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आपराधिक कानून

महिला के विरुद्ध आपराधिक बल और हमले से संबंधित अपराध

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 23-Oct-2024

परिचय 

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अध्याय V में महिलाओं के विरुद्ध आपराधिक बल और हमले से संबंधित अपराधों के प्रावधान बताए गए हैं।
  • महिलाओं के विरुद्ध ऐसे अपराधों के लिये पहली बार BNS के अंतर्गत एक अलग खंड शुरू किया गया है।
  • BNS की धारा 74 से 79 में महिला के विरुद्ध आपराधिक बल प्रयोग और हमले के अपराध से संबंधित अपराधों तथा दंड के प्रावधान बताए गए हैं।

हमला 

  • एक व्यक्ति तब हमला करता है जब वह किसी महिला को यह डराता है कि वह उसके विरुद्ध बल का प्रयोग करता है।
  • धमकी भरे इशारे करना, हाथ उठाकर मारना या मौखिक रूप से शारीरिक नुकसान पहुँचाने की धमकी देना, ये सभी हमले के रूप हैं।
  • हमला होने के लिये महिला को शारीरिक रूप से स्पर्श करना आवश्यक नहीं है।
  • केवल शब्दों से हमला नहीं माना जाता, बल्कि एक व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त शब्द उसके हाव-भाव या तैयारी को ऐसा अर्थ दे सकते हैं, जिससे उन हाव-भाव या तैयारी को हमला माना जा सकता है।
  • हमला माने जाने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि कोई वास्तविक चोट पहुँचाई गई हो।
  • हमले के अपराध के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिये धमकी को विश्वसनीय और तात्कालिक होना आवश्यक है।

आपराधिक बल

  • किसी महिला के विरुद्ध उसकी सहमति के बिना किसी भी प्रकार का बल प्रयोग करना आपराधिक बल है।
  • इसमें धक्का देना, धकेलना, अनुचित तरीके से छूना या कोई भी अवांछित शारीरिक संपर्क शामिल है।
  • प्रयोग किया गया बल हल्का या गंभीर हो सकता है- कोई भी गैर-सहमति वाला स्पर्श बल प्रयोग के योग्य है।
  • नुकसान करने का उद्देश्य जरूरी नहीं है- केवल बल का जानबूझकर उपयोग आवश्यक है।

यौन उत्पीड़न  

  • महिला की सहमति के बिना किया गया कोई भी यौन कृत्य यौन उत्पीड़न माना जाता है।
  • इसमें किसी महिला के निजी अंगों को अवांछित रूप से छूना, ज़बरन चूमना या उसके साथ अन्य यौन संपर्क शामिल है।
  • आपराधिक बल और हमले से संबंधित अपराध के लिये कानूनी प्रावधान क्या हैं?

किसी महिला की शीलता को ठेस पहुँचाने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना। (धारा 74):

शीलता भंग करना:

  • शीलता भंग करने में ऐसे कृत्य शामिल होते हैं जो आपत्तिजनक, अशिष्ट या महिला की शालीनता और नैतिकता की भावना को अपमानित करने वाले होते हैं।
  • इसमें अनुचित स्पर्श, बलपूर्वक कपड़े उतरवाना, अभद्र इशारे या शीलता भंग करने के आशय से की गई टिप्पणियाँ शामिल हैं।
  • ह धारा किसी महिला की शीलता भंग करने के आशय से उस पर हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने से संबंधित है।
  • इसमें उल्लेख किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला पर हमला करता है या आपराधिक बल का उपयोग करता है, जिसका उद्देश्य उसकी शीलता को भंग करना है या उसे यह ज्ञात है कि ऐसा करने से उसकी शीलता भंग होगी, तो उसे न्यूनतम एक वर्ष की कारावास की सज़ा दी जाएगी, जो कि अधिकतम पाँच वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है और उसे ज़ुर्माना भी अदा करना होगा।

यौन उत्पीड़न (धारा 75):

