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आपराधिक कानून
भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत मॉब लिंचिंग
« »15-Jul-2024
परिचय:
मॉब लिंचिंग का तात्पर्य नस्ल, जाति, समुदाय, भाषा आदि जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर लोगों की न्यायेतर तरीके से हत्या करना है। इससे पहले भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) के अंतर्गत मॉब लिंचिंग के लिये कोई अलग प्रावधान नहीं था।
- मॉब लिंचिंग के अपराध को भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) में धारा 103 (2) के अंतर्गत नए सिरे से शामिल किया गया है।
- BNS की धारा 117(4) में उस अपराध का प्रावधान है, जिसमें भीड़ किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुँचाती है।
BNS की धारा 103(2):
- BNS की धारा 103 (2) में प्रावधान है कि जब पाँच या अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार पर किसी व्यक्ति की हत्या करता है, तो ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास का दण्ड दिया जाएगा और अर्थदण्ड भी देना होगा।
- इस अपराध के घटक हैं:
- पाँच या उससे अधिक व्यक्तियों का समूह
- एक साथ मिलकर कार्य करना
- हत्या करना
- निम्न आधारों पर-
- नस्ल
- जाति
- समुदाय
- लिंग
- जन्म स्थान
- भाषा
- व्यक्तिगत विश्वास
- या कोई अन्य समान आधार
- प्रत्येक सदस्य को मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास का दण्ड दिया जाएगा तथा अर्थदण्ड भी देना होगा।
BNS की धारा 117 (4):
- BNS की धारा 117 (4) में प्रावधान है कि जब पाँच या अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर किसी व्यक्ति को उसकी नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार पर गंभीर चोट पहुँचाता है, तो ऐसे समूह का प्रत्येक सदस्य गंभीर चोट पहुँचाने के अपराध का दोषी होगा और उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और अर्थदण्ड भी देना होगा।
- इस अपराध के घटक हैं:
- पाँच या अधिक व्यक्तियों का समूह
- एक साथ मिलकर कार्य करना
- गंभीर चोट का कारण बनता है
- इस आधार पर
- नस्ल
- जाति
- समुदाय
- लिंग
- जन्म स्थान
- भाषा
- व्यक्तिगत विश्वास
- कोई अन्य समान आधार
- ऐसे समूह का प्रत्येक सदस्य
- गंभीर चोट पहुँचाने के अपराध का दोषी होगा,
- उसे किसी भी भाँति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी और अर्थदण्ड भी देना होगा।
- इस धारा के अधीन भीड़ द्वारा व्यक्ति को मृत्यु के स्थान पर गंभीर चोट पहुँचाना शामिल है।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अंतर्गत विधान:
- IPC में हत्या, हत्या का प्रयास, दंगा, घातक हथियार रखकर दंगा करना, रिष्टि जैसे प्रावधान थे, इन कृत्यों के लिये IPC की धारा 302, धारा 307, धारा 147, धारा 148, धारा 427 के अधीन अलग-अलग दण्ड दिया जाता है।
- उपरोक्त प्रावधान विधि विरुद्ध सभा के परिणामस्वरूप लागू किये जाते हैं।
मॉब लिंचिंग से निपटने के उपाय:
- शासन को सख्त कार्यवाही कर मॉब विजिलांटिस्म और मॉब लिंचिंग को रोकना होगा।
- न्यायालय ने मॉब लिंचिंग से निपटने के लिये निवारक, उपचारात्मक और दण्डात्मक उपायों की रूपरेखा निर्धारित की है।
- न्यायालय द्वारा जारी किये गए उपचारात्मक उपाय इस प्रकार थे:
- क्षेत्राधिकार वाला पुलिस स्टेशन बिना किसी अनावश्यक देरी के, भारतीय दण्ड संहिता और/या विधि के अन्य प्रासंगिक प्रावधानों के तहत तुरंत FIR दर्ज करेगा।
