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सांविधानिक विधि
उपाधियों का अंत
« »19-Dec-2023
परिचय:
भारत के संविधान, 1950 (COI) का अनुच्छेद 18 उपाधियों के अंत से संबंधित है।
उपाधियों का उपयोग अन्य लोगों पर हीन भावना उत्पन्न करके किसी व्यक्ति के ओहदे को उच्च दर्शाने के लिये किया जाता है। परिणामस्वरूप, संविधान सभा ऐसी असमानता को समाप्त करने पर सहमत हुई और इस अनुच्छेद का मसौदा तैयार किया।
अनुच्छेद 18, COI:
इस अनुच्छेद में कहा गया है कि-
(1) कोई उपाधि, जो सैन्य या शैक्षणिक विशिष्टता न हो, राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी।
(2) भारत का कोई भी नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
(3) कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का कोई पद धारण करते हुए, राष्ट्रपति की सहमति के बिना किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
(4) राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का कोई भी पद धारण करने वाला कोई भी व्यक्ति, राष्ट्रपति की सहमति के बिना, किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन कोई उपहार, उपलब्धियाँ या किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं करेगा।
अनुच्छेद 18 का विश्लेषण:
- यह अनुच्छेद देश में उपाधि मान्यता और प्रदान करने पर प्रतिषेध लगाने का प्रावधान करता है।
- यह किसी भी मौलिक अधिकार की रक्षा नहीं करता बल्कि कार्यपालिका और विधायी क्षेत्राधिकार को सीमित करता है।
- इसमें निहित प्रावधानों के उल्लंघन के लिये किसी दंड का प्रावधान नहीं है।
- यह राज्य को किसी भी व्यक्ति को सैन्य या शैक्षणिक विशिष्टताएँ प्रदान करने से नहीं रोकता है।
- इस अनुच्छेद में खंड (3) और (4) इस दृष्टि से जोड़े गए हैं कि एक व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, को राज्य के प्रति वफादार रहना चाहिये और उसे अपने प्रति व्यक्त विश्वास का उल्लंघन नहीं करना चाहिये।
निर्णयज विधि:
- बालाजी राघवन बनाम भारत संघ (1996) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना है कि COI के अनुच्छेद 18(1) के अर्थ के अंतर्गत राष्ट्रीय पुरस्कार उपाधियों के बराबर नहीं हैं। इनका प्रयोग अनुलग्न एवं उपाधि के रूप में नहीं किया जाना चाहिये।