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आपराधिक कानून

बलात्संग विधियों में संशोधन

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 10-Sep-2024

परिचय:

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) के अधीन बलात्संग के अपराध के लिये अध्याय XVI के अधीन प्रावधान किया गया है, जो "मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराध" है।

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) अध्याय V के अधीन बलात्संग के अपराध के लिये प्रावधान करता है, जो "महिला एवं बच्चे के विरुद्ध अपराध" है।
  • वर्ष 1983, 2013 एवं 2018 के आपराधिक विधि संशोधन अधिनियमों के द्वारा बलात्संग विधियों में संशोधन किये गए हैं।
  • इनमें से अधिकांश प्रावधानों को भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) में यथावत् रखा गया है।

आपराधिक विधि (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1983

  • प्रवर्तक बल:
    • इस संशोधन के पीछे प्रेरणा कुख्यात मथुरा कांड था जिसने देश में हंगामा मचा दिया था।
    • यह घटना पुलिस थाने में एक महिला के साथ बलात्संग से संबंधित थी।
    • इस घटना के परिणामस्वरूप तुकाराम बनाम महाराष्ट्र राज्य (1972) का मामला सामने आया।
    • इस मामले में सत्र न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों को इस आधार पर दोषमुक्त कर दिया कि संभोग एवं बलात्संग में अंतर है तथा न्यायालय ने यह भी माना कि सहमति स्वैच्छिक थी क्योंकि वह "संभोग की अभ्यस्त थी"।
    • हालाँकि उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को पलट दिया और कहा कि यहाँ सहमति भय के कारण निष्क्रिय सहमति थी तथा इसलिये विधि की दृष्टि में यह सहमति नहीं है।
    • हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने आरोपी को इस आधार पर दोषमुक्त कर दिया कि लड़की पर चोट के कोई निशान नहीं थे तथा इसलिये बलात्संग का अपराध कारित नहीं हुआ।
  • संशोधन अधिनियम, 1983 के माध्यम से IPC में परिवर्तन:
    • IPC की धारा 228 A: इसमें बलात्संग से संबंधित अपराधों की पीड़िता की पहचान प्रकटन करने पर रोक लगाई गई है। अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे 2 वर्ष का कारावास एवं अर्थदण्ड की सज़ा हो सकती है।
    • IPC की धारा 375 में बलात्संग की परिभाषा की परिधि को विस्तारित किया गया है।
    • IPC की धारा 376 में बलात्संग के लिये सजा का प्रावधान किया गया है।
    • IPC की धारा 376 A: पृथक्करण के दौरान किसी पुरुष का अपनी पत्नी के साथ संभोग।
    • IPC की धारा 376 B: सरकारी कर्मचारी द्वारा अपनी अभिरक्षा में किसी महिला के साथ संभोग।
    • IPC की धारा 376 C: जेल, रिमांड हाउस आदि के अधीक्षक द्वारा संभोग।
    • IPC की धारा 376 D: किसी अस्पताल के प्रबंधन या स्टाफ के किसी सदस्य द्वारा उस अस्पताल में किसी महिला के साथ संभोग।
  • दण्ड प्रक्रिया अधिनियम, 1973 (CrPC) में परिवर्तन:
    • धारा 327 (2) एवं धारा 327 (3):
      • ये प्रावधान बलात्संग के मामलों में बंद कमरे में कार्यवाही का प्रावधान करते हैं तथा ऐसी कार्यवाही से संबंधित किसी भी मामले के मुद्रण या प्रकाशन पर रोक लगाते हैं।
    • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) में परिवर्तन:
      • धारा 114 A को जोड़ा गया, जो बलात्संग से संबंधित मामलों में सहमति के अभाव की धारणा का प्रावधान करती है।

आपराधिक (संशोधन) अधिनियम, 2013:

