होम / किशोर न्याय अधिनियम

आपराधिक कानून

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 3: 16 मार्गदर्शक सिद्धांत

    «
 08-Apr-2025

परिचय 

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (किशोर न्याय अधिनियम) की धारा 3 के अधीन सोलह (16) मौलिक सिद्धांत स्थापित करती है, जिनका पालन इस अधिनियम के क्रियान्वयन में सभी संबंधित प्राधिकरणों एवं अभिकरणों द्वारा किया जाना अनिवार्य है। उक्त सिद्धांत सम्मिलित रूप से एक बाल केंद्रित दृष्टिकोण को प्रतिपादित करते हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य प्रत्येक बालक के कल्याण, गरिमा तथा पुनर्वास को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करना है।" 

सोलह (16) मार्गदर्शक सिद्धांत 

  • निर्दोषता की उपधारणा का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत प्रतिपादित करता है कि अठारह वर्ष से कम आयु के समस्त बालकों को आपराधिक आशय से रहित मानते हुए निर्दोषता की उपधारणा की जाएगी, क्योंकि उनकी मानसिक एवं भावनात्मक अवस्था विकासशील होती है तथा वे अपने कृत्यों के परिणामों की समझ एवं परिपक्वता में सीमित होते हैं।" 
  • गरिमा और महत्त्व का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत निर्धारित करता है कि प्रत्येक बालक के साथ किसी भी परिस्थिति में समान गरिमा एवं मानवीय महत्त्व के साथ व्यवहार किया जाना अनिवार्य है। बालकों के साथ किसी भी प्रकार की अपमानजनक, अमानवीय अथवा अवमाननापूर्ण (Degrading) व्यवहार अथवा प्रक्रिया पूर्णतः निषिद्ध है तथा उनके साथ प्रत्येक स्तर पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना अनिवार्य है। 

