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आपराधिक कानून
मानहानि
« »07-Feb-2024
परिचय
मानहानि का तात्पर्य एक मिथ्या कथन से है जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाता है। इसे एक ऐसा कथन भी माना जाता है जिसका आधार तुच्छ और भ्रामक होता है तथा किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाता है। कानून प्रतिष्ठा को मनुष्य की संपत्ति मानता है और उसे उसके शरीर के समान ही माना जाता है।
- मानहानि का कृत्य भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 499 के अंतर्गत आता है और मानहानि की सज़ा IPC की धारा 500 के अंतर्गत आती है।
IPC की धारा 499
- यह धारा मानहानि के अपराध से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिये आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, एतस्मिन् पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है।
- स्पष्टीकरण 1- किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा यदि वह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता और उसके परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को उपहत करने के लिये आशयित हो।
- स्पष्टीकरण 2- किसी कंपनी या संगम या व्यक्तियों के समूह के संबंध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा।
- स्पष्टीकरण 3- अनुकल्प के रूप में या व्यंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा।
- स्पष्टीकरण 4- कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरूप को हेय न करे या उस व्यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के संबंध में उसके शील को हेय न करे या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराये या यह विश्वास न कराए कि उस व्यक्ति का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकृष्ट समझी जाती है।
दृष्टांत
- A कहता है- Z एक ईमानदार आदमी है; उसने कभी भी B की घड़ी नहीं चुराई; इसका उद्देश्य यह विश्वास दिलाना था कि Z ने B की घड़ी चुराई थी। यह मानहानि है, जब तक कि यह अपवादों में से किसी एक के अंतर्गत न आती हो।
- A से पूछा गया कि B की घड़ी किसने चुराई। A ने Z की ओर एक इशारा किया, इस इरादे से कि यह विश्वास हो जाए कि Z ने B की घड़ी चुराई है। यह मानहानि है जब तक कि यह किसी अपवाद के अंतर्गत न आती हो।
अपवाद
- सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिये अपेक्षित है।
- लोक-सेवकों का लोकाचरण।
- न्यायालयी कार्यवाही के सच्चे परिणाम।
- वैध प्राधिकारी के तहत की गई निंदा।
- किसी वैध प्राधिकारी द्वारा सद्भावना के तहत लगाया गया आरोप
- यदि कथन स्वयं के हितों की सुरक्षा के लिये सद्भावना के तहत दिया गया है।
IPC की धारा 500
- यह धारा मानहानि की सज़ा से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या ज़ुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
मानहानि की प्रकृति
- यह कृत्य सिविल और आपराधिक दोनों प्रकार का होता है।
- यह IPC के तहत दंडनीय है।
- मानहानि का दांडिक अपराध ज़मानती और असंज्ञेय होता है।
- मानहानि के अपराध के लिये शमन की अनुमति है।
- सिविल शासन में अपकृत्य कानून के तहत इससे निपटा जाता है।
मानहानि की अनिवार्यताएँ
- दिया गया कथन मानहानिकारक प्रकृति का होना चाहिये।
- कथन वादी के विरुद्ध दिया जाना चाहिये।
- इसे प्रकाशित किया जाना चाहिये।
- कथन को वादी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को संप्रेषित किया जाना चाहिये।
- अपमान वचन के मामले में कथन स्वयं कार्रवाई योग्य होना चाहिये।
- दूसरे व्यक्ति को इसकी आशंका होनी चाहिये।
मानहानि के प्रकार
- अपमान लेख
- यह एक मानहानिकारक कथन के लिये होता है जो प्रकृति में प्रकाशित होता है।
- यह लिखित विषय-वस्तु के माध्यम से किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकता है।
- इसे किसी पुस्तक, पत्रिका, समाचार-पत्र, सोशल मीडिया आदि में प्रकाशित किया जा सकता है।
- अपमान लेख का तात्पर्य ऐसे कथन से है जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को मानहानि करने वाला माना जाता है।
- यह आपराधिक विधि के तहत अनुयोज्य होता है।
- अपमान-वचन
- यह बोले गए शब्दों या इशारों के माध्यम से दिये गए कथन का एक रूप होता है।
- यह किसी भी व्यक्ति के चरित्र को नुकसान पहुँचाने वाला गलत मौखिक कथन होता है।
- इस प्रकार के माध्यम से मानहानि की प्रकृति अमूर्त होती है।
- यह आपराधिक विधि के तहत कोई अपराध नहीं होता है।
- यह एक सिविल क्षति होती है।
प्रतिवाद
- मानहानि के आरोप के विरुद्ध तीन प्रतिवाद उपलब्ध हैं।
- सत्य कथन- एक सत्य कथन मानहानि की श्रेणी में नहीं आता यदि प्रतिवादी कुछ साक्ष्य संलग्न करके इसे सत्य साबित कर सकता है।
- उचित टिप्पणी- टिप्पणी नीचे उल्लिखित तीन आधारों पर आधारित होनी चाहिये:
- यह किसी तथ्य के दावे के बजाय किसी की राय की अभिव्यक्ति है।
- यह उचित होना चाहिये।
- इसका उद्देश्य जनहित का होना चाहिये।
- विशेषाधिकार- कानून सार्वजनिक रूप से कथन देने के लिये पूर्ण और योग्य विशेषाधिकार प्रदान करता है। संसदीय कार्यवाही एवं न्यायिक कार्यवाही में पूर्ण विशेषाधिकार प्रदान किया जाता है और योग्य विशेषाधिकार बिना किसी गलत आशय के कथन देने वाले व्यक्ति को सौंपा जाता है।
ऐतिहासिक निर्न्यज विधि
- सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने वाक् की स्वतंत्रता और मानहानि की अवधारणा को अलग किया। इसमें कहा गया है कि किसी की प्रतिष्ठा दूसरे की वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नहीं बदल सकती। याचिकाकर्त्ता ने धारा 499 और 500 की संवैधानिकता को चुनौती दी। हालाँकि, न्यायालय ने उन्हें भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों द्वारा संरक्षित रखा।
- चमन लाल बनाम पंजाब राज्य (1970) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि धारा 499 के मामले में सद्भावना में दिये गए कथन का अपवाद कब और कैसे लागू किया जा सकता है। इसमें कहा गया है, "संचार करते समय व्यक्ति का हित वास्तविक और वैध होना चाहिये। इसे बनाने वाले व्यक्ति के हितों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। यदि ऐसा है, तो सद्भावना स्वतः ही आकर्षित हो जाती है और सद्भावना के लिये स्पष्ट रूप से तार्किक अचूकता की आवश्यकता नहीं होती है।”