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सिविल कानून
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अधीन संविदा-भंग
« »29-Jul-2024
परिचय:
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 37 के अनुसार, पक्षकारों पर संविदा के अपने भाग को पूरा करने का दायित्व है।
- यदि कोई पक्ष संविदा के अपने नियत भाग का पालन नहीं करता है, तो वह पक्ष संविदा-भंग के लिये उत्तरदायी होगा।
संविदा-भंग के प्रकार:
- संविदा का उल्लंघन दो प्रकार का होता है:
- प्रत्याशित भंग
- वास्तविक भंग
प्रत्याशित भंग:
- इसका प्रावधान ICA की धारा 39 के अंतर्गत किया गया है।
- धारा 39 में पक्षकार द्वारा वचन को पूर्णतः पूरा करने से प्रतिषेध करने के प्रभाव का प्रावधान है।
- धारा 39 में प्रावधान है-
- जब किसी संविदा का कोई पक्षकार अपना वादा पूरा करने से प्रतिषेध कर देता है या स्वयं को अक्षम कर लेता है।
- वचनगृहीता, संविदा को समाप्त कर सकता है।
- जब तक कि वचनगृहीता ने शब्दों या आचरण से संविदा के जारी रहने पर अपनी सहमति व्यक्त न कर दी हो।
वास्तविक भंग:
- वास्तविक भंग, संविदागत दायित्व के दोषपूर्ण निष्पादन अथवा गैर-निष्पादन के कारण होता है।
संविदा-भंग के परिणाम:
- संविदा-भंग के लिये विधियाँ, ICA के अध्याय VI में निहित है।
- यहाँ निहित प्रावधान धारा 73 से धारा 75 के अंतर्गत उल्लिखित हैं।
- धारा 73 अनुबंध के उल्लंघन के कारण हुई हानि या क्षति के लिये क्षतिपूर्ति का प्रावधान करती है।
- धारा 73 के पैरा 1 में प्रावधान है कि:
- जब कोई संविदा भंग हो गई हो;
- जिस पक्ष को संविदा-भंग का सामना करना पड़ता है, वह दूसरे पक्ष से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है।
- उसे हुई किसी भी हानि या क्षति के लिये क्षतिपूर्ति;
- जो स्वाभाविक रूप से इस प्रकार की संविदा-भंग से चीज़ों के सामान्य क्रम में उत्पन्न हुआ;
- या जिसके विषय में पक्षकारों को, जब उन्होंने अनुबंध किया था, पता था कि इसके उल्लंघन से परिणाम होने की संभावना है।
- धारा 73 के पैरा 2 में प्रावधान है कि:
- ऐसी क्षतिपूर्ति,संविदा-भंग के कारण हुई किसी भी दूरस्थ एवं अप्रत्यक्ष हानि या क्षति के लिये नहीं दी जाएगी।
- धारा 73 के पैरा 3 में संविदा द्वारा सृजित दायित्वों के समान दायित्व का निर्वहन करने में विफलता के लिये क्षतिपूर्ति का प्रावधान है-
- जब संविदा द्वारा सृजित दायित्वों के समान कोई दायित्व उत्पन्न हो गया हो;
- और उस दायित्व का पालन नहीं किया गया हो;
- इस दायित्व का पालन करने में विफलता के कारण किसी भी व्यक्ति को क्षति हुई है, तो
- वह व्यक्ति, चूककर्त्ता पक्ष से वैसी ही क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है, मानो उस व्यक्ति ने उस दायित्व को पूरा करने की संविदा की थी और उसने संविदा-भंग कर दी हो।
- धारा 73 के स्पष्टीकरण में यह प्रावधान है कि संविदा-भंग होने से उत्पन्न होने वाली हानि या क्षति का आकलन करते समय, संविदा के गैर-निष्पादन के कारण होने वाली असुविधा को दूर करने हेतु उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- धारा 73 के पैरा 1 में प्रावधान है कि:
- धारा 73 में निर्धारित विधि की अवधारणा, हेडली बनाम बैक्सेंडेल (1854) मामले से विकसित हुई है।
- जैसा कि उपरोक्त मामले में निर्धारित किया गया था, क्षतियाँ दो प्रकार की होती हैं:
- सामान्य क्षति: यह वह क्षति है जो सामान्यतः संविदा-भंग के कारण स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है। यह क्षति वसूली योग्य है।
- विशेष क्षति: असामान्य परिस्थितियों के कारण विशेष क्षति होती है। जब तक विशेष परिस्थितियों के विषय में दूसरे पक्ष को सूचना न दी जाए, तब तक इनकी वसूली नहीं की जा सकती।
शास्ति (अर्थदण्ड)और परिनिर्धारित क्षति:
- ICA की धारा 74 में संविदा-भंग के लिये क्षतिपूर्ति का प्रावधान है, जहाँ अर्थदण्ड निर्धारित है।
- धारा 74 में प्रावधान है कि जब कोई संविदा-भंग हो जाती है:
- यदि संविदा में किसी राशि को ऐसे संविदा-भंग के मामले में भुगतान की जाने वाली राशि के रूप में नामित किया गया है;
- या यदि संविदा में शास्ति के रूप में कोई अन्य शर्त शामिल है;
- संविदा-भंग की शिकायत करने वाला पक्ष क्षतिपूर्ति का अधिकारी है, चाहे यह सिद्ध हो जाए कि संविदा-भंग के कारण वास्तविक क्षति या हानि हुई है या नहीं;
- संविदा-भंग करने वाले पक्ष से, यथास्थिति, नामित राशि या निर्धारित दण्ड से अधिक न होने वाली उचित क्षतिपूर्ति प्राप्त करना।
- धारा 74 के स्पष्टीकरण में यह प्रावधान है कि चूक की तिथि से ब्याज में वृद्धि का प्रावधान दण्ड के रूप में दिया जा सकता है।
- धारा 74 का अपवाद यह है कि जब कोई व्यक्ति किसी विधि के उपबंधों के अधीन या केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के आदेश के अधीन किसी लोक कर्त्तव्य या कार्य के निष्पादन के लिये, जिसमें जनता हितबद्ध है, कोई ज़मानत-पत्र, बॉण्ड या उसी प्रकृति का अन्य लिखत तैयार करता है, या बंधपत्र देता है, तो वह ऐसे किसी लिखत की शर्त का उल्लंघन करने पर उसमें उल्लिखित संपूर्ण राशि का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी होगा।
इस संबंध में एक ऐतिहासिक मामला कैलाश नाथ एसोसिएट्स बनाम DDA(2015) है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने ICA की धारा 74 को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों को विस्तार से समझाया।
निर्धारित सिद्धांत निम्न प्रकार हैं:
ऐसी तीन स्थितियाँ हो सकती हैं जब संविदा-भंग की स्थिति में भुगतान की जाने वाली परिनिर्धारित राशि का उल्लेख किया गया हो:
परिस्थिति |
देय राशि |
उल्लिखित राशि दोनों पक्षों द्वारा निर्धारित क्षति का वास्तविक पूर्व अनुमान है। |
संविदा में निर्दिष्ट राशि उचित क्षतिपूर्ति के रूप में देय होगी। |
जब उल्लिखित राशि वास्तविक पूर्व अनुमान न हो तथा क्षतिपूर्ति के रूप में हो। |
उचित क्षतिपूर्ति, संविदा में निर्दिष्ट राशि से अधिक नहीं होगी। |
जब अनुबंध में निर्दिष्ट राशि अर्थदण्ड के रूप में हो (अनुबंध के उल्लंघन को रोकने के लिये)। |
उचित क्षतिपूर्ति, बताए गए अर्थदण्ड से अधिक नहीं होगी। |
- उचित क्षतिपूर्ति, सुविदित सिद्धांतों के आधार पर तय किया जाएगा जो संविदा विधि पर लागू होते हैं, जो अन्य बिंदुओं के साथ-साथ अनुबंध अधिनियम की धारा 73 में पाए जाते हैं।
- चूँकि धारा 74 अनुबंध के उल्लंघन के कारण हुई क्षति या हानि के लिये उचित क्षतिपूर्ति प्रदान करती है, इसलिये व्यक्ति पर कारित हुई क्षति या हानि, धारा की प्रयोज्यता के लिये अनिवार्य शर्त है।
- अभिव्यक्ति "चाहे वास्तविक क्षति या हानि का कारण सिद्ध हो या नहीं" का अर्थ है कि जहाँ वास्तविक क्षति या हानि सिद्ध करना संभव है, वहाँ ऐसे साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है।
- केवल उन मामलों में जहाँ क्षति या हानि को सिद्ध करना कठिन या असंभव हो, अनुबंध में उल्लिखित निर्धारित राशि, यदि क्षति या हानि का वास्तविक पूर्व-अनुमान हो, प्रदान की जा सकती है।
- धारा 74 किसी अनुबंध के अधीन अग्रिम राशि ज़ब्त करने के मामलों पर लागू होगी। हालाँकि जहाँ करार होने से पहले सार्वजनिक नीलामी की शर्तों और नियमों के तहत ज़ब्ती होती है, वहाँ धारा 74 लागू नहीं होगी।
धारा 75:
- धारा 75 में प्रावधान है कि संविदा को उचित तरीके से रद्द करने वाला पक्ष क्षतिपूर्ति का अधिकारी है।
- धारा 75 में प्रावधान है कि जो व्यक्ति किसी संविदा को उचित तरीके से रद्द करता है, वह संविदा की पूर्ति न होने के कारण हुई किसी भी क्षति के लिये क्षतिपूर्ति का अधिकारी है।
निष्कर्ष:
संविदा-भंग तब होती है जब संविदा का कोई पक्ष संविदा के अपने नियत भाग को पूर्ण नहीं करता है। क्षतिपूर्ति देने का उद्देश्य पक्षों को उसी स्थिति में लाना है, जिस स्थिति में वे संविदा में प्रवेश करने से पूर्व थे। इस प्रकार ICA की धारा 73, धारा 74 और धारा 75 संविदा-भंग की स्थिति का सामना करने वाले पक्ष को क्षतिपूर्ति प्रदान करने में न्यायालय का मार्गदर्शन करती हैं।