  • प्रवर्तक बल:
    • ये संशोधन वर्ष 2012 में हुए निर्भया सामूहिक बलात्संग के बाद किये गए थे। इस घटना के बाद पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन एवं आंदोलन हुए।
    • इसके परिणामस्वरूप सेवानिवृत्त माननीय न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति का गठन किया गया।
    • इस रिपोर्ट के आधार पर 3 फरवरी 2013 को आपराधिक (संशोधन) अधिनियम, 2013 प्रवर्तित हुआ।
  • IPC में परिवर्तन:
    • IPC की धारा 166 A: यह बलात्संग के अपराधों के साथ-साथ कुछ अन्य अपराधों के संबंध में CrPC की धारा 154 के अधीन सूचना दर्ज करने में विफल रहने पर लोक सेवक को सज़ा का प्रावधान करती है।
    • IPC की धारा 166 B: यह बलात्संग की पीड़िता का इलाज न करने के लिये सज़ा का प्रावधान करती है।
    • IPC की धारा 376 A: बलात्संग के कारण मृत्यु या लगातार मरणासन्न अवस्था का कारण बनने के लिये सज़ा।
    • IPC की धारा 376 B: पृथक्करण के दौरान पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध स्थापित करना।
    • IPC की धारा 376 C: अधिकार प्राप्त व्यक्ति द्वारा यौन संबंध बनाना
    • IPC की धारा 376 D: सामूहिक बलात्संग
    • IPC की धारा 376 E: बार-बार अपराध करने वालों के लिये सज़ा
  • CrPC में संबंधित परिवर्तन:
    • CrPC की धारा 154 (1): बलात्संग के अपराध सहित महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराधों से संबंधित सूचना एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज की जाएगी।
    • CrPC की धारा 161: बयान दर्ज किये जा सकते हैं, ऑडियो वीडियो रिकॉर्ड किये जा सकते हैं तथा बलात्संग की पीड़िता या यौन उत्पीड़न की पीड़िता का बयान एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज किया जाएगा।
    • CrPC की धारा 164 (5A): न्यायिक मजिस्ट्रेट बलात्संग से संबंधित अपराधों के लिये अपराध होते ही पीड़िता का बयान दर्ज करेगा।
    • CrPC की धारा 197: यौन अपराधों के मामलों में किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।
    • CrPC की धारा 198 B: IPC की धारा 376 B के अधीन अपराध के मामले में पति के विरुद्ध पत्नी द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर ही संज्ञान लिया जाएगा।
    • CrPC की धारा 309: जहाँ बलात्संग से संबंधित विचारण या अभियोजन है, उसे आरोप-पत्र दाखिल करने की तिथि से 2 महीने के अंदर पूरा किया जाना चाहिये।
    • CrPC की धारा 357 B: भुगतान किया गया क्षतिपूर्ति IPC की धारा 376 D के अधीन भुगतान किये गए अर्थदण्ड के अतिरिक्त होगा।
    • CrPC की धारा 357 C: यह बलात्संग के अपराध के पीड़ितों को तत्काल प्राथमिक उपचार प्रदान करता है। साथ ही, चिकित्सक को ऐसी घटना के विषय में तुरंत पुलिस को सूचित करना होता है।
  • IEA में परिवर्तन:
    • IEA की धारा 53A: जहाँ सहमति का प्रश्न मुद्दा है, वहाँ पीड़िता के चरित्र या पिछले यौन अनुभव का साक्ष्य प्रासंगिक नहीं होगा।
    • IEA की धारा 114 ए: यह धारा यह प्रावधान करती है कि कुछ अभियोजनों में सहमति न होने की धारणा होगी, अगर पीड़िता न्यायालय के समक्ष अपने साक्ष्य में यह बताती है।
    • IEA की धारा 146: यह धारा ऐसे प्रश्नों का प्रावधान करती है जो प्रतिपरीक्षा में वैध होंगे। संशोधन ने इस प्रावधान में यह जोड़ा कि जहाँ पीड़िता की सहमति मुद्दा है, वहाँ प्रतिपरीक्षा में पीड़िता से उसके अनैतिक चरित्र या उसके पिछले यौन अनुभव के विषय में न तो साक्ष्य दिया जा सकता है तथा न ही प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

आपराधिक (संशोधन) अधिनियम, 2018:

