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सिविल कानून
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 का परिचय
« »23-Aug-2023
परिचय
- संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 (Transfer of Property Act, 1882) उस पद्धति का संहिताकरण है जिसमें संपत्ति का मालिक संपत्ति के स्वामित्व के अपने अधिकार यानी अंतरण के अधिकार का प्रयोग कर सकता है।
- इसमें चल और अचल संपत्ति दोनों के अंतरण के प्रावधान किये गए हैं , लेकिन अधिनियम का एक बड़ा हिस्सा केवल अचल संपत्तियों के अंतरण पर लागू होता है।
- यह अधिनियम 1 जुलाई 1882 को लागू हुआ ।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 1882 से पहले भारत में संपत्ति अंतरण अंग्रेज़ी कानून और इक्विटी के सिद्धांतों द्वारा शासित होता था।
- किसी विशिष्ट वैधानिक प्रावधानों के अभाव में न्यायालयों को वास्तविक संपत्तियों पर ब्रिटिश कानून का सहारा लेना पड़ता था और कभी-कभी न्यायालयों को न्याय एवं निष्पक्ष निर्णय की अपनी धारणाओं के अनुसार विवादों का फैसला करने के लिये मज़बूर होना पड़ता था, जिसके परिणामस्वरूप विधि निर्णय भ्रमित और विरोधाभासी होते थे।
- भारत में संपत्तियों के अंतरण के मूल कानून की एक संहिता तैयार करके इन भ्रमों और विरोधाभासी विधि निर्णयों का समाधान करने के लिये इंग्लैंड में एक विधि आयोग गठित किया गया था ।
- इस आयोग द्वारा एक मसौदा विधेयक तैयार किया गया था और भारत के सचिव द्वारा भारत भेजा गया।
- विधेयक 1877 में विधायी परिषद में पुरस्थापित किया गया था। फिर विधेयक को एक चयन समिति को भेजा गया और इसे स्थानीय सरकारों के पास उनकी टिप्पणियों के लिये भेजा गया।
संपत्ति अंतरण अधिनियम से संबंधित विधेयक अंतिम रूप से पारित होने से पहले कम से कम सात बार तैयार किया गया था और यह “संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882” (Transfer of Property Act, 1882) के रूप में लागू हुआ।
अधिनियम का दायरा
- यह पक्षों के माध्यम से संपत्ति के अंतरण से संबंधित कानून में संशोधन करने वाला एक अधिनियम है। इसलिये यह अधिनियम अंतरविवोस यानी जीवित व्यक्तियों के बीच अंतरण को नियंत्रित करता है.
- अधिनियम विधि संचालन द्वारा किये लेनदेन जैसे कि वसीयती उत्तराधिकार के माध्यम से संपत्ति का अंतरण, पर विचार नहीं करता।
- जहाँ उत्तराधिकार किसी इच्छापत्र या वसीयत द्वारा नियंत्रित होता है, उसे वसीयतनामा उत्तराधिकार कहा जाता है।
- यह अधिनियम संपूर्ण नहीं है और न्याय, समानता तथा विवेक के सिद्धांतों को लागू करने की गुंजाइश प्रदान करता है।
अब तक हुए संशोधन
लागू होने के बाद समय-समय पर इसमें कुछ संशोधन किये गए जो इस प्रकार हैं:
- 1885 में , संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 (Transfer of Property Act, 1882) को पंजीकरण अधिनियम 1877 (Registration Act 1877) के अनुरूप लाने के लिये संशोधन किया गया था।
- संशोधन अधिनियम,1900 के द्वारा सरकारी अनुदान को अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया और अधिनियम के अध्याय VIII को नया रूप दिया गया।
- संशोधन अधिनियम, 1904, के द्वारा स्थानीय सरकारों को कुछ कृषि पट्टों पर अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये अधिकृत किया गया था।
- धारा 1, 59, 69, 107 और 117 में भी संशोधन किया गया।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में प्रावधान है कि बंधक से संबंधित कानून सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Civil Procedure Code, 1908) के प्रावधानों द्वारा शासित होंगे।
- वर्ष 1915 में इस अधिनियम की धारा 69 में मामूली परिवर्तन किये गए ।
- वर्ष 1920 में इस अधिनियम की धारा 1 में परिवर्तन किये गए ।
- संशोधन अधिनियम 1925 के द्वारा धारा 130 सहित कुछ प्रावधानों में कुछ परिवर्तन किये गए।
- वर्ष 1926 में इस अधिनियम की धारा 3 में प्रमाणित की परिभाषा जोड़ी गई।
- वर्ष 1927 में , संशोधन अधिनियम 1926 के द्वारा जो परिभाषा जोड़ी गई, उसे पूर्वव्यापी थी।
- 1929 में , मूल कानून के प्रावधानों में व्यापक संशोधन किये गए और बंधक के प्रावधान में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गए।
- 2003 में, पुराने प्रावधान के स्थान पर धारा 106 को प्रतिस्थापित किया गया था ।
संपत्ति अंतरण अधिनियम और मुहम्मदन कानून
- संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 2 में कहा गया है कि इस अधिनियम के दूसरे अध्याय में धारा 5 से 53A तक की कोई भी बात मुहम्मदन कानून के किसी भी नियम को प्रभावित करने वाली नहीं मानी जाएगी ।
- अधिनियम की धारा 129 में कहा गया है कि मृत्यु की आशंका में दिये गए उपहारों से संबंधित अध्याय में कुछ भी मुहम्मदन कानून के किसी भी नियम को प्रभावित करने वाला नहीं माना जाएगा।
- मुहम्मदन कानून या इस्लामी कानून को ईश्वर से उत्पन्न माना जाता है, न कि आधुनिक मानव निर्मित कानूनों की तरह, जो विधि निर्माताओं द्वारा पारित किये जाते हैं और कानून की आधुनिक प्रणालियों के सिद्धांतों द्वारा शासित होते हैं।