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आपराधिक कानून
सदोष अवरोध एवं सदोष परिरोध
« »12-Dec-2023
परिचय:
- भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को पूरे भारत में आवागमन की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है और अनुच्छेद 19 व अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- कुछ ऐसे प्रावधान भी हैं जो राज्य के अलावा किसी व्यक्ति या समूह द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को वंचित किये जाने से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 339 और 340 क्रमशः सदोष अवरोध एवं सदोष परिरोध को परिभाषित करती हैं। IPC की धारा 339 से 348 के तहत सदोष अवरोध एवं सदोष परिरोध को दंडनीय बताया गया है।
सदोष अवरोध:
- IPC की धारा 339 सदोष अवरोध के अपराध के बारे में कहती है, "जो कोई स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को बाधित करता है ताकि उस व्यक्ति को किसी भी दिशा में आगे बढ़ने से रोका जा सके जिसमें उस व्यक्ति को आगे बढ़ने का अधिकार है, उस व्यक्ति को सदोष अवरोध द्वारा रोकना कहा जाता है।"
दृष्टांत:
- चित्रा एक सार्वजनिक सड़क पर चल रही है जिस पर से गुजरना उसका अधिकार है। राजेश, यह जानते हुए भी कि रास्ता रोकने का उसे कोई अधिकार नहीं है, इस रास्ते में बाधा उत्पन्न करता है। जैसा कि चित्रा को जाने से रोका गया था, यह कहा जा सकता है कि राजेश ने सदोष अवरोध द्वारा चित्रा को रोका था।
- ‘बाधा’ शब्द शारीरिक या धमकी भरे तरीकों से बाधा डालने का प्रतीक है, जब कोई बाधा गैरकानूनी होती है तो यह सदोष अवरोध बन जाती है।
संघटक:
- किसी भी व्यक्ति को स्वेच्छा से बाधित करना।
- किसी विशेष दिशा में आगे बढ़ना।
- बाधित व्यक्ति को आगे बढ़ने का अधिकार होना चाहिये।
दंड:
- IPC की धारा 341 में धारा 339 के तहत गलत काम करने वाले के विरुद्ध एक अवधि के लिये साधारण कारावास जिसे एक महीने तक बढ़ाया जा सकता है या पाँच सौ रुपए तक ज़ुर्माना या दोनों की सज़ा का प्रावधान है।
- इस धारा के तहत अपराध का वर्गीकरण यह है कि अपराध संज्ञेय, ज़मानती और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है, यह अपराध पीड़ित व्यक्ति (जिसे ग़लत तरीके से नियंत्रित किया हो) द्वारा समझौता करने योग्य नहीं है।
सदोष परिरोध:
- IPC की धारा 340 के अनुसार "जो कोई भी किसी व्यक्ति को सदोष अवरोध द्वारा इस प्रकार रोकता है कि उस व्यक्ति को कुछ निश्चित सीमाओं से परे आगे बढ़ने से रोक सके, उसे सदोष परिरोध का अपराध माना जाता है।"
दृष्टांत:
- राधिका अनामिका को एक चारदीवारी के भीतर जाने के लिये मजबूर करती है और अनामिका को अंदर बंद कर देती है। इस प्रकार अनामिका को दीवारों की सीमित रेखा से परे किसी भी दिशा में आगे बढ़ने से रोका जाता है और इसलिये कहा जा सकता है कि राधिका ने अनामिका को सदोष परिरोध द्वारा कैद कर दिया है।
- किसी व्यक्ति को पेड़ से बाँधना, किसी व्यक्ति को कमरे में बंद करना सदोष परिरोध द्वारा कैद करना है।
संघटक:
- किसी व्यक्ति को स्वैच्छिक रूप से रोकना।
- यह कार्य इस प्रकार किया जाता है कि उस व्यक्ति को निर्धारित सीमा से आगे बढ़ने से रोका जा सके।
- अभियुक्त व्यक्ति ने शिकायतकर्ता को सदोष अवरोध द्वारा रोका होगा, इसका अर्थ है कि सदोष अवरोध से रोकने से संबंधित सभी तत्व मौजूद होने चाहिये।
दंड:
- IPC की धारा 342 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को सदोष परिरोध द्वारा कैद करेगा, उसे एक कारावास जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या ज़ुर्माना जो एक हज़ार रुपए तक हो सकता है या दोनों की सज़ा से दंडित किया जाएगा।
सदोष परिरोध के प्रकार:
- तीन या अधिक दिनों के लिये सदोष परिरोध। (धारा 343)
- दस या अधिक दिनों के लिये सदोष परिरोध। (धारा 344)
- किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध जिसको मुक्त करने के लिये रिट जारी की गई हो। (धारा 345)
- गुप्त रूप से सदोष परिरोध करना। (धारा 346)
- संपत्ति की उगाही करने या गैरकानूनी कार्य को अवरोध के लिये सदोष परिरोध। (धारा 347)
- जबरन अपराध स्वीकारोक्ति कराने या संपत्ति की बहाली हेतु बाध्य करने के लिये सदोष परिरोध। (धारा 348)
निर्णयज विधि:
- सोवरानी रॉय बनाम किंग AIR (1950):
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने माना कि यदि कोई व्यक्ति सद्भावना में विश्वास करता है कि उसे शिकायतकर्ता को उसकी ज़मीन से गुजरने से रोकने का अधिकार है, तो उसे सदोष अवरोध के अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
- राज्य बनाम बालकृष्ण (1991):
- याचिकाकर्ता को एक पुलिस स्टेशन में हिरासत में लिया गया था और अभियुक्त ने दावा किया कि शिकायतकर्ता को पुलिस स्टेशन से जाने की स्वतंत्रता थी।
- मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि यदि कोई नागरिक किसी पुलिस स्टेशन में प्रवेश करता है, तो पुलिस अधिकारी के पास अधिकार क्षेत्र को लागू करने और मामले की सुनवाई करने का अधिकार है, इस प्रकार यह माना गया कि अभियुक्त ने सदोष परिरोध का अपराध किया था।
सदोष अवरोध एवं सदोष परिरोध के बीच अंतर
सदोष अवरोध |
सदोष परिरोध |
यह श्रेणी है, अर्थात् यह एक व्यापक शब्द है और इसके अंतर्गत अनेक प्रकार के अवरोध सम्मिलित होते हैं। |
यह सदोष अवरोध की एक प्रजाति है अर्थात् एक प्रकार का सदोष अवरोध है। |
यह किसी व्यक्ति को उस दिशा में आगे बढ़ने से रोकता है जिसमें उस व्यक्ति को आगे बढ़ने का अधिकार है। |
यह व्यक्ति को कुछ निश्चित सीमाओं के भीतर रखता है। |
किसी की स्वतंत्रता का केवल आंशिक निलंबन होता है। |
कुछ निश्चित सीमाओं से परे स्वतंत्रता का पूर्ण निलंबन होता है। |
दंड: धारा-341, एक माह का कारावास या ज़ुर्माना रु. 500/-, या दोनों के साथ। |
दंड: धारा- 342, एक वर्ष का कारावास या ज़ुर्माना रु. 1000/-, या दोनों के साथ। |