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आपराधिक कानून
भारतीय न्याय संहिता के अधीन मिथ्या साक्ष्य से संबंधित अपराध
«17-Apr-2025
परिचय
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अध्याय 14 में झूठे साक्ष्य से संबंधित अपराधों के लिये उपबंध किया गया है।
- भारतीय न्याय संहिता की धारा 227 से 248 तक मिथ्या साक्ष्य से संबंधित अपराधों के लिये उपबंध है।
धारा 227: मिथ्या साक्ष्य देना
- यह धारा मिथ्या साक्ष्य को ऐसे कथन के रूप में परिभाषित करती है जो सत्य कथन करने के लिये विधि द्वारा आबद्ध होते हुए मिथ्या है।
- व्यक्ति को या तो यह ज्ञान होना चाहिये कि कथन मिथ्या है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है।
- मिथ्या साक्ष्य मौखिक रूप से या किसी अन्य रूप में किया जा सकता है।
- कोई व्यक्ति यह कहने से कि उसे उस बात का विश्वास है, जिस बात का उसे विश्वास नहीं है, तथा यह कहने से कि वह उस बात को जानता है जिस बात को वह नहीं जानता, मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी हो सकेगा।
धारा 228: मिथ्या साक्ष्य गढ़ना
- इसमें परिस्थितियाँ निर्मित करना, अभिलेखों में मिथ्या प्रविष्टियाँ करना, या गलत विवरण वाले दस्तावेज़ रचना सम्मिलित है।
- आशय यह होना चाहिये कि ऐसे मिथ्या कथन न्यायिक या विधिक कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में सामने आएं।
- इसका उद्देश्य साक्ष्य का मूल्यांकन करने वाले व्यक्ति को किसी महत्त्वपूर्ण बिंदु पर मिथ्या राय बनाने के लिये प्रेरित करना होना चाहिये।
धारा 229: मिथ्या साक्ष्य के लिये दण्ड
- उपधारा (1): न्यायिक कार्यवाही में मिथ्या साक्ष्य देने पर सात वर्ष तक का कारावास और दस हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
- उपधारा (2): अन्य मामलों में मिथ्या साक्ष्य के लिये तीन वर्ष तक का कारावास और पाँच हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
- सेना न्यायालय के समक्ष विचारण को न्यायिक कार्यवाही माना जाता है।
- न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारंभ होने से पूर्व, जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण को न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम माना जाता है।
- न्यायालय के प्राधिकार के अधीन न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण को भी न्यायिक कार्यवाही का प्रक्रम माना जाता है।
धारा 230: मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिये दोषसिद्धि कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना
- उपधारा (1): कोई व्यक्ति जो किसी व्यक्ति को मृत्युदण्ड संबंधी अपराध के लिये दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देता है या गढ़ता है, उसे आजीवन कारावास या दस वर्ष तक के सश्रम कारावास और पचास हजार रुपए तक के जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।
- उपधारा (2): यदि किसी निर्दोष व्यक्ति को ऐसे मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप दोषसिद्ध किया जाता है और उसे मृत्युदण्ड दिया जाता है, तो मिथ्या साक्ष्य देने वाले व्यक्ति को या तो मृत्युदण्ड या उपधारा (1) में निर्दिष्ट दण्ड से दण्डित किया जाएगा।
धारा 231: आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय अपराध के लिये दोषसिद्धि कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना
- यह धारा ऐसे मिथ्या साक्ष्यों पर लागू होती है, जिनका उद्देश्य ऐसे अपराधों में दोषसिद्धि कराना होता है जो मृत्युदण्ड योग्य न होकर, आजीवन कारावास या सात वर्ष अथवा उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय हो।
- यदि मिथ्या रूप से अभियुक्त व्यक्ति उस अपराध में दोषसिद्ध होता, तो उसे जो दण्ड प्राप्त होता, वही दण्ड मिथ्या साक्ष्य देने वाले व्यक्ति को भी दिया जाएगा।
धारा 232: किसी व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य देने के लिये धमकाना
- उपधारा (1): जो कोई किसी अन्य व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य देने के आशय से उसके शरीर, ख्याति या संपत्ति को क्षति कारित करने की धमकी देता है, उसे सात वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
- उपधारा (2): यदि ऐसी धमकीपूर्ण मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप कोई निर्दोष व्यक्ति दोषसिद्ध होकर मृत्युदण्ड या सात वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डित होता है, तो धमकी देने वाले व्यक्ति को भी उसी दण्ड से दण्डित किया जाएगा और उसी रीति में और उसी सीमा तक दण्डादिष्ट किया जाएगा, जैसे निर्दोष व्यक्ति दण्डित और दण्डादिष्ट किया गया है।
