होम / संपत्ति अंतरण अधिनियम

सिविल कानून

मोचन का अधिकार

    «    »
 26-Aug-2024

परिचय:

मोचन का अधिकार बंधककर्त्ता का वह अधिकार है, जिसके अंतर्गत वह बंधकदार को मूल राशि चुकाने के बाद अपनी बंधक रखी गई संपत्ति को वापस मोचन कर सकता है।

यह "एक बार बंधक सदैव बंधक" के सिद्धांत पर एक अवरोध है।

बंधक क्या है?

धारा 58, बंधक को किसी विशिष्ट अचल संपत्ति में भागीदारी के अंतरण के रूप में परिभाषित करती है जिसका उद्देश्य ऋण के रूप में अग्रिम या दिये जाने वाले धन का भुगतान, किसी मौजूदा या भविष्य के ऋण, या किसी ऐसी संविदा के निष्पादन को सुरक्षित करना है जो आर्थिक देयता को उत्पन्न कर सकता है।

बंधक के प्रकार क्या हैं?

बंधककर्त्ता एवं बंधकदार कौन है?

  • TPA की धारा 58 के अनुसार, अंतरणकर्त्ता को बंधककर्त्ता तथा अंतरितकर्त्ता को बंधकदार कहा जाता है।
  • वह व्यक्ति जो बंधक धन लेता है और अपनी संपत्ति को ऐसे बंधक धन के विरुद्ध प्रतिभूति के रूप में अंतरित करता है, बंधककर्त्ता कहलाता है।
  • वह व्यक्ति जो बंधक रखी गई संपत्ति लेता है तथा बंधक रखी गई संपत्ति के बदले बंधक राशि देता है, वह बंधकदार होता है।

बंधक धन और बंधक विलेख क्या है?

  • वह मूलधन और ब्याज जिसका भुगतान कुछ समय के लिये सुरक्षित होता है, बंधक धन कहलाता है।
  • वह दस्तावेज़ जिसके द्वारा अंतरण किया जाता है उसे बंधक-विलेख कहा जाता है।

बंधककर्त्ता के अधिकार क्या हैं?

  • TPA की धारा 60-66 के अंतर्गत बंधक विलेख में बंधककर्त्ता को विशेषाधिकार प्रदान करता है, जो इस प्रकार हैं:
    • बंधककर्त्ता का छुड़ाने का अधिकार (धारा 60)
    • तीसरे पक्ष को अंतरित करने का अधिकार (धारा 60A)
    • दस्तावेज़ों के निरीक्षण एवं प्रस्तुतीकरण का अधिकार (धारा 60B)
    • अलग-अलग या एक साथ छुड़ाने का अधिकार (धारा 61)
    • उपयोगी (भोग ) बंधककर्त्ता का कब्ज़ा पुनः प्राप्त करने का अधिकार (धारा 62)
    • बंधक रखी गई संपत्ति पर कब्ज़ा (धारा 63)
    • बंधक रखी गई संपत्ति में सुधार (धारा 63A)
    • बंधक रखे गए पट्टे का नवीनीकरण (धारा 64)
    • बंधककर्त्ता द्वारा निहित अनुबंध (धारा 65)
    • बंधककर्त्ता की पट्टा देने की शक्ति (धारा 65A)
    • बंधककर्त्ता द्वारा कब्ज़े में की गई बर्बादी (धारा 66)

बंधककर्त्ता की देयताएँ क्या हैं?

