विबंध
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विबंध

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 27-Jun-2024

परिचय:

‘एस्टाॅपल’ शब्द फ्रेंच शब्द ‘एस्टाॅप’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘रोकने वाला’। ‘एस्टाॅपल’ शब्द को अंग्रेज़ी न्यायशास्त्र द्वारा ऐसे व्यक्ति को मौन करने के उद्देश्य से अपनाया गया था जो किसी तथ्य या स्थिति के विपरीत दलील दे रहा हो जिसे उसने स्वयं पहले शब्दों या आचरण से पुष्ट किया हो।

  • एस्टाॅपल (विबंध) का नियम "एलेगन्स कॉन्ट्रेरिया नॉन एस्ट ऑडिएंडस" विधिक सूत्र पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि विपरीत तथ्य प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति का कथन नहीं सुना जाना चाहिये।
  • एस्टाॅपल का उद्देश्य प्रवंचना (कपट) को रोकना और ईमानदारी एवं सद्भावना को बढ़ावा देकर पक्षों के मध्य न्याय सुनिश्चित करना है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 121 से 123 विबंध से संबंधित है। धारा 121 का सामान्य नियम यह निर्धारित करती है, जबकि धारा 122 एवं 123 करार द्वारा विबंध के विशेष उदाहरणों से संबंधित है।

आवश्यक तत्त्व:

  • किसी मामले को धारा 121 की परिधि में लाने के लिये निम्नलिखित बिंदु आवश्यक हैं:
    • एक पक्ष को दूसरे पक्ष के समक्ष किसी मौजूदा मामले के विषय में मात्र एकवचन से अलग एक अभ्यावेदन करना चाहिये।
    • अभ्यावेदन इस आशय से किया जाना चाहिये कि उस पर कार्यवाही की जा सके।
    • दूसरे पक्ष को उक्त तथ्यात्मक अभ्यावेदन को स्वीकार करना चाहिये तथा उस पर विश्वास करना चाहिये, अर्थात् उस दूसरे पक्ष की ओर से विश्वास होना चाहिये।
    • विश्वास से उत्पन्न कार्यवाही होनी चाहिये, अर्थात् अभ्यावेदन पर कार्यवाही की गई होगी।

विबंध के प्रकार:

  • रिकॉर्ड (अभिलेख) के आधार पर विबंध:
    • रिकॉर्ड द्वारा विबंध, पक्षकारों को उस मामले के पुनर्परीक्षण एवं पुनर्विचारण करने से रोकता है जिसे अंतिम रूप से सक्षम न्यायालय द्वारा उनके मध्य सुलझा लिया गया है।
    • रिकॉर्ड द्वारा विबंध, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 11 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 40 से 44 के अंतर्गत आता है।
    • इस प्रकार के विबंध को निर्णय द्वारा विबंध के रूप में भी जाना जाता है।
  • विलेख द्वारा विबंध:
    • जब कोई पक्षकार विलेख द्वारा कुछ तथ्यों के विषय में गंभीर प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है, तो ऐसी दशा में न तो उसे और न ही उसके माध्यम से या उसके अधीन दावा करने वाले किसी अन्य व्यक्ति को ऐसे तथ्यों से मना करने की अनुमति है।
    • जहाँ विलेख प्रवंचना या अवैधता से प्रभावित होता है, वहाँ विबंध नहीं है।
  • पवित्र उद्देश्य या आचरण द्वारा विबंध:
    • पवित्र उद्देश्य से तात्पर्य है “जनता के सामने” तथा पवित्र उद्देश्य हेतु विबंध से तात्पर्य आचरण/प्रतिनिधित्व द्वारा विबंध के रूप में है।
    • आचरण द्वारा विबंध किसी रूप में निम्न से उत्पन्न हो सकता है:
    • एक संविदा या
    • संविदा के बाहर एकतरफा कथनों, कृत्यों या चूकों द्वारा जो किसी अन्य पक्ष को उस पर विश्वास करने एवं कार्य करने के लिये प्रेरित करते हैं।
  • वचन विबंध:
    • वचन विबंध एक विधिक सिद्धांत है जो किसी पक्ष को औपचारिक सविदा के बिना किये गए वचन पर वसूली करने की अनुमति देता है यदि उन्होंने अपने हानि के लिये उस वचन पर विश्वास किया है।
    • यह अन्याय को रोकने के लिये एक न्यायसंगत उपाय है जो तब उत्पन्न हो सकता है जब एक पक्ष दूसरे के वचन पर विश्वास करता है।

वचन विबंध का सार:

  • वचन-विबंध संबंधी रोक लागू होने के लिये, निम्न शर्तों की पूर्ति होनी चाहिये:
    • स्पष्ट एवं निश्चित वचन: वचनदाता द्वारा स्पष्ट एवं निश्चित वचन दिया जाना चाहिये।
    • वचनदाता द्वारा विश्वास: वचनदाता को वचन पर युक्तियुक्त विश्वास होना होगा।
    • क्षति: विश्वास के कारण वचनदाता को क्षति या हानि कारित हुई होगी।
    • वचन-पालन न होने की स्थिति में अन्याय की संभावना: यह दर्शाया जाना चाहिये कि वचन का पालन न करना अन्याय होगा।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत विबंध के अपवाद:

