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सांविधानिक विधि

शोषण के विरुद्ध अधिकार

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 26-Dec-2023

परिचय:

भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 23 और 24 शोषण के विरुद्ध अधिकार से संबंधित हैं। शोषण का अर्थ- बल की सहायता से दूसरों की सेवाओं का दुरुपयोग करना है। आज़ादी से पूर्व देश के कई हिस्सों में शोषण प्रचलित था। इसलिये, इन अनुच्छेदों के माध्यम से संविधान ने ऐसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया है क्योंकि ये हमारे संविधान की मूल अवधारणा के विपरीत हैं।

COI का अनुच्छेद 23:

यह अनुच्छेद मानव तस्करी और जबरन श्रम के निषेध से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलातश्रम प्रतिषिध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दण्डनीय होगा।

(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिये अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाती या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

  • यह अधिकार भारत के नागरिकों के साथ-साथ गैर-नागरिकों को भी उपलब्ध है।
  • यह व्यक्तियों को राज्य के साथ-साथ निजी नागरिकों से भी बचाता है।
  • यह अनुच्छेद मानव तस्करी और जबरन श्रम के अन्य रूपों जैसे शोषण की अनैतिक प्रथाओं को समाप्त करने के लिये राज्य पर एक सकारात्मक दायित्व डालता है।
  • यह अनुच्छेद निम्नलिखित प्रथाओं पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाता है:
    • भिक्षुक
    • मानव तस्करी
    • जबरन श्रम

COI का अनुच्छेद 24:

  • यह अनुच्छेद कारखानों आदि में बच्चों के रोज़गार पर प्रतिबंध से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि चौदह वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान में काम पर नहीं लगाया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक रोज़गार में नहीं लगाया जाएगा।
  • COI के अनुच्छेद 39(e) और 39(f) के साथ पढ़ा जाने वाला यह अनुच्छेद, चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य एवं शक्ति की सुरक्षा प्रदान करता है।
  • यह प्रावधान सार्वजनिक स्वास्थ्य और बच्चों के जीवन की सुरक्षा के हित में है।

निर्णयज विधि:

  • पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1983) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने COI के अनुच्छेद 23 के दायरे की व्याख्या की। अनुच्छेद 23 का दायरा विशाल और असीमित है। अनुच्छेद 23 के तहत बल शब्द का अर्थ अत्यंत व्यापक है। इसमें न केवल शारीरिक या कानूनी बल शामिल है बल्कि उन आर्थिक परिस्थितियों को भी मान्यता दी गई है जो किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध न्यूनतम मज़दूरी से कम पर कार्य करने के लिये मजबूर करती है। न्यायालय द्वारा सरकार को निर्देश दिया गया कि वह निजी व्यक्तियों द्वारा अनुच्छेद 23 के तहत प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को दंडित करने के लिये आवश्यक कदम उठाए।
  • दीना बनाम भारत संघ (1983) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि पारिश्रमिक का भुगतान किये बिना कैदियों से लिया गया श्रम जबरन श्रम था और COI के अनुच्छेद 23 का उल्लंघन है।
  • एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य (1997) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी खतरनाक उद्योग, खदानों या अन्य कार्यों में नियोजित नहीं किया जा सकता है।