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आपराधिक कानून
BNS के अंतर्गत सामुदायिक सेवाएँ
« »11-Jul-2024
परिचय:
सामुदायिक सेवा एक प्रकार की सज़ा है जिसके अंतर्गत अपराधियों को अपनी सज़ा के भाग के रूप में समुदाय के लाभ के लिये अवैतनिक कार्य करना पड़ता है। भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अधीन पहली बार सामुदायिक सेवा को सज़ा के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- यह पुनर्स्थापनात्मक न्याय की दिशा में एक बदलाव को प्रदर्शित करता है, जो विशुद्ध रूप से दण्डात्मक उपायों के अतिरिक्त अपराधियों के पुनर्वास एवं समाज में पुनः एकीकरण पर बल देता है।
- सामान्य अपराधों में शामिल अपराधी सामुदायिक सेवा करके पारंपरिक सज़ा से बच सकते हैं।
उद्देश्य:
- सामुदायिक सेवा का उद्देश्य है:
- अपराधियों को उनके आपत्तिजनक कृत्यों के लिये उत्तरदायी ठहराना।
- अपराधियों को समाज में योगदान करने का साधन प्रदान करना।
- जेल प्रणाली पर भार कम करना।
- अपराधियों के पुनर्वास एवं पुनः एकीकरण को बढ़ावा देना।
सामुदायिक सेवाओं के लिये अर्हता:
- सामान्य अपराध:
- सामुदायिक सेवा आम तौर पर सामान्य अपराधों, अहिंसक अपराधों एवं पहली बार अपराध करने वालों के लिये आरक्षित होती है।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि सज़ा अपराध के अनुपात में हो।
- न्यायिक विवेक:
- न्यायाधीशों को अपराध की प्रकृति, मामले की परिस्थितियों एवं अपराधी की पृष्ठभूमि के आधार पर सामुदायिक सेवा लगाने का विवेकाधिकार प्राप्त है।
सेवा की अवधि एवं प्रकृति:
- निर्दिष्ट समयावधि:
- न्यायालय अपराध की गंभीरता के आधार पर सामुदायिक सेवा के समयावधि निर्धारित करती है।
- सेवा की प्रकृति:
- सामुदायिक सेवा कार्य की प्रकृति इस तरह से तय की जाती है कि इससे समुदाय को लाभ हो तथा अपराधी की क्षमताओं के लिये उपयुक्त हो।
- उदाहरणों में सार्वजनिक स्थानों की सफाई, गैर-लाभकारी संगठनों के साथ काम करना या सामुदायिक विकास परियोजनाओं में सहायता करना शामिल है।
BNS के अधीन सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान:
BNS ने निम्नलिखित छह अपराधों के लिये सज़ा के रूप में कारावास या अर्थदण्ड के अतिरिक्त सामुदायिक सेवा की भी शुरुआत की है:
- धारा 202: लोक सेवक द्वारा अवैध रूप से व्यापार में संलग्न होना
- धारा 209: BNSS, 2023 की धारा 84 के अधीन उद्घोषणा के कारण अनुपस्थिति
- धारा 226: वैध शक्ति के प्रयोग को बाध्य करने या रोकने के लिये आत्महत्या करने का प्रयास
- धारा 303(2) का प्रावधान: चोरी, जहाँ चोरी की गई संपत्ति का मूल्य पाँच हज़ार रुपए से कम है तथा व्यक्ति को पहली बार दोषी ठहराया जाता है और वह संपत्ति का मूल्य लौटा देता है या वापस कर देता है।
- धारा 355: नशे में धुत व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक रूप से कदाचार।
- धारा 356(2): मानहानि
न्यायालयों द्वारा सामुदायिक सेवा करने का निर्देश के साथ दिया गया निर्णय:
- परवेज़ जिलानी शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य (2015):
- न्यायालय ने आरोपी को B.A.R.C अस्पताल में सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया।
- सुनीता गंधर्व बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2020):
- न्यायालय ने माना कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 437(3) के अनुसार न्यायालय सामुदायिक सेवा एवं अन्य संबंधित सुधारात्मक उपायों के माध्यम से अभियुक्त पर “न्याय के हित में कोई अन्य शर्तें” लगा सकता है तथा इसमें नवाचार भी किया जा सकता है, लेकिन यह उसकी क्षमता व इच्छा के अनुसार होना चाहिये।
- मनोज कुमार बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) (2022):
- न्यायालय ने आरोपी को एक महीने तक प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया।
निष्कर्ष:
भारतीय न्याय संहिता 2023 में दण्ड के रूप में सामुदायिक सेवा को शामिल करना भारत में अधिक संतुलित एवं पुनर्वासात्मक आपराधिक न्याय प्रणाली की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है। पुनर्स्थापनात्मक न्याय पर ध्यान केंद्रित करके, BNS 2023 का उद्देश्य एक ऐसी प्रणाली बनाना है जहाँ अपराधी समाज में सकारात्मक योगदान दे सकें, जिससे उनके पुनर्वास को बढ़ावा मिले और जेल प्रणाली पर बोझ कम हो। यह दृष्टिकोण न केवल अपराधियों को बल्कि बड़े पैमाने पर समुदाय को भी लाभान्वित करता है, जिससे न्याय के प्रति अधिक समावेशी एवं रचनात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है।