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आपराधिक कानून

BNS के अंतर्गत गर्भपात का कारण बनने वाले अपराध

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 19-Sep-2024

परिचय:

भारत में, महिलाओं का गर्भपात कराना एक अपराध है और भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के प्रावधानों के अधीन दण्डनीय अपराध है।

  • गर्भपात से गुज़रने वाली महिला के लिये यह शारीरिक और भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है तथा वह भी जब यह किसी और व्यक्ति के कारण हुआ हो।
  • गर्भपात का कारण बनने वाले अपराधों से संबंधित प्रावधान अध्याय V (महिला और बच्चे के विरुद्ध अपराध) के अंतर्गत दिये गए हैं।

गर्भपात क्या है?

  • इस शब्द को BNS के अंतर्गत परिभाषित नहीं किया गया है।
  • गर्भपात शब्द का सरल अर्थ है गर्भावस्था की समाप्ति कर देना।
  • दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि शिशु के पूर्ण विकास से पहले जानबूझकर गर्भावस्था को समाप्त करने की क्रिया को गर्भपात कहा जाता है।
  • परंतु जब यह दुर्भावना से किया जाता है तो पीड़ित व्यक्ति ऐसा करने वाले के विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सकता है।

 BNS के अधीन गर्भपात के क्या प्रावधान हैं?

  • धारा 88: गर्भपात का कारण:
    • इस धारा में यह कहा गया है कि जो कोई किसी गर्भवती स्त्री का स्वेच्छा से गर्भपात कराता है, परंतु यदि ऐसा गर्भपात उस स्त्री के जीवन को बचाने के उद्देश्य से सद्भावपूर्वक नहीं कराया गया हो, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक हो सकेगी, या अर्थदण्ड से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा; और यदि स्त्री गर्भवती हो, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।
    • आगे स्पष्टीकरण में कहा गया है कि यदि कोई महिला स्वयं अपना गर्भपात कराती है तो यह कृत्य इस धारा के अर्थ में आता है।
  • धारा 89: महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराना:
    • इस धारा में कहा गया है कि जो कोई भी महिला की सहमति के बिना धारा 88 के अधीन अपराध करता है, चाहे महिला गर्भवती हो या नहीं, उसे आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिये कारावास जो दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, से दण्डित किया जाएगा और साथ ही अर्थदण्ड भी देना होगा।
  • धारा 90: गर्भपात कराने के आशय से किये गए कार्य से हुई मृत्यु:
    • खंड (1) में कहा गया है कि जो कोई, गर्भवती महिला का गर्भपात कराने के आशय से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे ऐसी महिला की मृत्यु हो जाती है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और वह अर्थदण्ड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
    • खंड (2) में कहा गया है कि जहाँ उपधारा (1) में निर्दिष्ट कार्य महिला की सहमति के बिना किया जाता है, तो वह या तो आजीवन कारावास से या उक्त उपधारा में निर्दिष्ट दण्ड से दण्डनीय होगा।
    • आगे स्पष्टीकरण में यह कहा गया है कि इस अपराध के लिये यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी को यह पता हो कि उसके इस कृत्य से मृत्यु होने की संभावना है।
  • धारा 91: बच्चे को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के उपरांत उसकी मृत्यु का कारण बनने के आशय से किया गया कार्य:
    • इस धारा में कहा गया है कि जो कोई किसी बालक के जन्म से पूर्व उस बालक को जीवित जन्म लेने से रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु का कारण बनाने के आशय से कोई कार्य करेगा और ऐसे कार्य द्वारा उस बालक को जीवित जन्म लेने से रोकता है या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु का कारण बनता है, यदि ऐसा कार्य माता के जीवन को बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक नहीं किया गया हो, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या अर्थदण्ड से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
  • धारा 92: आपराधिक मानव वध के समान कृत्य से अजन्मे बच्चे की मृत्यु का कारण बनना:
    • इस धारा में यह कहा गया है कि जो कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में कोई ऐसा कृत्य करता है, कि यदि ऐसे कार्य से किसी अजन्मे शिशु की मृत्यु हो जाती है तो वह आपराधिक मानव वध का दोषी होता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, दण्डित किया जाएगा और साथ ही वह अर्थदण्ड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
    • इस अनुभाग को एक उदाहरण के साथ आगे समझाया गया है:
      • ‘क’ यह जानते हुए कि वह गर्भवती स्त्री की मृत्यु कारित कर सकता है, ऐसा कार्य करता है जो यदि उस स्त्री की मृत्यु कारित कर देता है तो वह आपराधिक मानव वध के समान होगा। स्त्री को क्षति पहुँचती है, पर वह मरती नहीं; पर उसके गर्भ में पल रहे अजन्मे शिशु की, जिससे वह गर्भवती है, मृत्यु कारित हो जाती है। ‘क’ इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है।

भ्रूणहत्या एवं गर्भपात के बीच अंतर:

गर्भपात

भ्रूणहत्या

यह गर्भावस्था की प्राकृतिक समाप्ति है।

यह गर्भावस्था की प्रेरित समाप्ति है।

यह कुछ हार्मोनल या जैविक समस्याओं के कारण होता है।

यह औषधियाँ लेने या चिकित्सीय सर्जरी के माध्यम से होता है।

गर्भवती महिला की सहमति के बिना उसका गर्भपात कराना BNS के प्रावधानों के अंतर्गत आता है।

गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 2021 की सहायता से चिकित्सकों द्वारा सहमति से गर्भपात कराया जा सकता है।

निर्णयज विधियाँ:

  • राजेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2024): इस मामले में यह माना गया कि जहाँ गर्भ में बच्चा पूरी तरह से विकसित था, आरोपी को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 312 के अधीन गर्भपात का कारण बनने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यह धारा केवल गर्भधारण अवधि पूरी होने से पहले बच्चे को माँ के गर्भ से बाहर निकालने पर विचार करती है।
  • इम्तियाज़ इस्माइल शेख बनाम गुजरात राज्य (2008): इस मामले में याचिकाकर्त्ता को एक महिला की सहमति के बिना उसका गर्भपात कराने के अपराध के अधीन उत्तरदायी ठहराया गया था।

निष्कर्ष:

इससे पहले, गर्भपात कराने के प्रावधान IPC की धारा 312 से धारा 316 के अंतर्गत आते थे। गर्भपात कराने के लिये महिला को भी IPC के अधीन दण्डित किया जा सकता है, सिवाय इसके कि अगर ऐसा करना उसकी जान बचाने के लिये आवश्यक हो। गर्भपात कराने का अपराध एक संज्ञेय और ज़मानती अपराध है जो गैर-समझौता योग्य भी है।