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सांविधानिक विधि

ऑट्रेफॉइस कन्विक्ट और ऑट्रेफॉइस एक्विट का सिद्धांत

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 05-Dec-2023

परिचय:

  • ऑट्रेफॉइस एक्विट और ऑट्रेफॉइस कन्विक्ट फ्राँसीसी शब्द हैं जिनका अर्थ क्रमशः पहले बरी किया गया और पहले दोषी ठहराया गया है। इन दो शब्दों की उत्पत्ति सामान्य विधि में हुई है, जहाँ उन्हें ऑट्रेफॉइस कन्विक्ट और ऑट्रेफॉइस एक्विट के सिद्धांतों के रूप में स्वीकार किया जाता है, जिसका प्रभाव यह होता है कि इन दो याचिकाओं में दर्शाई गई विशेष परिस्थितियों के कारण मुकदमा आगे नहीं बढ़ सकता है।

ऑट्रेफॉइस एक्विट का सिद्धांत:

  • ऑट्रेफॉइस एक्विट के सिद्धांत का अर्थ है कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध के लिये दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उसे पहले उसी अपराध में बरी कर दिया गया है और ऐसी याचिका को दोषी न होने की दलील के साथ लिया या शामिल किया जा सकता है।

ऑट्रेफॉइस कन्विक्ट का सिद्धांत:

  • ऑट्रेफॉइस कन्विक्ट के सिद्धांत का अर्थ है कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध के लिये मुकदमा इसलिये नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उसे पहले किसी अन्य अपराध में दोषी ठहराया जा चुका है, और इसे दोषी न होने की दलील के साथ शामिल किया जा सकता है।

ऑट्रेफॉइस कन्विक्ट और ऑट्रेफॉइस एक्विट के संबंध में विधिक प्रावधान:

  • भारत का संविधान, 1950 (Constitution of India- COI) केवल ऑट्रेफॉइस एक्विट के सिद्धांत को आत्मसात करता है न कि ऑट्रेफॉइस कन्विक्ट के सिद्धांत को।
  • COI का अनुच्छेद 20 इन अपराधों की सज़ा के संबंध में सुरक्षा का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 20(2): कहता है कि किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिये एक से अधिक बार मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और न ही दंडित किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 20(2): इसमें दोहरे खतरे के खिलाफ नियम शामिल है जो बताता है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिये एक से अधिक बार दोषी नहीं ठहराया जाएगा।
  • अनुच्छेद 20(2): इसे अमेरिकी संविधान से लिया गया लेकिन इसमें अमेरिकी संविधान द्वारा शामिल किये गए ऑट्रेफॉइस कन्विक्ट के सिद्धांत को नहीं जोड़ा किया गया है, जिसका अनुमान संशोधन की विषयवस्तु (Content) से लगाया जा सकता है जिसमे कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को दो बार जीवन और अंग का खतरा नहीं होना चाहिये।
  • अनुच्छेद 20(2): केवल तभी सुरक्षा प्रदान करता है जब अभियुक्त पर मुकदमा चलाया गया हो और उसे दंडित भी किया गया हो।

संबंधित निर्णयज विधि:

  • कलावती बनाम राज्य एच.पी. (1953) - अपीलकर्त्ता पर हत्या करने का आरोप लगाया गया था और उस पर मुकदमा चलाया गया था, बाद में ज़िला न्यायाधीश ने उसे बरी कर दिया। राज्य ने फैसले के खिलाफ अपील की। प्रतिवादियों ने दोहरे खतरे की दलील दी। उच्चतम न्यायालय ने माना कि बरी किये जाने के विरुद्ध अपील को दूसरा अभियोजन नहीं माना जा सकता, बल्कि मूल अभियोजन की निरंतरता माना जा सकता है, इसलिये दोहरे खतरे के खिलाफ नियम इस स्थिति में कोई भूमिका नहीं निभाएगा।
  • थॉमस डाना बनाम पंजाब राज्य (1958) - उच्चतम न्यायालय द्वारा यह माना गया कि अनुच्छेद 20(2) के तहत दोहरे खतरे के खिलाफ नियम की सुरक्षा का दावा करने के लिये, यह दिखाना आवश्यक है कि वह पूर्व अभियोजन था और जिस अभियोजन के कारण सज़ा हुई, तथा अभियुक्त को उसी अपराध के लिये दोबारा सज़ा दी जा रही है