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होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)

आपराधिक कानून

रेस इप्सा लोकिटुर

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 04-Sep-2024

परिचय:

  • रेस इस्पा लोकिटूर एक ऐसा विधिक सूत्र है जिसका अर्थ है कि वे चीज़ें जो अपने आप में बोलती हैं।
  • जिन मामलों में साक्ष्य पर्याप्त हैं, वहाँ यह सिद्धांत लागू होता है।
  • यह सिद्धांत वहाँ लागू होता है, जहाँ प्रस्तुत साक्ष्य के साथ सीधे तौर पर अपराध की ओर इशारा किया जा सकता है।
  • जिन मामलों में यह सिद्धांत लागू होता है, वहाँ साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार सीधे प्रतिवादी पर चला जाता है।
  • वादी रेस इस्पा लोकिटूर लागू करके अपराध को स्थापित करने के लिये परिस्थितिजन्य साक्ष्य का उपयोग कर सकता है।

रेस इप्सा लोकिटुर के उद्देश्य:

  • यह निष्पक्ष सुनवाई के विचार को बढ़ावा देता है, जहाँ सभी संभावित तथ्यों को सिद्ध करना आसान हो जाता है तथा किसी ऐसी चीज़ को सिद्ध करने का बोझ नहीं होता जो असंभव है एवं इससे अभियुक्त को लाभ होता है।
  • यह अभियुक्त को तथ्यों की शृंखला से प्राप्त तथ्यों की धारणा का खंडन करने का अवसर प्रदान करता है।

रेस इप्सा लोकिटूर की प्रयोज्यता से संबंधित सिद्धांत:

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 106 के अनुप्रयोग से संबंधित सिद्धांत निम्नानुसार हैं:
    • न्यायालय को आपराधिक मामलों में IEA की धारा 106 को सावधानी एवं सतर्कता के साथ लागू करना चाहिये। यह नहीं कहा जा सकता कि आपराधिक मामलों में इसका कोई अनुप्रयोग नहीं है।
    • अभियोजन पक्ष द्वारा अभियुक्त के अपराध की ओर इशारा करने वाली परिस्थितियों के साक्ष्य प्रस्तुत करने में असमर्थता की भरपाई के लिये इस विधिक सूत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
    • इस विधिक सूत्र का प्रयोग दोषसिद्धि का समर्थन करने के लिये तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि अभियोजन पक्ष ने अपराध को आरोपित करने के लिये आवश्यक सभी तत्त्वों को सिद्ध करके दायित्व का निर्वहन नहीं कर लिया हो।
    • यह अभियोजन पक्ष को यह सिद्ध करने के कर्त्तव्य से मुक्त नहीं करता है कि कोई अपराध किया गया था, भले ही यह विशेष रूप से अभियुक्त के ज्ञान में मामला हो तथा यह अभियुक्त पर यह दिखाने का भार नहीं डालता है कि कोई अपराध नहीं किया गया था।
    • यह विधिक सूत्र उन मामलों में लागू नहीं होती है जहाँ प्रश्नगत तथ्य, अपनी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, ऐसा है कि न केवल अभियुक्त को बल्कि अन्य लोगों को भी ज्ञात हो सकता है, यदि वे उस समय मौजूद थे जब यह हुआ था।
    • यह विधिक सूत्र उन मामलों पर लागू होगी जहाँ अभियोजन पक्ष के विषय में यह कहा जा सकता है कि वह उन तथ्यों को सिद्ध करने में सफल रहा है जिनसे अभियुक्त के अपराध के संबंध में उचित निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 109:

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (BSA) की धारा 109, अध्याय VII के भाग IV के अंतर्गत दी गई है।
  • पहले इसी धारा को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के अंतर्गत, अध्याय VII के भाग III के अंतर्गत शामिल किया गया था।
  • धारा 109, विशेष रूप से ज्ञान के द्वारा तथ्य सिद्ध करने का भार निम्नानुसार है-
  • जब कोई तथ्य विशेष रूप से किसी व्यक्ति के ज्ञान में हो, तो उस तथ्य को सिद्ध करने का भार उसी पर होता है।
  • स्पष्टीकरण:
    • जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को उस कार्य के स्वरूप एवं परिस्थितियों से भिन्न किसी अन्य आशय से करता है, तो उस आशय को सिद्ध करने का भार उस पर होता है।
    • A पर बिना टिकट के रेलवे में यात्रा करने का आरोप है। यह सिद्ध करने का भार कि उसके पास टिकट था, उस पर है।”

रेस इप्सा लोकिटुर और प्रथम दृष्टया साक्ष्य:

  • प्रथम दृष्टया साक्ष्य वह साक्ष्य है जो तथ्य को सत्य सिद्ध या मिथ्या सिद्ध करने में सहायता करता है।
  • जबकि रेस इस्पा लोकिटूर तब लागू होता है जब घटना के लिये कोई अन्य उचित कारण मौजूद नहीं होता है तथा तथ्य देयता के स्पष्ट होते हैं।
  • दोनों सिद्धांत निर्णायक नहीं हैं तथा इनका खंडन किया जा सकता है।

रेस इप्सा लोकिटूर से संबंधित ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?

  • नागेंद्र शाह बनाम बिहार राज्य (2021):
    • उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामलों में, IEA की धारा 106 के अनुसार उचित स्पष्टीकरण देने में अभियुक्त की विफलता, परिस्थितियों की शृंखला में एक अतिरिक्त कड़ी के रूप में कार्य कर सकती है।
  • शंभू नाथ मेहरा बनाम अजमेर राज्य (1956):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह शब्द विशेष रूप से इस बात पर ज़ोर देता है कि इसका अर्थ ऐसे तथ्य हैं जो उसके ज्ञान में सर्वोपरि या अपवादस्वरूप हैं।
    • यदि इस धारा की व्याख्या अन्यथा की जाए, तो यह बहुत ही चौंकाने वाले निष्कर्ष पर पहुँचेगा कि हत्या के मामले में यह सिद्ध करने का भार अभियुक्त पर है कि उसने हत्या नहीं की है, क्योंकि उससे बेहतर कौन जान सकता है कि उसने हत्या की है या नहीं।
  • अनीस बनाम NCT राज्य सरकार (2015):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने IEA की धारा 106 के आवेदन से संबंधित सिद्धांतों की व्याख्या की
  • श्री राजेन नायक बनाम असम राज्य एवं अन्य (2024):
    • यह माना गया कि अभियुक्त को चुप रहने का अधिकार है तथा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 106 के प्रावधानों के अधीन, जब अपराध के कई साक्षी मौजूद हों, तो साक्ष्य का भार अभियुक्त पर नहीं डाला जा सकता।

निष्कर्ष:

BNS की धारा 109, BNS की धारा 104 का अपवाद है (पहले BNS की धारा 109, IEA की धारा 106 के अंतर्गत आती थी तथा BNS की धारा 104, IEA की धारा 101 के अंतर्गत आती थी)। मुख्य रूप से अभियुक्त के संज्ञान में मौजूद तथ्यों को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। रेस इस्पा लोकिटूर के सिद्धांत को लागू करने के लिये प्रथम दृष्टया मामला सिद्ध किया जाना चाहिये।