धारा 233: उस साक्ष्य को काम में लाना, जिसका मिथ्या होना ज्ञात है
- जो कोई भी किसी साक्ष्य को, जिसका मिथ्या होना या या गढ़ा होना वह जानता है, सत्य या असली साक्ष्य के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो या गढ़ा हो।
धारा 234: मिथ्या प्रमाणपत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना
- जो कोई विधि द्वारा अपेक्षित किसी प्रमाणपत्र को जारी करता है या उस पर हस्ताक्षर करता है, यह जानते हुए या विश्वास करते हुए कि वह किसी भी महत्त्वपूर्ण बिंदु पर मिथ्या है, उसे उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।
- यह उन प्रमाणपत्रों पर लागू होता है जो विधिक रूप से साक्ष्य के रूप में ग्राह्य हैं या विधि द्वारा अपेक्षित हैं।
धारा 235: प्रमाणपत्र को, जिसका मिथ्या होना ज्ञात है, सत्य के रूप में काम में लाना कोई भी व्यक्ति जो किसी प्रमाण-पत्र को किसी भी महत्त्वपूर्ण बिंदु पर मिथ्या जानते हुए भी भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, उसे ऐसे दण्डित किया जाएगा, मानो कि उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।
धारा 236: ऐसी घोषणा में, जो साक्ष्य के रूप में विधि द्वारा ले जा सके, किया गया मिथ्या कथन
- यह धारा उन घोषणाओं पर लागू होती है जिन्हें न्यायालय, लोक सेवक या अन्य लोग साक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के लिये विधिक रूप से अधिकृत हैं।
- यदि कोई व्यक्ति ऐसी घोषणा में किसी भी महत्त्वपूर्ण बिंदु पर मिथ्या साक्ष्य देता है, यह जानते हुए कि वह मिथ्या है या उसे सत्य मानने में विश्वास नहीं करता है, तो उसे उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो कि उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।
धारा 237: ऐसी घोषणा का मिथ्या होना जानते हुए, उसे सत्य के रूप में काम में लाना
- जो कोई किसी घोषणा को, किसी भी महत्त्वपूर्ण बिंदु पर मिथ्या जानते हुए भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, उसे उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो कि उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।
- केवल अनौपचारिकता के कारण अग्राह्य कोई घोषणा भी धारा 236 और 237 के अर्थ के अंतर्गत आती है।
धारा 238: अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिये मिथ्या इत्तिला देना
- यह उन सभी लोगों पर लागू होता है जो यह जानते हुए भी कि कोई अपराध किया गया है, या तो साक्ष्य का विलोप कर देते हैं या अपराधी को बचाने के लिये गलत इत्तिला देते हैं।
- दण्ड, अपराध की गंभीरता के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है:
- गंभीर अपराधों के लिये: सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना।
- आजीवन कारावास या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय अपराधों के लिये: तीन वर्ष तक का कारावास और जुर्माना।
- अन्य अपराधों के लिये: मूल अपराध के लिये उपबंधित दीर्घतम अवधि के एक-चौथाई तक कारावास, या जुर्माना, या दोनों।
धारा 239: इत्तिला देने के लिये आबद्ध व्यक्ति द्वारा अपराध की इत्तिला देने का जानबूझकर लोप
- जो कोई जानबूझकर किसी अपराध के बारे में इत्तिला देने लोप करता है, जिसकी इत्तिला देने के लिये वह विधिक रूप से आबद्ध है, उसे छह मास तक के कारावास या पाँच हजार रुपए तक के जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
धारा 240: किये गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना
- जो कोई किसी अपराध के बारे में मिथ्या इत्तिला देगा, उसे दो वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
- स्पष्टीकरण में स्पष्ट किया गया है कि धारा 238, 239 और 240 में "अपराध" में भारत के बाहर किये गए कुछ कार्य सम्मिलित हैं, जो भारत में किये जाने पर निर्दिष्ट धाराओं के अंतर्गत दण्डनीय होंगे।
धारा 241: साक्ष्य के रूप में किसी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख का पेश किया जाना निवारित करने के लिये उसकों नष्ट करना
- यह धारा ऐसे किसी भी व्यक्ति पर लागू होती है जो किसी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को छिपाता है, नष्ट करता है, मिटाता है या उसे अवैध बनाता है, जिसे प्रस्तुत करने के लिये उसे विधिक रूप से आबद्ध किया जा सकता है।