  • प्रेरणा:
    • निर्भया के बाद दो और वीभत्स घटनाएँ हुईं- उन्नाव बलात्संग मामला, कठुआ बलात्संग मामला, जिसने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया।
    • वर्ष 2018 में किये गए संशोधनों में अप्राप्तवय के विरुद्ध बलात्संग के अपराध में कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया।
  • IPC में परिवर्तन:
    • IPC की धारा 376:
      • धारा 376 की उपधारा 1 में (a) संशोधन किया गया जिसमें प्रावधान किया गया कि सज़ा 10 वर्ष से कम नहीं होगी जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
      • धारा 376 (3) जोड़ी गई जिसमें प्रावधान किया गया कि जो कोई भी सोलह वर्ष से कम उम्र की महिला से बलात्संग करता है, उसे कम-से-कम बीस वर्ष के कठोर कारावास से दण्डित किया जाएगा, लेकिन जो आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कारावास होगा तथा वह अर्थदण्ड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
    • IPC की धारा 376 AB: जो कोई भी बारह वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ बलात्संग करता है, उसे कम-से-कम बीस वर्ष के कठोर कारावास से दण्डित किया जाएगा, लेकिन जो आजीवन कारावास तक हो सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कारावास होगा और अर्थदण्ड  या मृत्युदण्ड होगा।
    • IPC की धारा 376 DA: जहाँ सोलह वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ एक या एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा समूह बनाकर या सामान्य आशय से कृत्य कारित करते हुए बलात्संग किया जाता है, उनमें से प्रत्येक व्यक्ति ने बलात्संग का अपराध किया माना जाएगा तथा उसे आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कारावास होगा और अर्थदण्ड लगाया जाएगा।
    • IPC की धारा 376 DB: जहाँ बारह वर्ष से कम आयु की महिला के साथ एक या एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा समूह बनाकर या एक समान आशय से बलात्संग किया जाता है, उनमें से प्रत्येक व्यक्ति को बलात्संग का अपराध करने वाला माना जाएगा तथा उसे आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कारावास होगा और अर्थदण्ड, या मृत्युदण्ड दिया जाएगा।
  • CrPC में बदलाव:
    • धारा 374 (4) जोड़ी गई जिसमें यह प्रावधान किया गया कि जब भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376, धारा 376A, धारा 376AB, धारा 376B, धारा 376C, धारा 376D, धारा 376DA, धारा 376DB या धारा 376E के अधीन पारित सजा के विरुद्ध अपील दायर की गई हो, तो अपील का निपटान ऐसी अपील दायर करने की तिथि से छः महीने की अवधि के अंदर किया जाएगा।
    • धारा 438 (4) जोड़ी गई, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि इस धारा का कोई भी प्रावधान भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376AB या धारा 376DA या धारा 376DB के अधीन अपराध करने के आरोप पर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से संबंधित किसी भी मामले पर लागू नहीं होगी।
    • धारा 439 (a) (1) जोड़ी गई, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को ज़मानत देने से पहले, जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376AB या धारा 376DA या धारा 376DB के अधीन विचारणीय अपराध का आरोपी है, ऐसे आवेदन की सूचना प्राप्त होने की तिथि से पंद्रह दिनों की अवधि के अंदर लोक अभियोजक को ज़मानत के लिये आवेदन की सूचना देगा।
    • धारा 439 (1A) में यह प्रावधान है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376AB या धारा 376DA या धारा 376DB के अधीन व्यक्ति को ज़मानत के लिये आवेदन की सुनवाई के समय सूचना देने वाले या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति अनिवार्य होगी।
  • IEA में परिवर्तन:
    • 2018 संशोधन में नए प्रावधानों को शामिल करने के लिये IEA की धारा 53 A एवं धारा 146 में संशोधन किया गया।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS):