  • जहाँ सत्य ज्ञात हो वहाँ विबंध नहीं:
    • तथ्यों का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति विबंध के सिद्धांत का लाभ प्राप्त नहीं कर सकता।
  • भूल की स्थिति में विबंध नहीं:
    • जहाँ दोनों पक्षों ने समान मिथ्या बोध के अधीन कार्य किया हो, वहाँ स्थिति स्पष्ट होने तक विबंध आरोपित नहीं की जा सकती।
  • कुछ करने का वचन देने मात्र से विबंध नहीं:
    • भविष्य में कुछ करने का मात्र वचन देने से विबंध आरोपित नहीं होगा।
  • जब दोनों पक्ष विबंध का तर्क देते हैं:
    • यदि दोनों पक्षकार विबंध के आवेदन के लिये मामला स्थापित करते हैं, तो दोनों पक्षों को मुक्त कर दिया जाएगा तथा न्यायालय को इस प्रकार विचारण करना होगा जैसे कि दोनों पक्षों की ओर से विबंध की कोई दलील नहीं है।
  • प्रवंचना, दुर्व्यपदेशन, दूसरे पक्ष की ओर से की गई उपेक्षा:
    • यदि दूसरे पक्ष की ओर से कोई प्रवंचना कारित हुई है, जिसे वचनदाता द्वारा सामान्य सावधानी से नहीं पकड़ा जा सकता है, तो विबंध लागू नहीं होगा।
  • सत्यापन मात्र से विबंध नहीं:
    • सत्यापन में विलेख की विषय-वस्तु के बारे में साक्षी की कोई सूचना शामिल नहीं होती है, इसका उपयोग अधिक से अधिक प्रतिपरीक्षा के उद्देश्य के लिये किया जा सकता है, लेकिन इससे न तो विबंध लागू होगी तथा न ही सहमति का संकेत मिलेगा।
  • किसी संविधि या विधि के विरुद्ध विबंध नहीं:
    • विधि के किसी बिंदु (विशुद्ध प्रश्न) पर या विधि के किसी स्थापित प्रस्ताव पर या किसी विधि के प्रावधानों को पराजित करने के लिये विबंध लागू नहीं की जा सकती।
  • सार्वजनिक हित में संप्रभु कृत्यों पर विबंध नहीं:
    • सरकार के संप्रभु, विधायी एवं कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में कोई बाधा नहीं डाली जा सकती।
  • किरायेदार एवं लाइसेंसधारक या कब्ज़े वाले व्यक्ति का विबंध:
    • BSA, 2023 की धारा 122 के अधीन अंतर्निहित नीति यह है कि कब्ज़ा प्राप्त करने वाले किरायेदार/लाइसेंसधारक को इसे इस शर्त पर प्राप्त करने वाला माना जाता है कि वह उस स्वामी/लाइसेंसधारक के स्वामित्व पर विवाद नहीं करेगा जिसने उसे यह दिया था तथा जिसकी अनुमति के बिना उसे यह नहीं मिल सकता था।
    • किरायेदार/लाइसेंसधारक को अपने मकान मालिक/लाइसेंसधारक के स्वामित्व को अस्वीकार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

विनिमय-पत्र के ग्राही, उपनिहिती या लाइसेंसधारक का विबंधन:

  • BSA, 2023 की धारा 123 करार द्वारा विबंध के अन्य उदाहरणों से संबंधित है।
  • यह चल संपत्ति के संबंध में विबंध से संबंधित है तथा इस पर लागू है:
    • विनिमय-पत्र का ग्राही
    • उपनिहिती
    • लाइसेंसधारक

निर्णयज विधियाँ:

  • टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड बनाम भारत संघ (2000):
    • उच्चतम न्यायालय ने विबंध के सिद्धांत के गठन के लिये आवश्यक सिद्धांतों को संक्षेप में निर्धारित किया।
  • पिकार्ड बनाम सियर्स (1837):
    • इस मामले में विबंध के सिद्धांत की स्थापना की गई थी।
    • न्यायालय ने विबंध को एक ऐसे सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया है जो किसी व्यक्ति को न्यायालय में उसके द्वारा पहले कहे गए कथन से मना करने से रोकता है।

निष्कर्ष:

विबंध का सिद्धांत विधिक कार्यवाही में न्याय एवं समानता सुनिश्चित करने में एक महत्त्वपूर्ण लिखत के रूप में कार्य करता है। यह पक्षों को उनके पिछले कथनों या आचरण पर कायम रखकर अनुचित व्यवहार करने से रोकता है। यह सिद्धांत न केवल विधिक विमर्श की अखंडता को बनाए रखता है बल्कि विभिन्न संविदात्मक एवं संबंधपरक व्यवहारों में विश्वास व विश्वसनीयता को भी बढ़ावा देता है। विबंध को निर्वचन एवं लागू करना विधिक विवादों के परिणामों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे यह भारतीय विधि में एक आवश्यक अवधारणा का रूप ले लेती है।