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पारिवारिक कानून

विवाह के तहत सहमति

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 08-Dec-2023

परिचय:

  • विवाह एक स्थिर और सभ्य समाज की नींव है।सर्वप्रथम हिंदुओं में विवाह को दिव्य प्रकृति का माना जाता है। यह कोई संविदात्मक संयोग नहीं बल्कि, एक धार्मिक बंधन है।
  • दूसरे, एक पवित्र मिलन का तात्पर्य यह है कि यह एक स्थायी बंधन है जो इस दुनिया में या किसी भी साथी की मृत्यु के बाद समाप्त नहीं होता है, बल्कि यह मृत्यु के बाद अगले जीवन में भी जारी रहता है।
  • इसलिये विवाह को एक अटूट बंधन माना जाता है। पति की आज्ञा का पालन जीवन भर करना चाहिये और पत्नी को उसकी मृत्यु के बाद भी उसकी स्मृति के प्रति वफादार रहना चाहिये।

कानूनी प्रावधान:

  • विवाह के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिये, कानून ने एक हिंदू विवाह अधिनियम (HMA), 1955 पेश किया, जो 18 मई, 1955 को लागू हुआ।
  • यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति के लिये बाध्यकारी है जो हिंदू, जैन, सिख या बौद्ध है और मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं है तथा किसी अन्य धार्मिक कानून द्वारा शासित है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने अधिनियम की धारा 5 के तहत वैध हिंदू विवाह के लिये पूर्व-आवश्यकताओं के रूप में पाँच शर्तें प्रदान की हैं।

वैध विवाह हेतु शर्तें [HMA,1955 की धारा 5]:

धारा 5(1) में प्रावधान है कि दो हिंदुओं के बीच विवाह तभी संपन्न हो सकता है, जब निम्नलिखित शर्तें पूर्ण हों:

  • विवाह के समय पति या पत्नी का जीवित रहना: विवाह के समय दोनों पक्षों में से किसी का भी कोई जीवनसाथी जीवित नहीं होना चाहिये।
  • विवाह के समय, विवाह का कोई भी पक्ष विवाह के लिये वैध सहमति देने में असमर्थ नहीं होना चाहिये।
  • विवाह के समय वैध सहमति देने में सक्षम होते हुए भी, किसी भी प्रकार के या इस हद तक मानसिक विकार से पीड़ित है, जो विवाह करने या बच्चे पैदा करने के लिये अयोग्य है।
  • विवाह के समय, बार-बार पागलपन के दौरे पड़ते रहे हैं।
  • दूल्हे और दुल्हन की उम्र क्रमशः 21 व 18 वर्ष होनी चाहिये।
  • पक्षों को प्रतिबंधित रिश्ते की डिग्री के भीतर नहीं होना चाहिये। इसका अपवाद केवल तभी प्रदान किया जाता है जब उन्हें नियंत्रित करने वाली प्रथा या रिवाज़ ऐसे विवाह की अनुमति देती है।
  • पक्षों को एक-दूसरे का सपिंदा नहीं होना चाहिये। इसके निम्नलिखित अपवाद पक्षों को नियंत्रित करने वाले प्रथा या रिवाज़ की अनुमति द्वारा प्रदान किये जाते हैं।

एकपत्नीत्व:

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 एक विवाह का नियम प्रदान करता है और बहुविवाह तथा बहुपति प्रथा पर प्रतिबंध लगाता है।
  • वैध विवाह के लिये इस खंड में निर्धारित शर्त उन शर्तों में से एक है, जो उल्लंघन करने वाले पक्ष को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 494 और 495 के तहत अभियोजन के लिये उत्तरदायी बनाती हैं।

विवेक या मानसिक क्षमता:

  • धारा 5(ii) विवाह के समय पति-पत्नी की मानसिक क्षमता के बारे में बताती है। मूल अधिनियम में यह प्रावधान किया गया था कि विवाह के समय विवाह का कोई भी पक्ष मूर्ख या पागल नहीं होना चाहिये।
  • विवाह के समय पागलपन का मानसिक विकार विद्यमान होना चाहिये। ऐसे विवाहों को अधिनियम की धारा 12 के तहत अमान्य घोषित किया जा सकता है।
  • लेकिन यदि विवाह की तिथि के बाद कोई व्यक्ति मानसिक विकार या पागलपन से पीड़ित होता है, तो इस खंड के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया जाता है, क्योंकि यह ऐसे मामलों पर लागू होता है जहाँ विवाह के समय किसी पक्ष का कोई व्यक्ति पागल होता है।

