Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)

आपराधिक कानून

BSA के अंतर्गत विशेष परिस्थितियों में दिये गए बयान

    «
 18-Sep-2024

परिचय:

विशेष परिस्थितियों में दिये गए बयानों से संबंधित प्रावधान भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) के भाग II के अंतर्गत आते हैं।

  • BSA की धारा 28 से धारा 32 विशेष परिस्थितियों में दिये गए बयानों से संबंधित सभी प्रावधानों को समाहित करती हैं।

BSA की धारा 28:

  • प्रासंगिक होने पर लेखा पुस्तकों में प्रविष्टियाँ:
    • इस प्रावधान में कहा गया है कि कारोबार के दौरान नियमित रूप से रखी जाने वाली लेखा-बही की प्रविष्टियाँ, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखी गई प्रविष्टियाँ भी शामिल हैं, प्रासंगिक हैं, जब भी वे किसी ऐसे मामले का संदर्भ देती हैं, जिसमें न्यायालय को जाँच करनी हो, परंतु ऐसे बयान किसी व्यक्ति पर दायित्व आरोपित करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य नहीं होंगे।
    • इस धारा को एक उदाहरण की सहायता से निम्नवत समझाया गया है:
      • A ने B पर एक हज़ार रुपए के लिये वाद दायर किया और अपनी खाता बहियों में प्रविष्टियाँ दर्शाईं, जिनसे पता चलता है कि B इस राशि के लिये उसका ऋणी है। प्रविष्टियाँ सुसंगत हैं, परंतु अन्य साक्ष्य के बिना, ऋण को सिद्ध करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।

BSA की धारा 29:

  • कर्त्तव्य पालन में सार्वजनिक अभिलेख या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में की गई प्रविष्टि की प्रासंगिकता:
    • इस प्रावधान में कहा गया है कि किसी सार्वजनिक या अन्य सरकारी पुस्तक, रजिस्टर या अभिलेख या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में कोई प्रविष्टि, जिसमें किसी मुद्दे से संबंधित तथ्य या प्रासंगिक तथ्य का उल्लेख हो और जो किसी लोक सेवक द्वारा अपने आधिकारिक कर्त्तव्य के निर्वहन में या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उस देश के विधान द्वारा विशेष रूप से निर्दिष्ट कर्त्तव्य के पालन में की गई हो जिसमें ऐसी पुस्तक, रजिस्टर या अभिलेख या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रखा गया हो, स्वयं में एक प्रासंगिक तथ्य है।

BSA की धारा 30:

  • मानचित्रों, चार्टों एवं योजनाओं में बयानों की प्रासंगिकता:
    • इस धारा में यह कहा गया है कि सार्वजनिक बिक्री के लिये सामान्यतः प्रस्तुत किये गए प्रकाशित मानचित्रों या चार्टों में, अथवा केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के प्राधिकार के अधीन बनाए गए मानचित्रों या योजनाओं में विवाद्यक तथ्यों या सुसंगत तथ्यों के कथन, ऐसे मानचित्रों, चार्टों या योजनाओं में सामान्यतः दर्शाए गए या कथित विषयों के संबंध में स्वयं सुसंगत तथ्य हैं।

BSA की धारा 31:

  • कुछ अधिनियमों या अधिसूचनाओं में निहित सार्वजनिक प्रकृति के तथ्य के विषय में बयान की प्रासंगिकता:
    • इस धारा में कहा गया है कि जब न्यायालय को किसी सार्वजनिक प्रकृति के तथ्य के अस्तित्व के विषय में कोई राय बनानी हो, तो किसी केंद्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम में या केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार की अधिसूचना में, जो संबंधित राजपत्र में या किसी मुद्रित-पत्र में या इलैक्ट्रानिक या डिजिटल रूप में प्रकाशित हो, जो ऐसा राजपत्र होने का तात्पर्य रखता हो, अंतर्विष्ट किसी विवरण में किया गया उसका कथन सुसंगत तथ्य है।

BSA की धारा 32:

  • इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रूप सहित विधि की पुस्तकों में निहित किसी भी विधान के विषय में बयानों की प्रासंगिकता:
    • इस धारा में यह कहा गया है कि जब न्यायालय को किसी देश के विधान के विषय में कोई राय बनानी हो, तो ऐसे विधान का कोई कथन, जो उस देश की सरकार के प्राधिकार के अधीन मुद्रित या प्रकाशित होने को तात्यर्पित है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रूप भी शामिल है और जिसमें ऐसा कोई विधान शामिल है तथा ऐसे देश के न्यायालयों के किसी निर्णय की कोई रिपोर्ट, जो इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रूप में किसी पुस्तक में शामिल है एवं जिसमें ऐसे निर्णयों की रिपोर्ट होने को तात्यर्पित है, सुसंगत है।

निर्णयज विधियाँ:

  • प्रसाद बनाम नरेंद्रनाथ सेन (1953): इस मामले में न्यायालय ने माना कि जो खाते, खुले पन्नों में बने होते हैं, उनका विधिक प्रभाव खाता बहियों के समान नहीं हो सकता।
  • के. रामचंद्र रेड्डी बनाम सरकारी अभियोजक (1976): इस मामले में न्यायालय ने माना कि यदि बयान देने वाला व्यक्ति अपने बयानों की साक्षी देने के लिये उपलब्ध नहीं है, तो सुनी-सुनाई बातों पर आधारित साक्ष्य पर भी विचार किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 34 से 39 विशेष परिस्थितियों में दिये गए बयानों की अवधारणा से संबंधित हैं। साक्ष्य खोजना कठिन प्रक्रिया है। न्याय के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये BNSS के अंतर्गत प्रावधान भी कुछ साक्ष्यों की विश्वसनीयता एवं उनके साक्ष्यिक महत्त्व के विषय में बताते हैं।