होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)
आपराधिक कानून
स्मृति ताज़ा करना
«15-Nov-2024
परिचय
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) के अध्याय X में साक्षियों की जाँच के बारे में प्रावधान बताए गए हैं।
- न्यायिक प्रणाली का मुख्य उद्देश्य किसी भी प्रक्रियागत सीमाओं की परवाह किये बिना न्याय सुनिश्चित करना है।
- स्मृति ताज़ा करना एक अवधारणा है जो साक्षी को उसके द्वारा लिखे गए किसी भी लेखन या दस्तावेज़ का संदर्भ देकर उसकी स्मृति को ताज़ा करने की अनुमति देती है।
- यह तथ्यों की बेहतर पुष्टि और निष्कर्ष तक पहुँचने में सहायता करता है।
साक्षी कौन है?
परिचय:
- साक्षी वह व्यक्ति होता है जिसने व्यक्तिगत रूप से किसी घटना को घटित होते देखा हो। घटना कोई अपराध या दुर्घटना या कुछ भी हो सकती है। BSA की धारा 124-139 में इस बारे में बताया गया है कि कौन साक्षी के रूप में साक्ष्य दे सकता है, कोई कैसे साक्ष्य दे सकता है, कौन-से कथन परिसाक्ष्य माने जाएँगे, इत्यादि।
- BSA की धारा 124 के अनुसार सक्षम साक्षी वह होता है जिसके पास न्यायालय द्वारा पूछे गए प्रश्नों को समझने की क्षमता और योग्यता हो। यदि उसके पास प्रश्नों की समझ और तर्कसंगत उत्तर देने की क्षमता है, तो वह सक्षम साक्षी है।
- कोई भी व्यक्ति साक्षी हो सकता है। साक्षी कौन हो सकता है, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
- कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या महिला, बच्चा हो या वृद्ध, साक्षी हो सकता है। एकमात्र प्रतिबंध यह है कि यदि कोई व्यक्ति प्रश्नों को नहीं समझता है और तर्कसंगत रूप से उत्तर देने में सक्षम नहीं है, तो वह सक्षम साक्षी नहीं है।
BNS के तहत स्मृति ताज़ा करने के प्रावधान
- धारा 162: स्मृति ताज़ा करना
- एक साक्षी परीक्षण के दौरान संव्यवहार के समय या उसके तुरंत बाद स्वयं या अन्य लोगों द्वारा लिखे गए लेखों का हवाला देकर अपनी स्मृति ताज़ा कर सकता है।
- यदि किसी साक्षी ने उस समय सीमा के भीतर किसी अन्य व्यक्ति का लेख पढ़ा हो और उसे सही पता हो, तो वे उसका भी संदर्भ ले सकते हैं।
- यदि न्यायालय द्वारा अनुमति दी जाए तो साक्षी अपनी स्मृति ताज़ा करने के लिये दस्तावेज़ की प्रति का उपयोग कर सकता है, बशर्ते कि मूल प्रति प्रस्तुत न करने का कोई वैध कारण हो।
- इसके अतिरिक्त, एक विशेषज्ञ साक्षी पेशेवर लेखों का उपयोग करके अपनी स्मृति ताज़ा कर सकता है।
- धारा 163: धारा 162 में उल्लिखित दस्तावेज़ में बताए गए तथ्यों का परिसक्ष्य
- धारा 160 में यह निर्दिष्ट किया गया है कि कोई साक्षी धारा 159 में उल्लिखित किसी दस्तावेज़ में वर्णित तथ्यों का भी साक्ष्य दे सकता है, भले ही उसे तथ्यों का कोई विशिष्ट स्मरण न हो, यदि वह आश्वस्त है कि दस्तावेज़ में तथ्य सही ढंग से अभिलिखित किये गए थे।
- उदाहरण के लिये, एक मुनीम अपने द्वारा व्यवसाय के दौरान नियमित रूप से रखी गई पुस्तकों में दर्ज तथ्यों का साक्ष्य दे सकता है, यदि वह जानता है कि पुस्तकें सही ढंग से रखी गई थीं, हालाँकि वह दर्ज किये गए विशेष लेन-देन को भूल गया है।
- धारा 164: स्मृति ताज़ा करने के लिये प्रयुक्त लेखन के संबंध में प्रतिकूल पक्षकार का अधिकार
- यह धारा स्मृति ताज़ा करने के लिये प्रयुक्त दस्तावेज़ के बारे में साक्षी से प्रतिपरीक्षा करने के प्रतिकूल पक्षकार के अधिकार से संबंधित है।
- यह विरोधी पक्षकार को दस्तावेज़ की विषय-वस्तु के बारे में साक्षी से प्रश्न करने तथा साक्षी के साक्ष्य का खंडन करने के लिये कोई अन्य साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति देता है।
ऐतिहासिक निर्णय
- शैलेश कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024):
- न्यायमूर्ति एम.एम.सुंदरेश और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की खंडपीठ ने कहा कि यदि पुलिस अधिकारी ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत उसकी स्मृति ताज़ा करने के लिये केस डायरी का उपयोग किया है, तो अभियुक्त उस केस डायरी के आधार पर पुलिस अधिकारी से प्रतिपरीक्षा कर सकता है।
- मीना तुयेकर बनाम गोवा राज्य लोक अभियोजक (2024):
- इस मामले में न्यायालय ने माना कि साक्षी द्वारा अपनी स्मृति ताज़ा करने में कुछ भी गलत नहीं है, बल्कि यह कार्य न्यायालय के समक्ष किया जाना चाहिये था, न्यायालय के बाहर नहीं।
निष्कर्ष
आपराधिक न्याय प्रणाली में स्मृति को ताज़ा करना एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है। इससे मामले को बेहतर ढंग से समझने और साक्षी की वास्तविक जाँच करने में सहायता मिलती है। यह साक्षी के साथ-साथ प्रतिकूल पक्षकार का भी अधिकार है। प्रक्रिया को सख्त न्यायिक निगरानी में संचालित किया जाना चाहिये, जिसमें अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के अधिवक्ता दोनों मौजूद हों, साक्षियों के अधिकारों की रक्षा करते हुए साक्ष्य की अखंडता को बनाए रखा जाए।