ष्य विधि को समेकित, परिभाषित एवं संशोधित करना था, BSA स्पष्ट रूप से अपने नियमों एवं सिद्धांतों के द्वारा निष्पक्ष विचारण सुनिश्चित करने पर बल देता है।

BSA एवं IEA की प्रमुख विशेषताओं की तुलना

विशेषता

BSA

IEA

प्रादेशिक अधिकार क्षेत्र

कोई स्पष्ट अधिकारिता नहीं; इसे भारतीय सीमा से बाहर उपलब्ध डिजिटल साक्ष्य को संबोधित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

स्पष्ट प्रादेशिक सीमा प्रदान की गई है।

सैन्य न्यायालय में आवेदन के लिये प्रावधान

यह सैन्य न्यायालयों पर लागू होता है, जिससे सिविल एवं सैन्य न्याय प्रणालियों में एकरूपता आती है।

सैन्य कृत्यों के निपटान के लिये मार्शल कोर्ट इसमें शामिल नहीं है।

मुख्य अवधारणाओं का आधुनिकीकरण

दस्तावेज़ों की परिभाषा

इसमें इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल रिकॉर्ड को शामिल करने के लिये आधुनिकीकरण किया गया है, जिसमें ईमेल, सर्वर लॉग, स्मार्टफोन सामग्री आदि शामिल हैं।

पारंपरिक परिभाषा भौतिक दस्तावेजों पर केंद्रित थी।

साक्ष्यों का वर्गीकरण

इसमें मौखिक साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक अभिकथन एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में डिजिटल रिकॉर्ड शामिल हैं।

डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के लिये सीमित प्रावधान।

परिभाषा में परिवर्तन

आधुनिक संवेदनशीलता को प्रतिबिंबित करने के लिये अद्यतन: तटस्थ भाषा, आधुनिक शब्द, वस्तुनिष्ठ तथ्य परिभाषाएँ।

पुरानी शब्दावली एवं अवधारणाएँ यथावत रखी गईं।

विधिक ढाँचे के साथ एकीकरण

एक सुसंगत ढाँचे के लिये IT अधिनियम, 2000, BNSS, 2023 और भारतीय न्याय संहिता 2023 के साथ सशक्त संरेखण।

आधुनिक विधि के साथ सीमित एकीकरण।

प्रासंगिक तथ्यों का विस्तृत दायरा

एक ही संव्यवहार के अंश के रूप में प्रासंगिक प्रावधानों से संबंधित तथ्यों के लिये प्रासंगिकता का विस्तार करता है।

प्रासंगिकता प्रावधान के तथ्यों एवं प्रत्यक्ष प्रासंगिकता तक सीमित है।

मूल सिद्धांतों का संरक्षण

मूलभूत परिभाषाएँ

"न्यायालय", "निर्णायक प्रमाण" एवं "अस्वीकृत" जैसी मुख्य परिभाषाएँ यथावत हैं।

ऐतिहासिक रूप से वही परिभाषाएँ यथावत हैं।

प्रवेश नियम

अभिस्वीकृति के लिये सुसंगत नियम, जिनमें दस्तावेज़ की विषय-वस्तु के विषय में मौखिक संस्वीकृति भी शामिल है।

अभिस्वीकृति के लिये भी यही सिद्धांत लागू होंगे।

निहितार्थ एवं प्रभाव

BSA संशोधन के कई महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं:

  • डिजिटल साक्ष्य प्रबंधन:
    • डिजिटल साक्ष्य को स्वीकार करने तथा उसका मूल्यांकन करने के लिये स्पष्ट रूपरेखा।
    • आधुनिक संचार एवं अभिलेखों के प्रबंधन के लिये बेहतर ढंग से सुसज्जित।
  • सैन्य न्याय:
    • सिविल एवं सैन्य न्यायालयों में साक्ष्य नियमों का सामंजस्य।
    • अधिक सुसंगत न्यायशास्त्र की संभावना।
  • अंतर्राष्ट्रीय साक्ष्य:
    • विदेशी अधिकारिता से प्राप्त साक्ष्यों के प्रबंधन में अधिक लचीलापन।
    • भारतीय सीमा से बाहर जाँच एवं कार्यवाही के लिये बेहतर ढंग से सुसज्जित।
  • तकनीकी संयोजन:
    • भविष्य के परिप्रेक्ष्य में परिभाषाएँ जो उभरती प्रौद्योगिकियों को समायोजित कर सकती हैं।
    • आधुनिक जाँच एवं साक्ष्य संग्रहण हेतु उपयोगी तकनीक के लिये स्पष्ट सांविधिक आधार।

निष्कर्ष

BSA भारत के साक्ष्य विधि के एक महत्त्वपूर्ण आधुनिकीकरण का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही इसके मूल सिद्धांतों को यथावत रखता है। संशोधन मुख्य रूप से तकनीकी प्रगति को समायोजित करने एवं अधिक एकीकृत, आधुनिक विधिक ढाँचे का निर्माण करने पर केंद्रित हैं। निष्पक्ष विचारण एवं डिजिटल साक्ष्य की स्पष्ट मान्यता पर बल न्याय प्रशासन के लिये एक दूरदर्शी दृष्टिकोण को इंगित करता है। इन अद्यतनों के साथ-साथ मौलिक अवधारणाओं का संरक्षण विधिक विकास के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण का सुझाव देता है।