विवाह के समय पक्षकारों की आयु:

  • विवाह के लिये न्यूनतम आयु निर्धारित है। विवाह के लिये दूल्हे के मामले में न्यूनतम आयु 21 वर्ष और दुल्हन के मामले में 18 वर्ष निर्धारित की गई है। इस खंड का उल्लंघन न तो इस अधिनियम की धारा 11 के तहत विवाह को अमान्य करेगा और न ही अधिनियम की धारा 12 के तहत अमान्य होगा। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 18 में बाल विवाह की सज़ा यानी 15 दिन (लगभग 2 सप्ताह) तक कारावास या 1000 रुपए तक ज़ुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

प्रतिबंधित डिग्री:

  • धारा 5(iv) उन व्यक्तियों के बीच विवाह पर रोक लगाती है जो 'एक दूसरे के साथ संबंध की प्रतिबंधित डिग्री' के भीतर होते हैं। धारा 3(g) प्रदान करती है, निम्नलिखित दो व्यक्तियों को प्रतिबंधित डिग्री रिश्ते के भीतर कहा जाता है:

1. यदि एक दूसरे का पारंपरिक पूर्वपुरुष है; या

2. यदि एक दूसरे के पारंपरिक पूर्वपुरुष या पारंपरिक वंशज की पत्नी या पति था; या

3. यदि एक दूसरे के भाई की पत्नी थी या पिता या माता के भाई की या दादा या दादी के भाई की; या

4. यदि दोनों भाई-बहन, चाचा-भतीजी, चाची-भतीजा, या भाई-बहन के बच्चे या दो भाई-बहन या दो भाई-बहन के बच्चे हैं।

यह भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि प्रतिबंधित संबंध में शामिल हैं-

1. आधे या गर्भाशय के रक्त के साथ-साथ पूर्ण रक्त संबंध भी,

2. अधर्मज रक्त का संबंध भी, धर्मज भी,

3. गोद लेने के साथ-साथ रक्त का भी संबंध; और उन खंडों में संबंध की सभी शर्तें तद्नुसार समझी जाएँगी। किंतु यदि विवाह के प्रत्येक पक्ष को नियंत्रित करने वाली प्रथा या रिवाज़ प्रतिबंधित संबंध की डिग्री के भीतर विवाह की अनुमति देती है, तो ऐसा विवाह वैध और बाध्यकारी होगा।

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 18 इस शर्त के उल्लंघन के लिये एक महीने तक की साधारण सज़ा या 1,000 रुपए तक के ज़ुर्माने का प्रावधान करती है।

सपिंडा संबंध:

  • धारा 5(v) उन व्यक्तियों के बीच विवाह पर रोक लगाती है जो एक दूसरे के सपिंड होते हैं। इस खंड के उल्लंघन में विवाह, यानी, शून्य होगा और धारा 11 के तहत घोषित किया जा सकता है और इस खंड के प्रावधान का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति धारा 18 के तहत दंडनीय होगा। 'सपिंडा' शब्द का अर्थ एक ही शरीर के माध्यम से जुड़ा हुआ संबंध है।

संबंधित निर्णयज विधि:

  • सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) मामलें में:
    • इस मामले में द्विविवाह चर्चा में था। पहले से ही हिंदू विधि के तहत शादीशुदा पति ने इस्लाम अपना लिया और मुस्लिम विधि के तहत दूसरी शादी कर ली।
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि दूसरी शादी अमान्य होगी क्योंकि जब तक पहला विवाह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक डिक्री द्वारा भंग नहीं हो जाता, तब तक पहले विवाह के अस्तित्व के दौरान दूसरी शादी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का उल्लंघन होगी जो सख्ती से एकपत्नीत्व का दावा करता है।

निष्कर्ष:

हिंदू विधि के तहत एक वैध हिंदू विवाह का गठन करने के लिये, विवाह के पक्षकारों को एकपत्नीत्व होना चाहिये, स्वस्थ चित्त का होना चाहिये, उम्र से बालिग होना चाहिये और प्रतिबंधित डिग्री से परे होना चाहिये। इन शर्तों को पूरा करने वाला विवाह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत वैध और प्रभावी माना जाता है।