भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51
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सांविधानिक विधि

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51

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 19-Jul-2024

परिचय:

राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत (DPSP) भारत के संविधान, 1950 (COI) के भाग IV में निहित हैं।

  • DPSP वे आदर्श हैं जिन्हें संघ एवं राज्य सरकार को नीति तैयार करते समय या विधि पारित करते समय ध्यान में रखना चाहिये।
  • COI के अनुच्छेद 37 में प्रावधान है कि,
  • DPSP में निहित प्रावधान किसी भी न्यायालय द्वारा लागू नहीं किये जा सकते।
  • हालाँकि निर्धारित सिद्धांत देश के शासन में मौलिक हैं।
  • विधि निर्माण करते समय इन सिद्धांतों का प्रवर्तन करना राज्य का कर्त्तव्य होगा।
  • COI का अनुच्छेद 51 के भाग IV में निहित है।

अनुच्छेद 51:

  • COI के अनुच्छेद 51 में प्रावधान है कि अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना राज्य का कर्त्तव्य होगा।
  • COI की धारा 51 के अनुसार राज्य निम्नलिखित का प्रयास करेगा:
    • अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना
    • राष्ट्रों के मध्य न्यायपूर्ण एवं सम्मानजनक संबंध बनाए रखना
    • सम्मान को बढ़ावा देना-
      • अंतर्राष्ट्रीय विधि एवं
      • संधि दायित्व संगठित लोगों के एक दूसरे के साथ व्यवहार में मध्यस्थता द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटान को प्रोत्साहित करना।

अनुच्छेद 51 का इतिहास:

  • अनुच्छेद 40 के प्रारूप में अनुच्छेद 51 का प्रावधान किया गया था।
  • इसने राज्य को विश्व के साथ व्यवहार में शांति, सुरक्षा एवं अंतर्राष्ट्रीय विधि के प्रति सम्मान जैसे कुछ सिद्धांतों को अपनाने का निर्देश दिया।
  • संविधान सभा के सदस्यों ने अंतर्राष्ट्रीय विधि को राष्ट्रों के मध्य सौहार्दपूर्ण संबंध सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला माना।
  • अनुच्छेद 40 के प्रारूप में प्रावधान किया गया था कि राज्य-
    • अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की अभिवृद्धि का,
    • राष्ट्रों के मध्य न्यायासंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का,
    • सरकारों के मध्य आचरण के वास्तविक नियम के रूप में अंतर्राष्ट्रीय विधि की समझ की दृढ़ स्थापना, और
    • संगठित लोगों के एक दूसरे के साथ व्यवहार में न्याय एवं संधि दायित्वों के प्रति सम्मान बनाए रखना।

अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना:

  • भारत संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय रूप से भाग लेता है, जहाँ यह प्रारंभ से ही सदस्य है।
  • संविधान के अनुच्छेद 51 एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं में निहित निर्देशों के अनुसार संसद ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 पारित किया है।
  • इस अधिनियम में देश में बढ़ती मानवाधिकार आवश्यकताओं की चिंता को पूरा करने के लिये राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) एवं मानवाधिकार न्यायालय की स्थापना का प्रावधान है।
  • NHRC ने सितंबर 1993 से कार्य करना प्रारंभ कर दिया है।
  • इसके अतिरिक्त, भारत संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में शांति अभियानों में सक्रिय रूप से सम्मिलित रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय विधि एवं संधि दायित्वों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना:

