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व्यवहार विधि
मुस्लिम विधि के तहत भरण-पोषण का कानून
« »20-Oct-2023
परिचय
भरण-पोषण को "नफ्काह" के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है कि एक पुरुष अपने परिवार पर कितना खर्च करता है जिसमें भोजन, कपड़ा और आवास शामिल हैं।
- भरण-पोषण की अवधारणा में पत्नी के अधिकारों की रक्षा करना और उसके सम्मानजनक जीवन की रक्षा करना शामिल है और विवाह के खत्म होने के बाद भी यदि पत्नी अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है तो पति का दायित्व है कि वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करे।
भरण-पोषण का दायित्त्व
एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति 'नफ्काह' या भरण-पोषण के लिये उत्तरदायी हो जाता है, जब -
- वह उसकी पत्नी हो, या
- उसके संबंधी होने के नाते यानी, बच्चे, पोता-पोती, वृद्ध माता-पिता व अन्य रिश्तेदार हो, या
- उसका सेवक हो।
दावे के लिये आवश्यक शर्तें- सामान्य नियम-
- इस संबंध में सामान्य नियम यह है कि केवल वही व्यक्ति भरण-पोषण का हकदार है - (i) जिसके पास अपनी कोई संपत्ति नहीं है, (ii) जो उस व्यक्ति से प्रतिषिद्ध डिग्री (prohibited degrees) के भीतर संबंधित है, या (iii) वह व्यक्ति जिस पर वह "आसान परिस्थितियों" में दावा करता है।
अपवाद-
उपर्युक्त सामान्य नियम निम्नलिखित पर लागू नहीं होते हैं:
- जब दावेदार पत्नी हो, और
- जब दावेदार अवयस्क बेटे या अविवाहित बेटियाँ हों, सिवाय इसके कि जब उसके पास कोई साधन न हो।
भरण-पोषण के हकदार व्यक्ति:
- पत्नी
- बच्चे
- माता-पिता और दादा-दादी
- अन्य संबंधी
मुस्लिम पत्नी को भरण-पोषण:
- मुस्लिम विधि के तहत, पत्नी का अपने पति द्वारा भरण-पोषण पाने का पूर्ण अधिकार है। एक मुस्लिम पति अपनी पत्नी को वैध विवाह में भरण-पोषण देने के लिये बाध्य है, भले ही इस संबंध में कोई करार न हो।
- एक पति अपनी पत्नी को हर परिस्थिति में उचित भरण-पोषण प्रदान करने के लिये बाध्य है,चाहे उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो या नहीं।
भरण-पोषण की मात्रा:
- भरण-पोषण की मात्रा किसी भी वैवाहिक विधि के तहत निर्धारित नहीं है। इसका निर्णय पति-पत्नी की स्थिति के आधार पर न्यायालय के विवेक के अनुसार की जाती है।
- भरण-पोषण प्रदान करने के अलावा पति, पत्नी को अन्य अनुबंधित खर्च जैसे खर्च - ए - पानदान (Kharch-I-pandan) व मेवा-खोरी (Meva- kohri) आदि देने के लिये बाध्य है।
किन परिस्थितियों में पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है?
- उसने यौवनागम प्राप्त न किया हो;
- उसने पर्याप्त कारण के साथ अपने पति और वैवाहिक कर्त्तव्यों को त्याग दिया हो;
- जहाँ वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ सहपलायन कर गई हो;
- ऐसे मामले में जहाँ वह अपने पति की आज्ञा की अवज्ञा करती हो;
लेकिन पत्नी अपने पति की अवज्ञा करने पर भी भरण-पोषण का दावा कर सकती है
- यदि पति अन्य स्त्री से संबंध रखता हो;
- यदि पति अपनी पत्नी के प्रति क्रूरता करने का दोषी हो;
- यदि पति की बीमारी, विकृति, पत्नी की पूर्व अनुमति के बिना उसकी अनुपस्थिति या पति ने अभी भी यौवन की आयु प्राप्त नहीं की है, के कारण विवाह संपन्न नहीं हो सकता हो;
आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत पत्नी का भरण-पोषण:
- इस अधिनियम के तहत भरण-पोषण के लिये पत्नी का दावा एक स्वतंत्र वैधानिक अधिकार है, जो उसकी स्वविधि से प्रभावित नहीं होता है।
- एक मुस्लिम पत्नी, जो अपने पति के दूसरे विवाह के कारण अलग रहती है, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधान के तहत भरण-पोषण भत्ते का दावा करने की हकदार है।
- मो. अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (1985), मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपना निर्णय दोहराया और माना कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला, जब तक उसने दोबारा विवाह नहीं किया है, धारा 125, Cr.P.C, 1973 के प्रयोजन हेतु एक पत्नी के रूप में वह अपने पूर्व पति से भरण-पोषण पाने की हकदार है।
मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत भरण-पोषण:
- इद्दत के दौरान भरण-पोषण: तलाकशुदा महिला अपने पूर्व पति से 'इद्दत' अवधि के दौरान अपने लिये पर्याप्त और उचित मात्रा में भरण-पोषण पाने की हकदार है।
- इद्दत के बाद भरण-पोषण: जो तलाकशुदा महिला इद्दत के बाद अविवाहित रहती है और अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ होती है, वह अपने ऐसे रिश्तेदारों से भरण-पोषण पाने की हकदार होती है जो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे। ऐसे किसी भी रिश्तेदार की अनुपस्थिति में या, जहाँ उनके पास पर्याप्त साधन नहीं हैं, तो अंततः उसके भरण-पोषण का दायित्व उस राज्य के वक्फ बोर्ड पर डाल दिया जाता है, जिसमें वह रहती है।
- मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 ने अब मुस्लिम महिलाओं के संबंध में आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125-128 के संचालन को वैकल्पिक बना दिया है।
- डेनियल लतीफी और अन्य बनाम भारत संघ (2001) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली सभी रिट याचिकाओं को पी.आई.एल. में एक साथ जोड़ दिया गया था। मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 की वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिका को उच्चतम न्यायालय ने खारिज़ कर दिया। न्यायालय ने अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा।
बच्चों का भरण-पोषण:
- बच्चे अपने माता-पिता की ज़िम्मेदारी होते हैं और उनकी देखभाल की जानी चाहिये। वे अपने माता-पिता और विशेष रूप से पिता से उचित और पर्याप्त भरण-पोषण के हकदार होते हैं।
- मुस्लिम विधि के तहत पुरुषों को श्रेष्ठ माना जाता है और अपने परिवार का भरण-पोषण करना उनका दायित्व होता है और बच्चे का भरण-पोषण उनकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी होती है।
- अपने बच्चे के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी माँ की तब बनती है जब बच्चा नाजायज़ हो और पति ने बच्चे का भरण-पोषण करने से इंकार कर दिया हो।
- हनफी कानून के तहत यदि पिता गरीब है और माँ अमीर है तो उस स्थिति में बच्चे का भरण-पोषण करना माँ का दायित्व है। हालाँकि, वह इस धन को तब वसूल कर सकती है, जब पति उसे चुकाने की स्थिति में आ जाए।
- शैफी कानून के तहत यदि पिता गरीब और माँ अमीर है तो भी माँ अपने बच्चे का भरण-पोषण करने के लिये बाध्य नहीं है; उस स्थिति में बच्चे का भरण-पोषण करना दादा का दायित्व है।
माता-पिता एवं दादा-दादी का भरण-पोषण:
- जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों का भरण-पोषण करने के लिये बाध्य हैं, उसी प्रकार बच्चे भी अपने माता-पिता को भरण-पोषण प्रदान करने के लिये उत्तरदायी हैं। प्रत्येक बच्चा, चाहे वह पुरुष हो या महिला, वयस्क हो या नाबालिग, जिसके पास पर्याप्त संपत्ति है, वह अपने माता-पिता को भरण-पोषण प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- यदि - (i) कोई संतान नहीं है, या (ii) बच्चे गरीब हैं, तो यह पोते-पोतियों की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने दादा-दादी को भरण-पोषण प्रदान करें।
निष्कर्ष
मुस्लिम विधि के भरण-पोषण प्रावधान अन्य व्यक्तिगत कानूनों से भिन्न हैं। मुस्लिम विधि के तहत पत्नियों की स्थिति में सुधार के लिये न्यायिक प्रणाली और कानून के अधिक प्रयासों तथा योगदान की आवश्यकता है।
भरण-पोषण की अवधारणा में पत्नी के अधिकारों की रक्षा करना और उसके सम्मानजनक जीवन की रक्षा करना शामिल है, विवाह के खत्म होने के बाद भी यदि पत्नी अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है तो पति का दायित्व है कि वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करे। यह न केवल पत्नी को बल्कि बच्चों, माता-पिता, दादा-दादी तथा पोते-पोतियों और रक्त संबंधी अन्य रिश्तेदारों को भी प्रदान किया जाता है।