दहेज मृत्यु
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दहेज मृत्यु

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 29-Nov-2023

परिचय:

  • 'दहेज' शब्द को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) में परिभाषित नहीं किया गया है, बल्कि 'दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961' में परिभाषित किया गया है।
  • अधिनियम के अनुसार, इसे किसी भी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दिया जाता है या दिये जाने के लिये सहमति होती है:
  • विवाह के एक पक्ष द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा या
  • विवाह के किसी भी पक्ष के माता-पिता द्वारा या विवाह के किसी भी पक्ष के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उक्त पक्षों के विवाह के संबंध में विवाह के समय या पहले या बाद में किसी भी समय।
  • दहेज मृत्यु को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 304B के तहत परिभाषित किया गया है, जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 113B में दहेज मृत्यु की उपधारणा बताई गई है।

IPC के तहत दहेज मृत्यु (धारा 304B):

  • “अगर किसी महिला के विवाह के सात वर्ष के भीतर किसी जलने या शारीरिक चोट से मृत्यु हो जाती है या यह पता चलता है कि उसके विवाह से पूर्व वह दहेज की मांग के संबंध में अपने पति या पति के किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार हुई थी, तो महिला की मृत्यु को दहेज मृत्यु माना जाएगा।”

धारा 304B की अनिवार्यताएँ:

  • किसी महिला की मृत्यु सामान्य परिस्थितियों की तुलना में जलने या शारीरिक चोट के कारण या किसी अन्य कारण से हो।
  • मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के भीतर हो।
  • महिला को अपने पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा हो।
  • क्रूरता या उत्पीड़न दहेज की माँग के संबंध में और मृत्यु से ठीक पहले हुआ हो।
  • ऐसा दर्शाया गया हो कि ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न महिला के साथ उसकी मृत्यु से ठीक पहले किया गया था।

दंड:

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 304-B (2) के तहत, जो कोई भी दहेज मृत्यु को अंजाम देता है, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि 7 वर्ष से कम नहीं होगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

संबंधित प्रावधान:

IPC की धारा 498A: क्रूरता

  • यह प्रावधान क्रूरता को इस प्रकार परिभाषित करता है, "जो कोई भी, किसी महिला का पति या पति का कोई रिश्तेदार हो, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करेगा, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है और ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।"

साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 113B”:

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 113B 'दहेज मृत्यु के अनुमान' के बारे में बात करती है। यदि कोई महिला की मृत्यु दहेज की किसी माँग के कारण होती है और यह पता चलता है कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा उसे उत्पीड़न या क्रूरता का शिकार बनाया गया था। तब न्यायालय द्वारा यह मान लिया जाएगा कि अमुक व्यक्ति ने ऐसी दहेज मृत्यु को अंजाम दिया है।
  • धारा 113B में "करेगा" शब्द का उपयोग किया गया है, इस प्रकार यह कानून की एक उपधारणा है। उपर्युक्त उल्लिखित आवश्यक तथ्यों के प्रमाण पर न्यायालय के लिये यह उपधारणा लगाना अनिवार्य हो जाता है कि अभियुक्त 'दहेज मृत्यु' का कारण बना। न्यायालय के पास इस धारा के तहत अनुमान लगाने का कोई विवेक नहीं है यदि आवश्यक संघटक साबित हो जाते हैं तो वे भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 113B के तहत यह उपधारणा लगाने के लिये बाध्य है।
  • धारा 304B भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 113B का एक अभिन्न अंग है। क्रूरता को शारीरिक क्रूरता तक सीमित रखने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ तक कि किसी दिये गए मामले में मानसिक यातना भी धारा 304B और 498A के तहत क्रूरता या उत्पीड़न का मामला होगा।

निर्णयज विधि:

  • शांति बनाम हरियाणा राज्य (1990):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 'एक महिला की मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर हुई, मृतिका के ससुराल वालों ने मृतिका के माता-पिता को मृत्यु के बारे में सूचित नहीं किया और जल्दबाज़ी में मृतिका का अंतिम संस्कार कर दिया। अभियोजन पक्ष पीड़िता के प्रति क्रूर व्यवहार स्थापित करने में सफल रहा। मृत्यु को प्राकृतिक मृत्यु नहीं कहा जा सकता था और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 113B के तहत उपधारणा लगाया गया था।
  • गुरुमीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (2021):
    • यह मामला दहेज मृत्यु से संबंधित था, जिसमें अभियुक्त पक्ष की ओर से दलील दी गई थी कि धारा 498A, IPC (क्रूरता) के तहत किसी भी आरोप के बिना, धारा 304-B, IPC (दहेज मृत्यु) के तहत दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता है।
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि “यद्यपि क्रूरता दोनों अपराधों में विद्यमान एक सामान्य सूत्र है, तथापि प्रत्येक अपराध के संघटक अलग-अलग होते हैं और अभियोजन पक्ष द्वारा इसे अलग से सिद्ध किया जाना चाहिये। अगर मामला बनता है तो दोनों धाराओं के तहत सज़ा हो सकती है।''

निष्कर्ष:

दहेज मृत्यु और दुल्हन को जलाना अजीब सामाजिक बीमारी के लक्षण हैं तथा हमारे सामाजिक ढाँचे का एक दुर्भाग्यपूर्ण विकास है। कानून निर्माताओं ने इस गंभीर समस्या पर ध्यान देते हुए कानून को तथ्यात्मक और व्यवहारिक बनाने के लिये एक नया प्रावधान बनाया।

वर्ष 1986 में दहेज मृत्यु से निपटने के लिये IPC में एक विशेष प्रावधान धारा 304B जोड़ी गई थी। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में धारा 113B के रूप में एक साथ संशोधन किया गया। दहेज मृत्यु के अपराध को साबित करने के लिये साक्ष्य का नियम धारा 113B, IEA में दहेज मृत्यु के बारे में उपधारणा लगाने का प्रावधान है।