यदि बंधक रखी गई संपत्ति का स्वामित्व त्रुटिपूर्ण या दोषपूर्ण है, तो बंधकदार को बंधककर्त्ता के विरुद्ध विधिक कार्यवाही आरंभ करने का विधिक अधिकार है।

यदि बंधककर्त्ता के पास मौजूद संपत्ति का स्वामित्व त्रुटिपूर्ण या दोषपूर्ण है, तो बंधककर्त्ता पर किसी भी नुकसान के लिये बंधक को क्षतिपूर्ति देने का उत्तरदायित्व होगा।

बंधककर्त्ता का दायित्व है कि वह संपत्ति को बर्बाद होने से या उसे नष्ट या क्षतिग्रस्त होने से बचाए, जिससे उसका मूल्य कम हो सकता हो और वह संपत्ति सुरक्षा प्रतिभूति के लिये अपर्याप्त हो जाए। (धारा 66)।

बंधककर्त्ता का दायित्व बंधक रखी गई संपत्ति में किये गए सुधारों के लिये बंधकदार को भुगतान करना है (धारा 63A)।

मोचन का अधिकार क्या है?

परिचय:

  • बंधककर्त्ता का यह अधिकार है कि वह अपनी बंधक रखी गई संपत्ति को बंधकदार से वापस ले।
  • इस अधिकार का प्रयोग केवल बंधक विलेख में उल्लिखित अपेक्षित शर्तों को पूरा करने या बंधक रखी गई राशि को वापस चुकाने के बाद ही किया जा सकता है।
  • इस अधिकार का प्रयोग बंधककर्त्ता और बंधकदार के बीच सहमत समय अवधि के भीतर या मोचन के लिये वाद दायर करके किया जा सकता है।
  • मोचन के अधिकार का प्रयोग केवल मोचन के लिये वाद दायर करके ही किया जा सकता है।

मोचन की साम्या:

  • इससे बंधककर्त्ता को बंधक राशि का भुगतान करने के उपरांत अपनी बंधक संपत्ति को छुड़ाने का अधिकार मिल जाता है।
  • इससे बंधककर्त्ता को समय पर बंधक राशि का भुगतान न करने के बाद भी उसे छुड़ाने का अधिकार मिल जाता है।
  • यह सिद्धांत बंधककर्त्ता के मोचन के अधिकार की रक्षा करता है।
  • यह सिद्धांत मोचन की अनुमति देता है, भले ही मोचन विलेख में मोचन पर प्रतिबंध लगाए गए हों।

मोचन पर रोक:

  • क्लॉग का अर्थ है- प्रतिबंध।
  • मोचन के अधिकार पर कोई भी प्रतिबंध अमान्य है एवं प्रारंभ से ही शून्य माना जाता है।
  • यह बंधक विलेख में बंधककर्त्ता के अधिकारों के विरुद्ध कोई प्रतिबंधात्मक शर्तें डालकर बंधककर्त्ता के विरुद्ध व्यवहार है।
  • मोचन पर रोक केवल न्यायालय के आदेश पारित होने के बाद ही लागू की जा सकती है, अन्यथा नहीं।
  • मोचन पर रोक केवल तभी लागू हो सकती है जब बंधककर्त्ता का मोचन का अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो जाए।

आंशिक मोचन:

इसका मतलब है कि संपत्ति को भागों में या कई अंतरणों में भुनाया जाना।

यह प्रारंभ से ही अमान्य है और एक ही बंधक के लिये कई अंतरणों में मोचन के अधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

मोचन के अधिकार से संबंधित प्रावधान क्या है?

