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सिविल कानून
खतरनाक पशुओं के प्रति दायित्व
«20-Feb-2025
परिचय
- स्थापित विधिक सिद्धांत इस बात में स्पष्ट अंतर प्रदर्शित करते हैं कि विधि विभिन्न श्रेणियों के पशुओं के साथ कैसा व्यवहार करती है तथा दूसरों और उनकी संपत्ति को नुकसान से बचाने के लिये उनके स्वामियों या रखवालों पर तदनुसार क्या बाध्यतायें अधिरोपित की जाती हैं।
- विधि में पशुपालकों के लिये अपने पशुओं पर उचित नियंत्रण बनाए रखने और दूसरों को नुकसान से बचाने के लिये अपने उत्तरदायित्वों से अवगत होने के महत्त्व को बताया गया है।
- जैसे-जैसे समाज निरंतर विकसित होता जा रहा है, ये विधिक सिद्धांत उत्तरदायी पशु स्वामित्व को प्रोत्साहित करने और लोक सुरक्षा के संरक्षण में आवश्यक बने हुए हैं।
पशुओं का वर्गीकरण और मूल दायित्व का सिद्धांत
- विधि दायित्व अवधारित करने के प्रयोजन के निमित्त पशुओं की दो अलग-अलग श्रेणियों को मान्यता देती है।
- प्रथम श्रेणी, जिसे “स्वाभाविकतः खतरनाक” (ferae naturae) के रूप में जाना जाता है, में स्वाभाविक रूप से खतरनाक प्रजातियों के जानवर शामिल हैं, जिनमें शेर, बाघ, भालू, भेड़िये, हाथी और बंदर शामिल हैं, परंतु इन्हीं तक सीमित नहीं हैं।
- द्वितीय श्रेणी, “स्वाभाविकतः अहानिकर” (mansuetae naturae) में पालतू या प्राकृतिक रूप से हानिरहित पशु जैसे कुत्ते, घोड़े, गाय, बिल्लियाँ और खरगोश शामिल हैं।
- पशुपालक किसी भी श्रेणी के पशुओं द्वारा कारित नुकसान के लिये, उपेक्षा से स्वतंत्र, कठोर दायित्व वहन करते हैं।
अवबोधन नियम (Scienter Rule) और उसका अनुप्रयोग
- अवबोधन नियम यह स्थापित करता है कि पशुपालक का प्रतिपादित दायित्व पशु की खतरनाक प्रवृत्तियों के बारे में उसके ज्ञान पर निर्भर करता है।
- स्वाभाविकतः खतरनाक के रूप में वर्गीकृत पशुओं के बारे में जानता है की वह स्वभावतः खतरनाक प्रकृति के होने के कारण निश्चायक और अखण्डनीय उपधारणा है।
- यद्यपि, स्वाभाविकतः अहानिकर पशुओं के लिये, पशुपालकों का दायित्व केवल इस बात के प्रमाण पर उत्पन्न होता है कि वह पशु की विशिष्ट खतरनाक प्रवृत्तियों से अवगत थे।
- इस सिद्धांत की कई ऐतिहासिक मामलों में प्रमुख रूप से व्याख्या की गई थी:
- मे बनाम बर्डेट (1846) मामले ने एक बंदर को रखने के लिये दायित्व स्थापित किया जिसने बाद में वादी को काट लिया।
- हडसन बनाम रॉबर्ट्स (1851) मामले ने दायित्व की पुष्टि की जहाँ लाल रंग से भड़ककर एक बैल ने लाल रंग के कपड़े पहने एक व्यक्ति पर आक्रमण कर दिया।
- रीड बनाम एडवर्ड्स (1864) मामले ने कुत्ते के लिये दायित्व अवधारित किया जो तीतर पक्षी का पीछा करने और उन्हें नष्ट करने के लिये जाना जाता है।
पशु अतिचार और आधुनिक विधायी ढाँचा
- पशु अतिचार से संबंधित विधि सामान्य विधि और सांविधिक प्रावधानों दोनों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण रूप से विकसित हुई है।
- इंग्लैंड में पशु अधिनियम 1971 ने पारंपरिक सामान्य विधि नियमों को संशोधित किया, जिसमें दूसरे की संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले पशुओं के स्वामियों के लिये कठोर दायित्व पेश किया गया।
- इस अधिनियम ने राजमार्गों पर भटकने वाले पशुओं द्वारा कारित नुकसान के लिये पूर्व में दी गई प्रतिरक्षा को समाप्त कर दिया और उपेक्षा के आधार पर दायित्व अवधारित करने के लिये नए सिद्धांत स्थापित किये ।
भारत में सांविधिक प्रावधान
- पशु अतिचार अधिनियम, 1871 भारत में पशु अतिचार से निपटने के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।
- अधिनियम में एक ऐसी व्यवस्था स्थापित की गई है, जहाँ अवैध रूप से प्रवेश करने वाले पशुओं को रोका जा सकता है तथा "पशुओं" की परिभाषा में विभिन्न प्रकार के पशुओं को शामिल किया गया है, जैसे सुअर, हाथी, ऊंट, भैंस, घोड़े, भेड़ और बकरी।
- अधिनियम में किसानों को फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले अतिचारी पशुओं को पकड़ने करने का अधिकार दिया गया है, बशर्ते कि ऐसे पशुओं को पकड़ने के 24 घंटे के अंदर अभिहित बाड़ों (पशुओं को बंद करने वाला बाड़ा) में अंतरित किया जाना चाहिये ।
निष्कर्ष
पशु दायित्व को नियंत्रित करने वाला विधिक ढाँचा लोक सुरक्षा का संरक्षण और पशु स्वामियों के अधिकारों को मान्यता देने के बीच एक सावधानीपूर्वक संतुलन को दर्शाता है। स्वाभाविकतः खतरनाक (ferae naturae) और स्वाभाविकतः अहानिकर (mansuetae naturae) पशुओं के बीच का अंतर, अवबोधन नियम (Scienter Rule) और सांविधिक प्रावधानों के साथ मिलकर, पशु-संबंधी घटनाओं को संबोधित करने और नुकसान के लिये उचित प्रतिकर सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक प्रणाली प्रदान करता है। यह ढाँचा विधायी सुधार और न्यायिक निर्वचन के माध्यम से विकसित होता रहता है, दायित्व और उत्तरदायित्व के मौलिक सिद्धांतों को बनाए रखते हुए समकालीन जरूरतों के अनुकूल होता है।