  • यह अनुच्छेद राज्य को अंतर्राष्ट्रीय विधि का सम्मान करने के लिये प्रेरित करता है, लेकिन इसे स्पष्ट रूप से भारतीय विधियों का भाग नहीं बनाता है।
  • भारत वायु विधि, अंतरिक्ष विधि और समुद्री विधि जैसे विधि के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित एक सौ साठ से अधिक संधियों एवं सम्मेलनों का पक्षकार है।
  • विदेश मंत्रालय में विधिक एवं संधि प्रभाग की स्थापना वर्ष 1957 में भारत सरकार को अंतर्राष्ट्रीय विधिक सलाह के सभी पहलुओं से निपटने के लिये एक नोडल बिंदु के रूप में की गई थी।
  • यह विशेष रूप से विदेश मंत्रालय व अन्य मंत्रालयों एवं विभागों को अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा संधि से संबंधित विषयों पर सलाह देता है, जिसमें संधि वार्ता, अभ्यास एवं व्याख्याएँ शामिल हैं।
  • भारतीय न्यायपालिका ने विशेष रूप से पर्यावरण विधि एवं मानवाधिकारों के क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय संधियों के अधीन भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के कार्यान्वयन में सक्रिय भूमिका निभाई है।
    • एम. के. रंजीतसिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2024):
      • न्यायालय ने माना कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने के लिये भारत ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटाने एवं नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौते आदि में निहित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ की हैं।
      • उच्चतम न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल परिणामों के विरुद्ध अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी तथा ऐसा करते हुए न्यायालय ने संधि के दायित्वों को भी स्वीकार किया।
    • जॉली जॉर्ज वर्गीस बनाम बैंक ऑफ कोचीन (1980):
      • यह कहा गया है कि जब तक संधि के अनुरूप नगरपालिका विधि में परिवर्तन नहीं किया जाता, तब तक न्यायालय पर पूर्व वाला ही बाध्यकारी होगा, न कि उत्तरार्द्ध वाला।
    • विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997):
      • कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर दिशा-निर्देश तैयार करते समय न्यायालय ने कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों एवं मानदण्डों का हवाला दिया, जो लैंगिक समानता, सम्मान के साथ काम करने के अधिकार तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(g) एवं 21 के पालन की गारंटी के उद्देश्य से प्रासंगिक थे।
    • नीलाबती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य (1993):
      • न्यायालय ने अभिरक्षा में हुई मौत के मामले में पीड़ित को क्षतिपूर्ति देते समय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार संधि (1966) के अनुच्छेद 9(5) पर भरोसा किया।
    • चेयरमैन रेलवे बोर्ड बनाम चंद्रिमा दास (2000):
      • न्यायालय ने विदेशी नागरिकों की बलात्संग पीड़िता को सुरक्षा प्रदान करके संविधान के अनुच्छेद 21 की परिधि को व्यापक बनाते हुए मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के सिद्धांतों का उपयोग किया।

मध्यस्थता द्वारा निपटान को प्रोत्साहन:

  • संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1985 में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता एवं सुलह पर मॉडल विधि को अपनाया तथा सभी देशों से इसे उचित महत्त्व देने को कहा। इसके परिणामस्वरूप मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 लागू हुआ।
  • अधिनियम के विभिन्न उद्देश्य इस प्रकार हैं:
    • अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू वाणिज्यिक मध्यस्थता एवं सुलह को व्यापक रूप से शामिल करें।
    • एक ऐसी प्रक्रिया बनाएँ जो निष्पक्ष, कुशल और मध्यस्थता एवं सुलह के लिये समाज की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम हो।
    • अधिकरण द्वारा किसी भी मध्यस्थ पंचाट को देने के लिये कारण प्रदान करता है।
    • सुनिश्चित करना कि अधिकरण अपनी सीमाओं से परे अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग न करे।
    • न्यायालयों की भूमिका को न्यूनतम करना तथा न्यायपालिका पर भार कम करना।
    • यह अधिकरण को विवाद निपटान की विधि के रूप में मध्यस्थता एवं सुलह का विकल्प चुनने की अनुमति देता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक निर्णय को न्यायालय के निर्णय के समान ही लागू किया जाए।
    • यह प्रावधान करता है कि पक्षों द्वारा किये गए सुलह समझौते का प्रभाव मध्यस्थ अधिकरण द्वारा दिये गए निर्णय के समान ही होता है।
    • यह विदेशी निर्णयों के प्रवर्तन पर भी कार्य करता है।

निष्कर्ष:

  • अनुच्छेद 51 DPSP का एक भाग है। इसलिये यह देश के नीति-निर्माताओं के लिये एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य करता है। अंतर्राष्ट्रीय संधियों एवं अन्य दायित्वों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने से देश को विकसित होने एवं अपने नागरिकों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सहायता मिलती है। इस प्रकार, यह देश के विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान है।