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सिविल कानून
जमानत के अनुबंध
« »06-Nov-2023
परिचय:
- स्वामित्व देने वाले तथा इसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा संयुक्त रूप से सहमत एक लिखित अथवा मौखिक व्यवस्था है, साथ ही कभी-कभी इसमें विचार- विमर्श को भी शामिल किया जाता है, जिसे जमानत के रूप में जाना जाता है।
- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 148 में परिभाषित जमानत किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिये एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को वस्तु की सुपुर्दगी है, इस अनुबंध पर कि विशिष्ट उद्देश्य पूरा होने पर इन सामानों को वापस किया जाना है।
- उदाहरण के लिये, A द्वारा सर्विस सेंटर पर सर्विस के लिये अपनी कार पहुँचाना जमानत का एक उदाहरण है।
- उदाहरण: यदि A अपनी कार अपने पड़ोसी B को 10 दिनों के लिये देता है, लेकिन साथ ही वह एक चाबी अपने पास रखता है तथा 10 दिनों की इस अवधि के पश्चात वह कार वापस ले लेता है। अब यह जमानत का मामला नहीं होगा क्योंकि A जमानत की संपत्ति पर नियंत्रण रख रहा है।
जमानत की अनिवार्यताएँ:
- स्वामित्व की सुपुर्दगी
- जमानत की मुख्य विशेषता यह है कि जिस सुपुर्दगी पर विचार किया गया है वह अस्थायी उद्देश्य के लिये है। सुपुर्दगी वास्तविक अथवा रचनात्मक हो सकता है।
- वास्तविक सुपुर्दगी जमानतदार को कुछ सौंपकर किया जा सकता है।
- यह सुपुर्दगी जो रचनात्मक या प्रतीकात्मक होती है, ऐसी कार्रवाई के माध्यम से की जा सकती है जिसके परिणामस्वरूप इच्छित जमानतदार को वस्तुओं का स्वामित्व प्राप्त हो जाता है।
- जमानत की मुख्य विशेषता यह है कि जिस सुपुर्दगी पर विचार किया गया है वह अस्थायी उद्देश्य के लिये है। सुपुर्दगी वास्तविक अथवा रचनात्मक हो सकता है।
- सुपुर्दगी अनुबंध पर आधारित होनी चाहिये
- एक उद्देश्य एवं अनुबंध के अंर्तगत वस्तु की सुपुर्दगी की जानी चाहिये जिसमें स्पष्ट हो कि लक्ष्य प्राप्त होने के बाद उन्हें जमानतदार को वापस कर दिया जाएगा।
- सुपुर्दगी समान उद्देश्य पर होनी चाहिये
- वस्तु की जमानत हमेशा किसी उद्देश्य एवं शर्त के अधीन होती है कि जब उद्देश्य पूरा हो जाएगा तब वस्तु जमानतदार को वापस कर दिया जाएगा अथवा उसके आदेश के अनुसार उसका निपटान कर दिया जाएगा।
जमानत के प्रकार:
पुरस्कार के आधार पर
- निःशुल्क जमानत:
- बिना किसी शुल्क अथवा पुरस्कार के उत्पादों की जमानत नि:शुल्क जमानत है। इस प्रकार में जमानत के लिये जमानतदार को कोई शुल्क देने की आवश्यकता नहीं होती है।
- गैर नि:शुल्क जमानत:
- कुछ पुरस्कारों अथवा आरोपों के लिये जमानत गैर-नि:शुल्क जमानत है। इसमें जमानतदार द्वारा जमानतकर्त्ता को कुछ शुल्क देना आवश्यक है।
लाभ के आधार पर
- जमानत अनुबंध, जमानतदार के विशेष लाभ के लिये बनाया गया है।
- जमानतदार के विशेष लाभ के लिये की गई जमानत।
- जमानतदार और जमानतकर्त्ता दोनों के पारस्परिक लाभ के लिये की गई जमानत।
जमानतदार के कर्त्तव्य
- तथ्यों का खुलासा करना - जमानतकर्त्ता को जमानतदार को सौंपे गए सामान के सभी तथ्यों का खुलासा करना होगा। इसे भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 150 के अंर्तगत परिभाषित किया गया था।
- कुल व्यय वहन करना- जमानतकर्त्ता को जमानतदार को सामान्य व्यय का भुगतान करना होगा। यदि कोई अतिरिक्त व्यय है, तो वह असाधारण व्ययों का भुगतान करने के लिये भी बाध्य है।
- जमानतदार को क्षतिपूर्ति के लिये- जमानतदार को क्षतिपूर्ति देने का कर्त्तव्य जमानत की अवधि के दौरान हुई किसी भी हानि, क्षति अथवा दायित्व के लिये जमानतदार को मुआवज़ा देने की जमानतदार की ज़िम्मेदारी को संदर्भित करता है। यह जमानत संबंध का एक आवश्यक पहलू है, जहाँ जमानतकर्त्ता एक विशिष्ट उद्देश्य के लिये अपनी संपत्ति जमानतदार को सौंपता है।
- समयपूर्व समाप्ति के लिये क्षतिपूर्ति - यदि जमानतकर्त्ता द्वारा जमानत समाप्त कर दी है तब जमानतदार को मुआवज़ा देना जमानतदार का कर्त्तव्य है, यदि कोई हानि होती है, तब क्षतिपूर्ति करना जमानतदार का कर्त्तव्य है।
- वस्तु प्राप्त करने के लिये- विशिष्ट उद्देश्य पूरा होने पर जमानतकर्त्ता को जमानतदार से वस्तु वापस प्राप्त करनी होगी।