  • TPA की धारा 60 में कहा गया है कि बंधककर्त्ता का ऋण छुड़ाने का अधिकार—
    • मूलधन की देय तिथि के पश्चात् किसी भी समय, बंधककर्त्ता को यह अधिकार है कि वह उचित समय और स्थान पर बंधक-धन का भुगतान या निविदा करके बंधकदार से संपत्ति वापस मांग सकता है।
      (a) बंधककर्त्ता को बंधक-विलेख और बंधक रखी गई संपत्ति से संबंधित सभी दस्तावेज़ सौंपना, जो बंधकदार के कब्ज़े या अधिकार में हों।
      (b) जहाँ बंधक रखी गई संपत्ति बंधकदार के कब्ज़े में है, वहाँ बंधककर्त्ता को उसका कब्ज़ा सौंपना।
      (c) बंधककर्त्ता के व्यय पर बंधक रखी गई संपत्ति को या तो उसे या ऐसे किसी तीसरे व्यक्ति को, जिसे वह निर्देश दे, पुनः अंतरित करना, या निष्पादित करना और जहाँ बंधक पंजीकृत लिखत द्वारा किया गया है, वहाँ लिखित रूप में अभिस्वीकृति पंजीकृत करना कि बंधकदार को अंतरित उसके हित के अभाव में कोई भी अधिकार समाप्त हो गया है।
    • बशर्ते कि इस धारा द्वारा प्रदत्त अधिकार पक्षकारों के कार्य या न्यायालय की डिक्री द्वारा समाप्त न हो गया हो।
    • इस धारा द्वारा प्रदत्त अधिकार को मोचन का अधिकार कहा जाता है तथा इसे लागू करने के लिये दायर किये गए वाद को मोचन के लिये वाद कहा जाता है।
    • इस धारा की कोई बात इस आशय के किसी उपबंध को अविधिमान्य नहीं समझी जाएगी कि यदि मूलधन के संदाय के लिये नियत समय बीत जाने दिया गया है या ऐसा कोई समय नियत नहीं किया गया है तो बंधकदार ऐसे धन के संदाय या निविदत्त करने से पूर्व युक्तियुक्त सूचना पाने का अधिकारी होगा।
    • बंधक संपत्ति के भाग का मोचन: इस धारा की कोई बात बंधक संपत्ति के भाग में हितबद्ध व्यक्ति को बंधक पर बकाया राशि के आनुपातिक भाग का भुगतान करने पर केवल अपने भाग का मोचन करने का अधिकार नहीं देगी, सिवाय इसके कि बंधकदार ने, या यदि एक से अधिक बंधकदार हैं तो ऐसे सभी बंधकदारों ने बंधककर्त्ता का भाग पूर्णतः या भागतः अर्जित कर लिया है।

“मोचन के अधिकार” से संबंधित ऐतिहासिक निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • गंगा धर बनाम शंकर लाल (1958): इस मामले में बंधक संपत्ति के मोचन के संबंध में पक्षों के बीच समझौते में एक शर्त प्रश्नगत थी, जो स्पष्ट रूप से एक निर्दिष्ट अवधि के बाद बंधक को मोचन करने के बंधककर्त्ता के अधिकार को पूरी तरह से समाप्त कर रही थी।
    • न्यायालय ने कहा कि यह शर्त कि यदि बंधककर्त्ता छह महीने की निर्दिष्ट अवधि के भीतर ऋण को छुड़ाने में असफल रहता है, तो वह ऐसा करने का अपना अधिकार खो देगा और बंधक विलेख को बंधकदार के पक्ष में बिक्री विलेख माना जाएगा, स्पष्ट रूप से ऋण-मुक्ति की साम्या पर अवरोध है और इस प्रकार अवैध है।
  • सम्पूर्ण सिंह बनाम निरंजन कौर (श्रीमती) (1999): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि जब बंधक विलेख में कोई प्रतिबंध नहीं है, तो बंधककर्त्ता को बंधक निष्पादित होने की तिथि से ही बंधक का मोचन करने का अधिकार है।
  • बंधु राम (मृत) बनाम सुख राम (2000) के मामले में: अचल संपत्ति की वसूली या उपभोक्ता बंधकों के मोचन के लिये वाद दायर करने की परिसीमा अवधि, जिसमें बंधक धन के पुनर्भुगतान के लिये कोई समय निर्धारित नहीं किया गया है, परिसीमा अधिनियम, 1963 की अनुसूची के अनुच्छेद 61 के तहत निर्धारित 30 वर्ष है।

निष्कर्ष:

मोचन का अधिकार, बंधक में प्रदान किया गया एक अंतर्निहित अधिकार है। यह बंधक विलेख का एक मौलिक भाग है। इस अधिकार का प्रयोग केवल तभी किया जा सकता है जब बंधककर्त्ता ने अपने सभी कर्त्तव्यों एवं बंधक विलेख की अपेक्षित शर्तों को पूर्ण कर लिया हो