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आपराधिक कानून
आपराधिक न्यासभंग
« »26-Dec-2023
परिचय:
- 'आपराधिक न्यासभंग' के अपराध को अंग्रेज़ी कानून में 'गबन' के रूप में जाना जाता है।
- यह भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 405 के तहत निहित है।
- अध्याय XVII में 'संपत्ति से संबंधित अपराध' शामिल हैं और 'आपराधिक न्यासभंग' से संबंधित है।
- संपत्ति की सुपुर्दगी में विश्वासघात होने पर अपराध घटित होते हैं। कब्ज़ा करने के पश्चात् परिणामी न्यासभंग अवश्य होना चाहिये।
अवधारणा:
- संपत्ति में रुचि अभियुक्त के अलावा किसी और में निहित होती है।
- मालिक या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा सुपुर्दगी/डिलीवरी के बाद अभियुक्त के पास संपत्ति का कब्ज़ा था।
- अभियुक्त के पास केवल संपत्ति की अभिरक्षा थी।
- अभियुक्त को संपत्ति के निपटान का अधिकार नहीं है, वह केवल उसमें विशेष रुचि प्राप्त करता है।
- वह अपने लाभ के लिये बेईमानी से इसका दुरुपयोग करता है।
IPC की धारा 405:
- जो कोई, किसी भी तरीके से संपत्ति सौंपे जाने पर, या संपत्ति पर किसी प्रभुत्व के साथ, बेईमानी से अपने उद्देश्य के लिये ऐसी संपत्ति का उपयोग करता है या उसका दुरुपयोग करता है या उस संपत्ति का निपटान करता है जो कानून के किसी भी निर्देश के उल्लंघन में है जिस तरीके से इस तरह के न्यास का पालन किया जाना है, या किसी भी कानूनी अनुबंध, व्यक्त या निहित, जिसे उसने इस तरह के विश्वास के निर्वहन के संबंध में बनाया है, या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा करने के लिये मजबूर किया है, इसे आपराधिक न्यासभंग कहा जाता है।
दंड:
- IPC की धारा 406: सज़ा में 3 वर्ष तक का कारावास या ज़ुर्माना या दोनों शामिल होते हैं।
गंभीर आपराधिक न्यासभंग के प्रकार:
- IPC की धारा 407:
- जो कोई वाहक, घाटवाल या भाण्डागारिक के रूप में अपने पास संपत्ति न्यस्त किये जाने पर ऐसी संपत्ति का दुरुपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकती है, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
- IPC की धारा 408:
- यदि कोई लिपिक या सेवक अपनी क्षमता से सौंपी गई संपत्ति का दुरुपयोग करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकती है, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
- IPC की धारा 409:
- यदि कोई व्यक्ति, लोक सेवक होते हुए, संपत्ति का दुरुपयोग करता है, वह किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
निर्णयज विधि:
- राम नारायण पोपली बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (2003):
- उच्चतम न्यायालय ने सौंपने की अवधारणा को प्रबुद्ध किया जिसका अर्थ- किसी भी सांपत्तिक हित का अतिक्रमण किये बिना किसी भी संपत्ति का कब्ज़ा किसी को सौंपना है।
- गुजरात राज्य बनाम जसवन्तलाल नाथलाल (1967):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मालिक सैदव मालिक ही रहता है और वह सौंपने की प्रक्रिया में दूसरे व्यक्ति को केवल विशेष हित प्रदान करता है।
- रश्मी कुमार बनाम महेश कुमार भादा (1996):
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि IPC की धारा 405 के तहत 'स्त्रीधन' भी संपत्ति के दायरे में शामिल था। यदि पति या कोई रिश्तेदार महिला की सहमति के अभाव में अपने स्वयं के उद्देश्य के लिये उपयोग करता है, तो उसे 'आपराधिक न्यासभंग' का अपराध माना जाएगा।
निष्कर्ष:
इसलिये यह स्पष्ट है कि इस धारा के अंतर्गत आने वाले अपराध के लिये सभी चार आवश्यकताओं को पूरा किया जाना आवश्यक है। संपत्ति सौंपने वाले व्यक्ति को संपत्ति लेने वाले व्यक्ति पर विश्वास होना चाहिये, ताकि उनके बीच एक वैश्वासिक संबंध स्थापित किया जा सके या उसे न्यासी के पद पर रखा जा सके। अभियुक्त को ऐसी स्थिति में होना चाहिये जहाँ वह संपत्ति पर अपना नियंत्रण रख सके अर्थात्; संपत्ति पर आधिपत्य। संपत्ति शब्द के दायरे में जंगम और स्थावर संपत्ति दोनों शामिल हैं। यह स्थापित करना होगा कि अभियुक्त ने बेईमानी से संपत्ति को अपने उपयोग में लाया है या किसी अनधिकृत उपयोग में लाया है। आपराधिक न्यास्भंग का आरोप साबित करने के लिये दुरुपयोग करने का बेईमान इरादा एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है।