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सांविधानिक विधि
मूल कर्तव्य
« »08-Dec-2023
परिचय:
भारत के संविधान, 1950 (Constitution of India- COI) का अनुच्छेद 51A मूल कर्तव्यों से संबंधित है। यह अनुच्छेद 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भाग IV-A में जोड़ा गया था और इसमें ग्यारह मूल कर्त्तव्य शामिल हैं।
COI का अनुच्छेद 51A:
इस अनुच्छेद में कहा गया है कि यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा-
(a) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे;
(b) स्वतंत्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
(c) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण बनाए रखे;
(d) देश की रक्षा करे और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
(e) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं;
(f) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझे और उसका परिरक्षण करे;
(g) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी व वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्द्धन करे तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(h) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(i) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(j) व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले;
(k) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिये शिक्षा के अवसर प्रदान करे।
इसे 2002 के छियासीवें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था।
मूल कर्तव्यों की आवश्यकता:
- मूल कर्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को एक निरंतर अनुस्मारक के रूप में यह बताना है , कि संविधान ने विशेष रूप से उन्हें कुछ मूल अधिकार प्रदान किये हैं, लेकिन नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
- मूल कर्तव्य ऐसे लोगों के लिये असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं जो राष्ट्र का अपमान करते हैं; जैसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति भंग करना आदि।
- ये राष्ट्र के प्रति अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने में सहायता करते हैं और कानून की संवैधानिकता का निर्धारण करने में न्यायालय की मदद करते हैं।
मूल कर्तव्यों का प्रवर्तन:
ये कर्तव्य वैधानिक प्रकृति के हैं और विधि द्वारा प्रवर्तनीय होंगे।
संसद विधि द्वारा उन कर्तव्यों और दायित्वों को पूरा करने में विफलता हेतु दंड का प्रावधान करेगी।
निर्णयज विधि:
- श्री रंगनाथ मिश्रा बनाम भारत संघ (2003), मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि मूल कर्त्तव्यों को न केवल विधिक प्रतिबंधों द्वारा बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों द्वारा भी लागू किया जाना चाहिये।
- एम्स छात्र संघ बनाम एम्स (2001) मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि मूल कर्त्तव्य मूल अधिकारों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं। यद्यपि मूल कर्त्तव्यों को मूल अधिकारों की तरह लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन उन्हें COI के भाग IV A में कर्तव्यों के रूप में नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।