  • BNS में “बलात्संग” की परिभाषा धारा 63 के अधीन दी गई है।
    • यह ध्यान देने योग्य है कि BNS की धारा 63 IPC की धारा 375 का पुनर्स्थापन है। एकमात्र अंतर अपवाद 2 के संबंध में है जो यह प्रावधान करता है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी, जिसकी उम्र अठारह वर्ष से कम न हो, के साथ संभोग या यौन कृत्य बलात्संग नहीं है।
    • इससे पहले, IPC की धारा 375 के अपवाद 2 में यह प्रावधान था कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी, जिसकी उम्र पंद्रह वर्ष से कम न हो, के साथ संभोग या यौन क्रिया बलात्संग नहीं है।
  • BNS की धारा 64 में बलात्संग के लिये सज़ा का प्रावधान है।
    • इस धारा के खंड (1) एवं (2) भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 (1) एवं (2) का पुनर्स्थापन हैं।
  • BNS की धारा 65 में बलात्संग के लिये सज़ा का प्रावधान है।
    • धारा 65 (1) IPC की धारा 376 (3) का पुनर्स्थापन है, जो 16 वर्ष से कम आयु की महिला के साथ बलात्संग की सज़ा का प्रावधान करती है।
    • धारा 65 (2) IPC की धारा 376 AB का पुनर्स्थापन  है, जो बारह वर्ष से कम आयु की महिला के साथ बलात्संग के लिये सज़ा का प्रावधान करती है।
  • BNS की धारा 66 में पीड़ित की मृत्यु या लगातार मरणासन्न अवस्था में रहने के लिये सज़ा का प्रावधान है।
  • यह IPC की धारा 376 A का पुनर्स्थापन है।
  • BNS की धारा 67 में पृथक्करण के दौरान पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध स्थापित करने का प्रावधान है।
  • यह IPC की धारा 376 B का पुनर्स्थापन है।
  • BNS की धारा 68 में अधिकार प्राप्त व्यक्ति द्वारा यौन संबंध बनाने का प्रावधान है।
  • यह IPC की धारा 376 C का पुनर्स्थापन है।
  • BNS की धारा 69 एक नया प्रावधान है। यह प्रावधान तब सज़ा का प्रावधान करता है जब यौन संबंध छल से बनाए जाते हैं।
    • BNS की धारा 69 में प्रावधान है कि जो कोई भी छल से या किसी महिला से विवाह का वचन देकर उसे पूर्ण करने के आशय के बिना उसके साथ यौन संबंध बनाता है, ऐसा यौन संबंध बलात्संग के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है तथा अर्थदण्ड भी देय होगा।
    • स्पष्टीकरण- "कपटपूर्ण साधनों" में रोज़गार या पदोन्नति का प्रलोभन या मिथ्या वचन या पहचान छिपाकर विवाह करना शामिल होगा।
  • BNS की धारा 70 में सामूहिक बलात्संग के अपराध का प्रावधान है।
    • धारा 70 (1) IPC की धारा 376D का ही एक रूप है।
    • धारा 70 (2) में 18 वर्ष से कम आयु की महिला के साथ सामूहिक बलात्संग के अपराध का प्रावधान है। उल्लेखनीय है कि IPC की धारा 376DA एवं धारा 376DB को BNS में कोई स्थान नहीं मिला है। इसके स्थान पर यह प्रावधान जोड़ा गया है।
  • BNS की धारा 71 में बार-बार अपराध करने वालों के लिये सज़ा का प्रावधान है। यह IPC की धारा 376 E का पुनर्स्थापन है।
  • BNS की धारा 72 में प्रावधान है कि बलात्संग के मामलों में पीड़िता की पहचान का प्रकटन नहीं किया जाएगा। यह IPC की धारा 228A का पुनर्स्थापन है।

निष्कर्ष:

IPC में प्रारंभ से लेकर अब तक हमारे देश में बलात्संग के बढ़ते मामलों को रोकने के लिये तीन आपराधिक (संशोधन) अधिनियम बनाए जा चुके हैं। तीनों संशोधन महिलाओं के विरुद्ध जघन्य अपराधों का परिणाम थे। इस प्रकार, उनका उद्देश्य महिलाओं के लिये एक निवारक एवं सुरक्षित वातावरण प्रदान करना था। IPC में बलात्संग से संबंधित अधिकांश प्रावधान BNS में यथावत् रखे गए हैं।