  • यौन उत्पीड़न
    • यह एक जटिल और गंभीर रूप से स्थापित समस्या है जिसने वैश्विक स्तर पर समाज को चिंतित कर रखा है।
    • यौन उत्पीड़न एक महिला के मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। इसका अर्थ है यौन प्रकृति का कोई भी अवांछित आचरण।
    • भारत में यह गंभीर चिंता का विषय रहा है और यौन उत्पीड़न से निपटने के लिये कानूनों का विकास इस समस्या के समाधान के प्रति राष्ट्र की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
    • इस धारा की उपधारा (1) के अनुसार कोई व्यक्ति निम्नलिखित में से कोई भी कार्य करता है:
      • शारीरिक संपर्क और अवांछित एवं स्पष्ट यौन प्रस्ताव।
      • यौन संबंधों के लिये मांग या अनुरोध।
      • किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध अश्लील साहित्य दिखाना।
      • यौन सूचक टिप्पणी करना, यौन उत्पीड़न के अपराध का दोषी माना जाएगा।
    • इस धारा की उपधारा (2) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के खंड (i), (ii) या (iii) में उल्लिखित अपराध करता है, तो उसे तीन वर्ष तक के कठोर कारावास, जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।
    • उपधारा (3) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के खंड (iv) में उल्लिखित अपराध करता है, तो उसे एक निश्चित अवधि के लिये कारावास, जो एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या ज़ुर्माना या दोनों में से किसी एक से दंडित किया जाएगा।
  • महिला के वस्त्रहरण के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग (धारा 76):
    • इस धारा में यह उल्लेख किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला पर हमला करता है या आपराधिक बल का उपयोग करता है या उसे निर्वस्त्र करने या नग्न होने के लिये मज़बूर करने के उद्देश्य से ऐसे कार्यों को प्रोत्साहित करता है, तो उसे किसी भी प्रकार की कारावास की सज़ा दी जाएगी, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन यह सात वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है और इसके साथ ही उसे ज़ुर्माना भी अदा करना होगा।
  • ताक-झाँक (धारा 77):
    • इस धारा में कहा गया है कि जो कोई किसी महिला को ऐसी परिस्थितियों में निजी कार्य करते हुए देखता है या उसकी तस्वीर खींचता है, जहाँ उसे आमतौर पर यह संभावना होती है कि उसे अपराधी के कहने पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं देखा जाएगा या ऐसी तस्वीर प्रसारित करता है।
    • ऐसे व्यक्ति को दंडित किया जाएगा:
      • प्रथम अपराध: किसी भी प्रकार के कारावास की अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन यह तीन वर्ष तक हो सकती है और इसके साथ ही ज़र्माने से भी दंडित किया जा सकेगा।
      • दूसरा या पश्चातवर्ती अपराध: किसी भी प्रकार के कारावास की सज़ा, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जो सात वर्ष तक हो सकती है, दी जाएगी और इसके साथ ही ज़र्माने का प्रावधान भी होगा।
    • "निजी कृत्य" में ऐसा कार्य शामिल है, जिसमें किसी स्थान पर देखना शामिल है, जो परिस्थितियों के अनुसार गोपनीयता प्रदान करने के लिये उचित रूप से अपेक्षित है। इस स्थिति में पीड़िता के जननांग, पीछे का भाग या स्तन या तो खुले होते हैं या केवल अंडरवियर से ढके होते हैं या जब पीड़िता शौचालय का उपयोग कर रही होती है या जब पीड़िता कोई ऐसा यौन कृत्य कर रही होती है, जो सामान्यतः सार्वजनिक रूप से नहीं किया जाता है।
    • पीड़िता की सहमति से ली गई तस्वीरों को उसकी सहमति के बिना किसी तीसरे व्यक्ति को प्रसारित करना दंडनीय होगा।
  • पीछा करना (धारा 78)

