IPC के अंतर्गत हमला
Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है









होम / भारतीय दंड संहिता

आपराधिक कानून

IPC के अंतर्गत हमला

    «
 26-Jun-2024

परिचय:

जब किसी व्यक्ति के प्रति यह जानते हुए भी कि उस व्यक्ति को ऐसी आशंका है, किसी व्यक्ति द्वारा कोई संकेत (अंगविक्षेप) किया जाता है, कि वह उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने जा रहा है, तो इसे हमला कहा जाता है।

  • भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 351 हमले के अपराध से संबंधित है।
  • केवल शब्दों का प्रयोग हमला नहीं माना जाता, बल्कि एक व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त शब्द उसके हाव-भाव या संकेतों को ऐसा अर्थ दे सकते हैं, जिससे उन हाव-भाव या संकेत को हमला माना जा सकता है।
  • ‘हमला’ माने जाने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि कोई वास्तविक चोट पहुँचाई गई हो।

IPC के अंतर्गत परिभाषा:

  • IPC की धारा 351 हमले को इस प्रकार परिभाषित करती है:
    • जो कोई, कोई संकेत या तैयारी यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि ऐसे संकेत या तैयारी से उपस्थित किसी व्यक्ति को यह आशंका हो जाएगी कि वह इशारा या तैयारी करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने वाला है, तो उसने हमला किया कहा जाता है।

हमले के आवश्यक तत्त्व:

  • हमले का अपराध सिद्ध करने के लिये निम्नलिखित तत्त्वों को सिद्ध किया जाना चाहिये:
  • कोई भी इशारा या तैयारी करना:
    • आपराधिक बल के प्रयोग की आशंका उस व्यक्ति से होनी चाहिये जो ऐसा संकेत कर रहा है या तैयारी कर रहा है।
  • आशय या ज्ञान:
    • इस अपराध का सार यह आशय या ज्ञान है कि अभियुक्त द्वारा किये गए संकेत या तैयारी से दूसरे व्यक्ति के मन पर ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि उसे यह आशंका होगी कि उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग किया जाने वाला है।

हमले के लिये दण्ड:

  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 352 हमले के लिये दण्ड से संबंधित है।
  • जो कोई, किसी व्यक्ति पर उसके द्वारा दिये गए गंभीर एवं आकस्मिक प्रकोपन के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से हमला करता है, उसे तीन माह तक के कारावास या पाँच सौ रुपए तक के अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

हमले के प्रकार:

  • लोक सेवक को उसके कर्त्तव्य निर्वहन से रोकने के लिये हमला या आपराधिक बल का प्रयोग: (धारा 353)
    • जो कोई किसी लोक सेवक पर उसके कर्त्तव्य के निष्पादन में या उस व्यक्ति को उसके कर्त्तव्य का निर्वहन करने से रोकने या भयग्रस्त करने के आशय से हमला करता है, तो उस व्यक्ति को दो वर्ष तक के कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
  • किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग: (धारा 354)
    • जो कोई किसी महिला पर उसकी लज्जा भंग करने के आशय से हमला करता है, उस व्यक्ति को कम-से-कम एक वर्ष के कारावास से, जिसे पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा, दण्डित किया जाएगा और अर्थदण्ड भी देय होगा।
  • महिला को निर्वस्त्र करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग: (धारा 354-B)
    • कोई भी व्यक्ति जो किसी महिला पर हमला करता है या उसे निर्वस्त्र करने या नग्न होने के लिये बाध्य करने के आशय से ऐसे कृत्य के लिये उकसाता है, उसे न्यूनतम 3 वर्ष की अवधि के कारावास से, जो 7 वर्ष तक बढाई जा सकेगी, दण्डित किया जाएगा और अर्थदण्ड भी देना होगा।
  • गंभीर प्रकोपन के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से किसी व्यक्ति का अपमान करने के आशय से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग: (धारा 355)
    • जो कोई किसी व्यक्ति पर उस व्यक्ति द्वारा दिये गए गंभीर एवं आकस्मिक प्रकोपन के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से अपमान करने के आशय से हमला करता है, तो उस व्यक्ति को दो वर्ष तक के कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
  • किसी व्यक्ति द्वारा ले जाई जा रही संपत्ति की चोरी करने के प्रयास में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग: (धारा 356)
    • जो कोई किसी व्यक्ति पर, उस व्यक्ति द्वारा पहनी या ले जाई जा रही किसी संपत्ति की चोरी करने का प्रयास करते हुए हमला करता है, उसे दो वर्ष तक के कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
  • किसी व्यक्ति को गलत तरीके से बंधक बनाने के प्रयास में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग: (धारा 357)
    • जो कोई किसी व्यक्ति पर, उस व्यक्ति को सदोष परिरुद्ध करने का प्रयत्न करते हुए हमला करता है, वह व्यक्ति कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की होगी, या अर्थदण्ड से, जो एक हज़ार रुपए तक का होगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
  • गंभीर प्रकोपन पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग: (धारा 358)
    • जो कोई किसी व्यक्ति पर उसके द्वारा दिये गए गंभीर एवं आकस्मिक प्रकोपन पर हमला करता है, उसे एक माह तक की अवधि के लिये साधारण कारावास या दो सौ रुपए तक के अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

निर्णयज विधियाँ:

  • रूपाबती बनाम श्यामा (1958):
    न्यायालय ने कहा कि हमला करने के लिये किसी प्रकार की वास्तविक चोट पहुँचाना आवश्यक नहीं है, केवल धमकी देना भी हमला माना जा सकता है।
  • पदारथ तिवारी बनाम दुलहिन तपेशा कुएरी (1932):
    न्यायालय ने कहा कि किसी महिला की सहमति के बिना उसकी मेडिकल जाँच कराना, हमले का अपराध है।

निष्कर्ष:

IPC के अंतर्गत परिभाषित ‘हमले’ में कई तरह की कार्यवाहियाँ शामिल हैं जो आपराधिक बल प्रयोग की आशंका उत्पन्न करती हैं। न्यायिक व्याख्याओं के माध्यम से, हमले के अपराध की समझ विकसित हुई है, जिससे पीड़ितों को बेहतर सुरक्षा और न्याय मिल रहा है। अधिकारों के प्रवर्तन तथा ऐसे अपराधों की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिये विधिक पेशेवरों एवं सामान्य जनता दोनों के लिये हमले से जुड़े विधिक ढाँचे को समझना महत्त्वपूर्ण है।