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आपराधिक कानून
ठग
« »02-Apr-2024
परिचय:
यात्रियों या अन्य लोगों की जासूसी करने एवं उनकी हत्या करके उनकी संपत्ति या अन्य कीमती सामान हड़पने के उद्देश्य से पेशेवर तरीके से जुड़े व्यक्तियों के गिरोह को ठग कहा जाता है। यह शब्द मूल रूप से 1800 के दशक में प्रयोग किया गया था।
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 310 एवं 311 ठगी के अपराध से संबंधित है।
IPC की धारा 310:
- इस धारा के अनुसार, जो कोई भी, इस अधिनियम के पारित होने के बाद किसी भी समय, डकैती या हत्या के माध्यम से या उसके साथ बच्चे की चोरी करने के उद्देश्य से किसी अन्य या दूसरों के साथ पेशेवर रूप से जुड़ा होगा, वह एक ठग है।
ठग के आवश्यक तत्व:
- सभी ठग, लुटेरे और डाकू होते हैं, लेकिन सभी लुटेरे व डाकू ठग नहीं होते।
- ठगों द्वारा की जाने वाली लूट या डकैती या अपहरण के साथ हत्या भी शामिल होती है।
- शिकार की हत्या करना ठगी का एक अनिवार्य तत्व है।
IPC की धारा 311:
- यह धारा ठगी के अपराध के लिये सज़ा से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो भी ठग होगा, उसे आजीवन कारावास की सज़ा होगी और ज़ुर्माना भी देना होगा।
1836 का ठग अधिनियम:
- IPC की धारा 310 एवं 311 में 1836 के ठग अधिनियम के प्रावधान शामिल हैं।
- यह एक विधिक अधिनियम था, जिसने ठगी को अविधिक घोषित कर दिया था, जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के अधीन ब्रिटिश भारत में पारित किया गया था।
- इसमें ठगों के विचारण एवं सज़ा का प्रावधान किया गया।
- यह अधिनियम 14 नवंबर, 1836 को पारित किया गया था।