जमानतकर्त्ता के कर्त्तव्य
- वस्तु की देखभाल का कर्त्तव्य- जमानतकर्त्ता को वस्तु की देखभाल तब तक करनी होगी जब तक वह वस्तु को जमानतदार को वापस नहीं कर देता। इसका अर्थ यह है कि जमानतदार को जमानत की संपत्ति की उचित देखभाल करनी होगी। इसका अर्थ यह है कि जमानतदार को जमानत की अवधि के दौरान होने वाली क्षति, चोरी एवं किसी भी हानि से जमानतदार संपत्ति की रक्षा करनी होगी।
- सम्मत उद्देश्य के लिये संपत्ति का उपयोग करने का कर्त्तव्य- जमानतदार को जमानत की संपत्ति का उपयोग केवल उसके सौंपे गए उद्देश्य के लिये ही करना चाहिये। जमानतदार की सहमति के बिना, यदि वह विचलित होता है तब इससे जमानतदार का दायित्व में वृद्धि होगी ।
- संपत्ति का मिश्रण न करने का कर्त्तव्य- जमानतदार के वस्तु को अन्य वस्तु के साथ न मिलाने के लिये जमानतदार ज़िम्मेदार है। यदि वस्तु मिश्रित है तब वस्तु अलग न हो पाने पर वह ज़िम्मेदार होगा। यदि सामान को अलग किया जा सकता है, तो जमानतदार मिश्रित वस्तु को अलग करने का व्यय वहन करेगा।
- संपत्ति वापस करने का कर्त्तव्य- यदि जमानत का उद्देश्य सहमत अवधि पर पूरा हो जाता है, तब जमानतदार को संपत्ति जमानतदार को वापस करनी होगी।
- लेखा प्रस्तुत करने का कर्त्तव्य- जब जमानतकर्त्ता जमानत प्राप्त संपत्ति की स्थिति एवं संपत्ति की स्थिति के बारे में जानकारी के लिये जमानतदार से संपर्क करता है, तो जमानतदार को जमानत से जुड़े सभी लेन-देन की सटीक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी और साथ ही जमानतदार को सही रिकॉर्ड बनाए रखना भी आवश्यक है।
जमानतकर्त्ता के अधिकार
- स्वामित्व का अधिकार- जमानतदार के अधिकारों में से एक उस वस्तु पर स्वामित्व रखना है जो व्याधि के विषय में है। परंतु स्वामित्व का अधिकार सीमित है। जमानतदार को जमानतकर्त्ता की सहमति के बिना वस्तु का उपयोग केवल एक विशिष्ट उद्देश्य के लिये करना होगा, किसी अन्य उद्देश्य के लिये नहीं।
- ग्रहणाधिकार का अधिकार- जमानतदार को ग्रहणाधिकार का अधिकार है, जिसका अर्थ है कि जमानतदार, जमानतकर्त्ता द्वारा जमानत पर दी गई वस्तु पर तब तक स्वामित्व वापस ले सकता है जब तक कि वस्तु के संबंध में शुल्क का भुगतान नहीं कर दिया जाता है। यह अधिकार तब लागू होगा जब पक्षों के मध्य विधिक अनुबंध हो।
- क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार- यदि जमानतकर्त्ता किसी भी तथ्य का खुलासा नहीं करता है, तब जमानतदार द्वारा किये गए किसी भी व्यय को जमानतकर्त्ता को उसके द्वारा की गई हानि की क्षतिपूर्ति का अधिकार है।
जमानतदार के अधिकार
- अनुबंध समाप्त करने का अधिकार- जमानत का उद्देश्य पूरा होने से पहले जमानतकर्त्ता को अनुबंध समाप्त करने का अधिकार है। लेकिन जमानत की समाप्ति के कारण होने वाले किसी भी हानि के लिये जमानतकर्त्ता को जमानतदार को क्षतिपूर्ति देना होगा।
- वस्तु वापस प्राप्त करने का अधिकार- यदि उल्लेखित हो तो एक निश्चित समय में जमानत का प्रयोजन पूरा होने पर जमानतकर्त्ता को वस्तु वापस प्राप्त करने का अधिकार है।
- मुकदमे का अधिकार- अनुबंध के उल्लंघन की स्थिति में जमानतकर्त्ता को जमानतदार पर मुकदमा करने का अधिकार है। यदि जमानतदार अनुबंध की शर्तों को पूरा करने में विफल रहता है, तब जमानतकर्त्ता अनुबंध के उल्लंघन के लिये मुकदमा कर सकता है।
निर्णय विधि:
- कविता त्रेहान बनाम बलसारा हाइजीन प्रोडक्ट लिमिटेड (1992):
- इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि जमानत की आवश्यकताओं में से एक जमानतदार को वस्तु की सुपुर्दगी ही है, जहाँ कब्जे में कोई बदलाव नहीं होता है, कोई जमानत नहीं होती है।
- जगदीश चंद्र त्रिखा बनाम पंजाब नेशनल बैंक, (1998):
- यह मामला एक पार्सल से जुड़ा है जिसमें कुछ सोने के आभूषण थे। आभूषण अच्छी तरह से सील-पैक किये गए थे। जब पार्सल गंतव्य पर पहुँचा तो उसमें से आभूषण का कुछ हिस्सा गायब था। इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि बैंक की स्थिति जमानतदार की है।
- अन्नामलाई टिम्बर ट्रस्ट लिमिटेड बनाम थ्रिप्पुनिथुरा देवास, (1954):
- केरल उच्च न्यायालय ने माना कि जहाँ समान विषय वस्तु को परिवर्तित तरीके से वापस करने की कोई बाध्यता नहीं है, वहाँ कोई जमानत नहीं है।