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सिविल कानून
निहित हित
« »25-Dec-2023
परिचय
किसी अनिर्दिष्ट अवधि पर किसी व्यक्ति के पक्ष में किया गया हित या किसी निश्चित घटना के घटित होने की स्थिति को प्राय: निहित हित कहा जाता है।
- संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 19 निहित हित की अवधारणा से संबंधित है।
TPA की धारा 19:
- TPA की धारा 19 में कहा गया है कि जहाँ कि किसी संपत्ति-अंतरण से किसी व्यक्ति के पक्ष में उस संपत्ति में कोई हित, वह समय विनिर्दिष्ट किये बिना, जब से वह प्रभावी होगा, या शब्दों में यह विनिर्दिष्ट करते हुए कि वह तत्काल या किसी ऐसी घटना होने पर, जो अवश्यंभावी है, प्रभावी होगा, सृष्ट किया जाता है, वहाँ जब तक कि अंतरण के निबंधनों से प्रतिकूल आशय प्रतीत न होता हो ऐसा हित निहित हित है। निहित हित कब्ज़ा अभिप्राप्त करने से पहले अंतरिती की मृत्यु हो जाने से विफल नहीं हो जाता।
- स्पष्टीकरण- केवल ऐसे उपबन्ध से, जिसके द्वारा हित का उपभोग मुल्तवी किया जाता है, या उसी संपत्ति में कोई पूर्विक हित किसी अन्य व्यक्ति के लिये दिया जाता या आरक्षित किया जाता है, या उस संपत्ति से उद्भूत आय को उस समय तक संचित किये जाने का निदेश किया जाता है, जब तक उपभोग का समय नहीं आ जाता, या केवल ऐसे किसी उपबंध से कि यदि कोई विशेष घटना घटित हो जाए तो वह हित किसी अन्य व्यक्ति को संक्रांत हो जाएगा यह आशय कि हित निहित नहीं होगा अनुमित न किया जाएगा।
दृष्टांत:
- A, B को 100 रुपए का उपहार देता है जो उसे C की मृत्यु पर दिया जाना है। इसमें B का एक निहित हित शामिल है, क्योंकि इस घटना में C की मृत्यु सुनिश्चित है।
- A, आय में से कुछ ऋणों का भुगतान करने के लिये पूरी संपत्ति B को हस्तांतरित कर देता है और फिर संपत्ति C को सौंप देता है। इसमें C के पास निहित हित है क्योंकि यह ऋण के भुगतान को स्थगित कर देता है लेकिन हित तुरंत निहित हो जाता है।
निहित हित के लक्षण:
- यह एक वर्तमान अधिकार बनाता है जो तत्काल प्रभाव से लागू होता है, हालाँकि आनंद हस्तांतरण में निर्धारित समय तक स्थगित कर दिया जाता है।
- यह पूरी तरह से स्थिति पर निर्भर नहीं करता है क्योंकि स्थिति में एक निश्चित घटना शामिल होती है।
- यह एक हस्तांतरणीय एवं वंशानुगत अधिकार है।
- अंतरिती की मृत्यु होने पर अंतरण अमान्य नहीं होगा क्योंकि वह हित उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को मिल जाएगा।
जब अजात व्यक्ति निहित हित प्राप्त कर लेता है:
- TPA की धारा 20 के अनुसार, जहाँ कि संपत्ति-अंतरण से उस संपत्ति में कोई हित ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिये सृष्ट किया जाता है जो उस समय अजात है वहाँ, जब तक कि अंतरण के निबंधनों से कोई तत्प्रतिकूल आशय प्रतीत न होता हो, वह अपना जन्म होने पर निहित हित अर्जित कर लेता है, यधपि उसे यह हक न हो कि वह अपने जन्म से ही उसका उपभोग करने लगे।
निर्णयज विधि:
- लछमन लाल पाठक बनाम बलदेव लाल थाथवारी (1917) के मामले में एक व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में उपहार विलेख हस्तांतरित किया, लेकिन उसे निर्देश दिया कि जब तक अंतरक की मृत्यु नहीं हो जाती, तब तक उसे उस संपत्ति पर कब्ज़ा नहीं मिलेगा। अंतरिती का निहित हित होगा, भले ही उसके उपभोग का अधिकार स्थगित कर दिया गया हो।