  • सहभागिता का सिद्धांत:  
    • यह सिद्धांत निर्धारित करता है कि प्रत्येक बालक को उसके जीवन, विकास तथा संरक्षण से संबंधित निर्णयों में अपनी अभिव्यक्ति करने का अधिकार है। बालक की आयु, परिपक्वता एवं समझ के अनुरूप उसकी राय को यथोचित महत्त्व प्रदान किया जाना अनिवार्य है। इस सिद्धांत के अंतर्गत बालक को एक सक्रिय अधिकार-धारक (Active Rights-Holder) के रूप में मान्यता प्राप्त है। 
  • सर्वोत्तम हित का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत अधिनियम की प्रत्येक प्रक्रिया एवं निर्णय में यह सुनिश्चित करता है कि बालक के कल्याण एवं हित को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की जाए। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु बालक की शारीरिक एवं भावनात्मक कुशलता (Physical and Emotional Well-being), विकासात्मक आवश्यकताओं एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का व्यक्तिगत रूप से मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है 
  • पारिवारिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत प्रतिपादित करता है कि प्रत्येक बालक की देखरेख, संरक्षण एवं पालन-पोषण हेतु उसके जैविक (Biological), दत्तक (Adoptive) अथवा पालक परिवार (Foster Family) का प्राथमिक उत्तरदायित्व है। इस अधिनियम की प्रणाली का उद्देश्य परिवार की भूमिका का प्रतिस्थापन नहीं है, अपितु आवश्यकतानुसार परिवार को सहयोग एवं सहायता प्रदान करना है, ताकि बालक के विकास हेतु पारिवारिक वातावरण सुलभ हो सके, सिवाय जब आवश्यक हो। 
  • सुरक्षा का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत अधिनियम के अंतर्गत यह व्यवस्था करता है कि बालकों के न्याय प्रणाली तथा देखरेख एवं संरक्षण व्यवस्था के संपर्क में रहने की समस्त प्रक्रियाओं के दौरान उनकी शारीरिक एवं मानसिक/भावनात्मक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। किसी भी प्रकार की हानि, उत्पीड़न, शोषण अथवा दुर्व्यवहार (Harm, Exploitation or Abuse) से बालकों के पूर्ण संरक्षण के लिये समग्र उपायों को अपनाया जाना अनिवार्य है 
  • सकारात्मक उपायों का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत प्रतिपादित करता है कि बालकों के लिये सहयोगात्मक एवं सहायक वातावरण का निर्माण करने तथा उनकी भेद्यता (Vulnerability) के मूल कारणों को दूर करने के लिये परिवार, समुदाय तथा राज्य के संसाधनों को समुचित रूप से सक्रिय किया जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु निवारक दृष्टिकोण  को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिये 
  • गैर-कलंकित शब्दार्थ का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत यह निर्देशित करता है कि बालकों से संबंधित किसी भी न्यायिक अथवा प्रशासनिक कार्यवाही में अभियोगात्मक, आरोपित या कलंकित भाषा (Accusatory or Stigmatizing Language) का प्रयोग पूर्णतः निषिद्ध है। ऐसा कोई भी शब्द प्रयोग, जो बालक की आत्म-छवि अथवा भविष्य की संभावनाओं को क्षति पहुँचा सकता हो, वर्जित है। अतः बालकों के प्रति संवेदनशील, सम्मानजनक एवं गैर-कलंकित भाषा का प्रयोग अनिवार्य है। 
  • अधिकारों का त्याग न किये जाने का सिद्धांत: 
    • किसी भी बालक के अधिकारों का त्याग किसी के द्वारा नहीं किया जा सकता, यह बालकों को ऐसे निर्णयों से बचाता है जो दबाव या भेद्यता के कारण उनके हितों से समझौता कर सकते हैं। 
  • समानता और गैर-भेदभाव का सिद्धांत: 
    • किसी भी आधार पर भेदभाव निषिद्ध है, सभी बालकों के लिये आवश्यक सेवाओं तक समान पहुँच के साथ, जिसमें विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों के लिये उपयुक्त आवास सम्मिलित हैं। 
  • निजता और गोपनीयता का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत यह व्यवस्था करता है कि बालकों की निजता एवं गोपनीयता की रक्षा करना अनिवार्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु बालक से संबंधित समस्त अभिलेखों को गोपनीय रखा जाएगा। आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय की कार्यवाही को बंद कक्ष  में संचालित किया जाएगा तथा मीडिया पर आवश्यक प्रतिबंध लगाए जाएंगे, जिससे बालक की पहचान उजागर न हो एवं उसे किसी भी प्रकार के कलंक से संरक्षित किया जा सके 
  • अंतिम उपाय के रूप में संस्थागतकरण का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत प्रतिपादित करता है कि किसी भी बालक को संस्थागत देखरेख अथवा आवासीय संस्थान में तभी रखा जाएगा जब अन्य सभी वैकल्पिक उपाय पूर्णतः प्रयुक्त एवं निष्फल हो चुके हों। यह सिद्धांत यह मान्यता देता है कि परिवार के वातावरण से बालक को अलग करना उसके विकास, मानसिक स्वास्थ्य तथा सामाजिक पुनर्वास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। अतः संस्थागत देखरेख को केवल अंतिम विकल्प (Last Resort) के रूप में स्वीकार किया जाएगा 
  • प्रत्यावर्तन और पुनर्स्थापना का सिद्धांत: 
    • यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि अधिकतर परिस्थितियों में बालक के पूर्व के आचरण अथवा अपराध संबंधी अभिलेखों को मिटा दिया जाएगा अथवा गोपनीय रखा जाएगा, जिससे बालक को अपने जीवन में नवीन प्रारंभ  करने का अवसर प्राप्त हो। 
  • नवीन प्रारंभ का सिद्धांत: 
    • अधिकांश परिस्थितियों में पिछले रिकॉर्ड मिटा दिए जाने चाहिए, जिससे बच्चों को उनके भविष्य के अवसरों को पिछले कार्यों द्वारा सीमित किए बिना नए सिरे से शुरुआत करने का मौका मिले। 
  • विचलन का सिद्धांत:  
    • यह सिद्धांत यह प्रतिपादित करता है कि उपयुक्त परिस्थितियों में बालकों के विरुद्ध औपचारिक न्यायिक कार्यवाही की अपेक्षा वैकल्पिक उपायों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। ऐसे वैकल्पिक उपायों में परामर्श, सामुदायिक सेवा, पुनर्स्थापनात्मक विधि अथवा अन्य सुधारात्मक एवं बालकहितकारी उपाय सम्मिलित हो सकते हैं। 
  • प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत: 
    • प्रक्रियात्मक निष्पक्षता सुनिश्चित की जानी चाहिए, जिसमें निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, पक्षपात के विरुद्ध संरक्षण और सभी प्रक्रियाओं में निर्णयों का पुनर्विलोकन करने का अधिकार सम्मिलित है। 

निष्कर्ष 

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 3 किशोर न्याय के लिये एक प्रगतिशील, अधिकार-आधारित दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है। ये सोलह (16) सिद्धांत सामूहिक रूप से एक ऐसा ढाँचा स्थापित करते हैं जो बालकों की भेद्यता को पहचानता है जबकि उनकी स्वायत्तता और गरिमा का सम्मान करता है। इनमें से प्रत्येक सिद्धांत एक व्यापक, अधिकार-आधारित ढाँचा बनाने के लिये दूसरों के साथ मिलकर काम करता है जो जवाबदेही और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता सुनिश्चित करते हुए बालकों के कल्याण, विकास और पुनर्वास को प्राथमिकता देता है। यह बाल-केंद्रित दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है और बालकों को जिम्मेदार नागरिक के रूप में उनके विकास का समर्थन करते हुए उन्हें आवश्यक संरक्षण प्रदान करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।