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सिविल कानून

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 70

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 20-May-2024

परिचय:

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 70 गैर-अनावश्यक कार्य के भुगतान के दायित्व से संबंधित है। यह धारा उन पाँच दायित्वों में से एक है जिन्हें अर्द्ध संविदा के रूप में जाना जाता है। अर्द्ध  संविदा ICA की धारा 68 से 72 में निहित हैं तथा ये दायित्व इस सिद्धांत पर आधारित हैं कि विधि के साथ-साथ न्याय को भी अन्यायपूर्ण संवर्द्धन को रोकने का प्रयास करना चाहिये।

ICA की धारा 70:

  • यह धारा अनानुग्रहिक कृत्य का लाभ उठाने वाले व्यक्ति के दायित्व से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जहाँ कोई व्यक्ति विधिक रूप से किसी अन्य व्यक्ति के लिये कुछ भी करता है, या उस व्यक्ति को अनानुग्रहिक रूप से कुछ भी प्रदान करता है तथा ऐसा अन्य व्यक्ति उस वस्तु का लाभ प्राप्त करता है, तो ऐसा लाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस वस्तु को पुनर्स्थापित करने के लिये अथवा इस प्रकार की गई या वितरित की गई वस्तु के संबंध में, वस्तु प्रदान करने वाले व्यक्ति को क्षतिपूर्ति देने के लिये बाध्य है।
  • स्पष्टीकरण:
    • A, एक व्यापारी, गलती से B के घर पर सामान छोड़ देता है। B उस सामान को अपना मान कर उपयोग करता है। अतः B उस सामान के लिये A को भुगतान करने के लिये बाध्य है।

ICA की धारा 70 का अनुप्रयोग:

  • ICA की धारा 70 के अनुप्रयोग के लिये निम्नलिखित तीन शर्तों को पूरा किया जाना चाहिये:
    • एक व्यक्ति को विधिपूर्वक दूसरे व्यक्ति के लिये कुछ करना चाहिये या उसे कोई वस्तु प्रदान करनी चाहिये।
    • उक्त कार्य को करने या उक्त वस्तु को प्रदान करने में उसका आशय आनुग्रहिक रूप से कार्य करने का नहीं होना चाहिये
    • दूसरे व्यक्ति को, जिसके लिये कुछ किया गया है या जिसे कोई वस्तु प्रदान की गई है, उस व्यक्ति को इसका लाभ अवश्य प्राप्त होना चाहिये।

ICA की धारा 70 का उद्देश्य:

  • इस धारा का उद्देश्य उस व्यक्ति को भुगतान सुनिश्चित करना है जिसने स्वेच्छा से या भुगतान पाने के विचार से किसी अन्य व्यक्ति के लिये कुछ किया है।
  • यह धारा दूसरों के मामलों में आक्रामक हस्तक्षेप को प्रोत्साहित नहीं करती है।

ICA की धारा 70 के आवश्यक तत्त्व:

  • इस धारा के अंतर्गत, दूसरे व्यक्ति के लिये कुछ करने वाला व्यक्ति विनिर्दिष्ट पालन के लिये वाद दायर नहीं कर सकता है, न ही उल्लंघन के लिये क्षतिपूर्ति मांग सकता है क्योंकि कोई अनुबंध नहीं हुआ है।
  • इस धारा के अंतर्गत दायित्व तब उत्पन्न होता है जब कोई व्यक्ति स्वेच्छा से वस्तुओं को स्वीकार करता है अथवा किये गए कार्य का लाभ प्राप्त करता है।
  • न्यायालय किसी व्यक्ति को उन सेवाओं के लिये भुगतान करने को बाध्य नहीं करेगा जो उसकी इच्छा के विरुद्ध उस पर थोपी गई हैं।
  • यह आवश्यक है कि सेवाएँ बिना किसी अनुरोध के प्रदान की गई हों।
  • सेवाएँ विधिपूर्वक प्रदान की गई हों।
  • प्रतिवादी को भुगतान या सेवाओं से प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होना चाहिये।

निर्णयज विधि:

  • डब्ल्यू.बी. बनाम बी.के. मंडल एंड संस (1962) के मामले में, यह माना गया कि ICA की धारा 70 तब भी लागू होती है, जब राज्य के साथ अनुबंध करने की संवैधानिक आवश्यकता का अनुपालन नहीं होता है