- थाना प्रभारी नोडल अधिकारी को सूचित करेगा, जो यह सुनिश्चित करने के लिये कर्त्तव्यबद्ध होगा कि जाँच प्रभावी ढंग से की जाए और ऐसे मामलों में जाँच पूरी होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट (आरोप-पत्र) FIR दर्ज होने या आरोपी की गिरफ्तारी की तिथि से बिना किसी देरी के दायर की जाए।
- क्षतिपूर्ति की गणना करने के लिये राज्य सरकारें शारीरिक चोट, मनोवैज्ञानिक चोट और रोज़गार तथा शिक्षा के अवसरों की हानि सहित आय की हानि एवं विधिक और चिकित्सा व्यय के कारण होने वाले व्यय को ध्यान में रखेंगी।
- लिंचिंग और भीड़ द्वारा हिंसा के मामलों की सुनवाई प्रत्येक जिले में इस प्रयोजन के लिये निर्धारित नामित अदालत/फास्ट ट्रैक न्यायालयों द्वारा की जाएगी।
- निवारण सुनिश्चित करने तथा उदाहरण स्थापित करने के लिये, ट्रायल कोर्ट को सामान्यतः भारतीय दण्ड संहिता के प्रावधानों के अधीन विभिन्न अपराधों के लिये निर्धारित अधिकतम दण्ड देना चाहिये।
- भीड़ द्वारा हिंसा और लिंचिंग के मामलों में पीड़ित या मृतक के निकटतम संबंधी को मुफ्त विधिक सहायता मिलेगी, यदि वह ऐसा चाहे तथा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत विधिक सहायता पैनल में नामांकित व्यक्तियों में से अपनी पसंद का कोई अधिवक्ता नियुक्त कर सकता है।
- इस मामले में सरकार को नोडल अधिकारियों को निर्देश/परामर्श जारी करने का निर्देश दिया गया।
- इसके बाद शहजाद पूनावाला द्वारा एक निजी विधेयक भी पेश किया गया, जिसका शीर्षक था मॉब लिंचिंग से सुरक्षा विधेयक।
इस प्रावधान में कमियाँ:
- इसमें 'धर्म' शब्द का उल्लेख नहीं है और इसलिये धार्मिक आधार पर प्रेरित भीड़ द्वारा हत्या को स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं दी गई है।
- यह घृणा अपराध से संबंधित अन्य धाराओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण है, जैसे हिंसा भड़काना और सामाजिक-सांस्कृतिक समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना, जहाँ धर्म के आधार पर किये गए किसी भी कृत्य को अपराध माना गया है।
- हिंसा भड़काने और शत्रुता को बढ़ावा देने के विरुद्ध धाराएँ उन लोगों को दण्डित करती हैं, जो “धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास, भाषा, जाति या समुदाय या किसी भी अन्य आधार पर, विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच वैमनस्य या शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावनाओं को बढ़ावा देते हैं”।
- झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आनंद सेन और न्यायमूर्ति सुभाष चंद की खंडपीठ ने धारा 103(2) में एक बड़ी विसंगति का स्वत: संज्ञान लिया, जहाँ “किसी अन्य समान आधार” के स्थान पर “किसी अन्य आधार” वाक्यांश मुद्रित किया गया था।
- न्यायालय के अनुसार, ऐसी चूक से विधि की व्याख्या एवं अनुप्रयोग पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- न्यायालय ने प्रकाशक को बिना किसी देरी के इस त्रुटि को सुधारने का निर्देश दिया।
निष्कर्ष:
मॉब लिंचिंग एक ऐसा अपराध है जो IPC में नहीं था। यह BNS के अधीन लाया गया एक नया अपराध है। वास्तव में, हमारे समाज में ऐसी घटनाओं को देखते हुए इस तरह के अपराध को लाने की आवश्यकता थी। हालाँकि ऐसी घटनाओं को रोकने में यह विधान कितना प्रभावी सिद्ध होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।