पीछा करना  

  • इसे ऐसे व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जाता है, जैसे किसी का लगातार पीछा करना या किसी के साथ निजी तौर पर संवाद करने का प्रयास करना, जिसका उद्देश्य भय या संकट उत्पन्न करना हो।
  • BNS के तहत स्टॉकर वह व्यक्ति होता है जो पीछा करने के कार्य में लगा होता है। स्टॉकिंग में किसी व्यक्ति को डराने या असहज करने के आशय से जानबूझकर और लगातार उसकी सहमति के बिना उसका पीछा करना या उससे संपर्क करना शामिल है।
    • धारा की उपधारा (1) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो
    • किसी महिला का पीछा करना और उससे संपर्क करना या उस महिला की स्पष्ट अरुचि के बावजूद व्यक्तिगत संपर्क बढ़ाने के लिये बार-बार उससे संपर्क करने का प्रयास करना या
    • किसी महिला द्वारा इंटरनेट, ई-मेल या किसी अन्य प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक संचार के उपयोग की निगरानी करना, पीछा करने का अपराध करना: बशर्ते कि ऐसा आचरण पीछा करने के दायरे में नहीं आएगा यदि ऐसा करने वाला व्यक्ति यह साबित कर देता है कि—
      • यह अपराध को रोकने या उसका पता लगाने के उद्देश्य से किया गया था और पीछा करने के आरोपी व्यक्ति को राज्य द्वारा अपराध की रोकथाम तथा पता लगाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी; या
      • यह किसी विधि के तहत या किसी कानून के तहत किसी व्यक्ति द्वारा लगाई गई किसी शर्त या आवश्यकता का पालन करने के लिये किया गया था; या
      • इन परिस्थितियों में ऐसा आचरण उचित एवं न्यायोचित था।
    • इस धारा की उपधारा (2) के अनुसार पीछा करने की सज़ा इस प्रकार है:
      • पहला अपराध: अभियुक्त को तीन वर्ष तक के कारावास या ज़ुर्माना या दोनों की सज़ा दी जा सकती है।
      • बाद के अपराध: यदि अभियुक्त बाद में कोई अपराध करता है, तो उसे पाँच वर्ष तक के कारावास या ज़ुर्माना या दोनों की सज़ा दी जा सकती है।
  • किसी महिला की शीलता का अपमान करने के आशय से उपयोग किये गए शब्द, इशारे या कार्य (धारा 79):

शीलता: 

  • 'शीलता' का भारतीय दंड संहिता (IPC) में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन यह महिलाओं की शिष्टता, शालीनता और व्यवहार, भाषण तथाआचरण में संयम को संदर्भित करता है।
  • एक महिला की शीलता उसके लिंग एवं स्त्रीत्व से जुड़ी होती है, चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो।
    • इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की शीलता को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से कोई शब्द कहता है, कोई ध्वनि या इशारा करता है या किसी भी प्रकार की वस्तु प्रदर्शित करता है, जिसका आशय यह हो कि वह शब्द या ध्वनि उस महिला द्वारा सुनी जाएगी या वह इशारा या वस्तु उस महिला द्वारा देखी जाएगी या किसी महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करेगा, तो उसे साधारण कारावास की सज़ा दी जाएगी, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक हो सकती है और इसके साथ ही उसे ज़ुर्माने से भी दंडित किया जाएगा।

ऐतिहासिक निर्णय

  • पंजाब राज्य बनाम मेजर सिंह (वर्ष 1967):
    • अंतिम परीक्षण यह है कि क्या यह कृत्य महिला की शालीनता की भावना को प्रभावित करने सक्षम है।
    • एक महिला अपने लिंग के कारण जन्म से ही शालीनता का परिचय देती है।
    • शालीनता के उल्लंघन का मूल्यांकन करते समय पीड़ित की आयु का कोई महत्त्व नहीं है।
  • केरल राज्य बनाम हमसा (वर्ष 1988):
    • शीलता भंग करना समाज के रीति-रिवाज़ों और आदतों पर निर्भर करता है। यहाँ तक ​​कि इस तरह के आशय से किये गए इशारे भी IPC की धारा 354 के तहत अपराध सिद्ध हो सकते हैं।
  • राम मेहर बनाम हरियाणा राज्य (वर्ष 1998):
    • किसी महिला को पकड़ना, उसे एकांत स्थान पर ले जाना तथा उसके कपड़े उतारने का प्रयास करना, शीलता भंग करने के समान है।
  • राजू पांडुरंग महाले बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (वर्ष 2004):
    • इस मामले में उच्चत्तम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के अंतर्गत अपराध के आवश्यक तत्त्वों का वर्णन किया है:
    • जिस व्यक्ति पर हमला किया गया है, वह महिला ही होगी।
    • आरोपी ने उस पर आपराधिक बल का प्रयोग किया होगा।
    • ऐसा कृत्य उसकी शीलता भंग करने के आशय से किया गया होगा।
  • तारकेश्वर साहू बनाम बिहार राज्य (वर्ष 2006):
    • शीलता एक ऐसा गुण है, जो महिलाओं के वर्ग से जुड़ा हुआ है।
    • पीड़ित की प्रतिक्रिया नहीं बल्कि आरोपी का दोषपूर्ण आशय महत्त्वपूर्ण है।
    • भले ही पीड़ित को आक्रोश का अहसास न हो (सोते समय, नाबालिग होने पर, आदि), अपराध दंडनीय है।
  • श्री देउ बाजू बोडके बनाम महाराष्ट्र राज्य (वर्ष 2016):
    • बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महिला की दुखद मृत्यु के मामले की सुनवाई की, जो आरोपी द्वारा निरंतर उत्पीड़न और पीछा करने के कारण हुई। पीड़िता की स्पष्ट असहमति तथा प्रतिरोध के बावजूद आरोपी ने लगातार उसका पीछा किया, यहाँ तक कि उसके कार्यस्थल पर भी। हाई कोर्ट ने आत्महत्या के लिये उकसाने और सहायता करने के मामले में आरोपी को ज़िम्मेदार ठहराने के लिये IPC की धारा 354D की प्रासंगिकता पर ज़ोर दिया।
  • कालंदी चरण लेंका बनाम उड़ीसा राज्य (वर्ष 2017):
    • इस मामले में पीड़ित लड़की ने स्कूल में उसके विरुद्ध की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के बारे में न्यायालय का सहारा लिया, जिससे उसकी छवि प्रभावित हुई। साथ ही उसके पिता को एक अज्ञात मोबाइल नंबर से आपत्तिजनक संदेश मिले, जिसने उनके सम्मान को भी ठेस पहुँचाई। इस स्थिति के बारे में जानकारी मिलने पर पिता ने पीड़िता से क्षमा मांगी और उसे पूरी घटना के बारे में बताया। फिर भी उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए ज़मानत देने से मना कर दिया कि आरोपी प्रथम दृष्टया यौन उत्पीड़न का अपराधी है।
  • भारत संघ एवं अन्य बनाम दिलीप पॉल (वर्ष 2023):
    • उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में आरोपों का मूल्यांकन व्यापक दृष्टिकोण से किया जाना चाहिये, न कि केवल प्रक्रियात्मक उल्लंघनों के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिये।

निष्कर्ष 

महिलाओं के विरुद्ध अपराध आज के समाज में एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसके समाधान हेतु हमें तात्कालिक और निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। ये अपराध सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमियों, संस्कृतियों तथा भौगोलिक क्षेत्रों में होते हैं, जो प्रतिदिन अनगिनत व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करते हैं। जबकि महिलाओं की सुरक्षा एवं अपराधियों के विरुद्ध कानूनी प्रावधान मौजूद हैं। वास्तविकता यह है कि डर, शर्म व सामाजिक दबाव के कारण अनेक मामले अभी भी दर्ज नहीं किये जाते हैं। इन अपराधों का प्रभाव केवल शारीरिक चोटों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अक्सर गहरे मनोवैज्ञानिक आघात भी छोड़ता है, जो पीड़ितों को लंबे समय तक प्रभावित कर सकता है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिये उठाए गए हर कदम से हम एक अधिक सभ्य और मानवता के प्रति संवेदनशील समाज की ओर बढ़ते हैं।