- यह कार्य इस आशय से किया जाना चाहिये कि दस्तावेज़ को न्यायालय में या किसी लोक सेवक के समक्ष साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत या प्रयोग होने से रोका जा सके।
- इसके लिये दण्ड तीन वर्ष तक कारावास या पाँच हजार रुपए तक जुर्माना या दोनों है।
धारा 242: वाद या अभियोजन में किसी कार्य या कार्यवाही के प्रयोजन से मिथ्या प्रतिरूपण
- जो कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का मिथ्या प्रतिरूपण करता है और उस कल्पित चरित्र में संस्वीकृति करता है, कथन करता है, दावे की संस्वीकृति करता है, आदेशिका निकलवाता, जमानतदार या प्रतिभू बन जाता है, या किसी वाद में या आपराधिक अभियोजन में कोई अन्य कार्य करता है।
- इसके लिये दण्ड तीन वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों है।
धारा 243: संपत्ति को समपहरण किये जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किये जाने से निवारित करने के लिये उसे कपटपूर्वक हटाना या छिपाना
- यह धारा किसी संपत्ति के समपहरण के रूप में या जुर्माने या न्यायालय आदेश की संतुष्टि के लिये कपटपूर्वक हटाने, छिपाने, अंतरित करने या सौंपने पर रोक लगाती
- यह निषेध ऐसे संपत्ति पर लागू होता है जो वर्तमान या संभावित न्यायालय के निर्णय, डिक्री या आदेश के अधीन हो।
- इसके लिये दण्ड तीन वर्ष तक कारावास या पाँच हजार रुपए तक जुर्माना या दोनों है।
धारा 244: संपत्ति पर उसके समपहरण किये जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किये जाने से निवारित करने के लिये कपटपूर्वक दावा
- यह उन सभी पर लागू होता है जो कपटपूर्वक संपत्ति प्रतिगृहीत करता हैं, प्राप्त करता हैं या दावा करते हैं, यह जानते हुए कि उनका उस पर कोई अधिकार नहीं है।
- यह उपबंध उस कपट को भी सम्मिलित करता है जो संपत्ति के अधिकारों के संबंध में इस उद्देश्य से किया जाता है कि संपत्ति के समपहरण या न्यायालय की डिक्री के निष्पादन में कब्जे को रोका जा सके।
- इसके लिये दण्ड दो वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों है।
धारा 245: ऐसी राशि के लिये, जो शोध्य नहीं है, कपटपूर्वक डिक्री होने देना सहन करना
- इसमें किसी ऐसी राशि के लिये, जो बकाया नहीं है, या बकाया राशि से अधिक राशि के लिये, या ऐसी संपत्ति के लिये, जिस पर दूसरा पक्षकार हकदार नहीं है, स्वयं के विरुद्ध कपटपूर्वक डिक्री पारित करवाना या पारित होने देना सम्मिलित है।
- इसमें आदेश पारित होने के पश्चात् कपटपूर्वक आदेश का निष्पादन भी सम्मिलित है।
- इसके लिये दण्ड दो वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों है।
धारा 246: बेईमानी से न्यायालय में मिथ्या दावा करना
- यह धारा ऐसे किसी भी व्यक्ति पर लागू होती है जो कपटपूर्वक, बेईमानी से, या किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने या क्षोभ कारित करने के आशय से, यह जानते हुए भी कि यह मिथ्या है, न्यायालय में दावा करता है।
- इसके लिये दण्ड दो वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों है।
धारा 247: ऐसी राशि के लिये, जो शोध्य नहीं है, कपटपूर्वक डिक्री अभिप्राप्त करना
- इसमें किसी व्यक्ति के विरुद्ध किसी बकाया राशि, बकाया राशि से अधिक राशि, या ऐसी संपत्ति के लिये, जिसका वह हकदार नहीं है, कपटपूर्वक डिक्री या आदेश प्राप्त करना सम्मिलित है।
- इसमें किसी तुष्टि की गई डिक्री को कपटपूर्वक निष्पादित कराना, या किसी के नाम पर ऐसे कार्य करने की अनुमति देना भी सम्मिलित है।
- इसके लिये दण्ड दो वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों है।
धारा 248: क्षति कारित करने आशय से अपराध का मिथ्या आरोप
- यह उन सभी लोगों पर लागू होता है जो किसी अन्य व्यक्ति को क्षति कारित करने आशय से उसके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही प्रारंभ करते हैं या उस पर कोई मिथ्या आरोप लगाते हैं।
- अभियुक्त को यह ज्ञात होना चाहिये कि ऐसी कार्यवाही या आरोप के लिये कोई न्यायसांगत या वैध आधार नहीं है।
- मिथ्या आरोप की गंभीरता के अनुसार दण्ड भिन्न-भिन्न होता है:
- उपधारा (क): सामान्य मिथ्या आरोपों के लिये: पाँच वर्ष तक का कारावास, या दो लाख रुपए तक का जुर्माना, या दोनों।
- उपधारा (ख): मृत्यु, आजीवन कारावास, या दस वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय अपराधों के मिथ्या आरोपों के लिये: किसी भी प्रकार का कारावास (विशिष्ट अवधि का उल्लेख दिये गए पाठ में नहीं किया गया है)।
निष्कर्ष
भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अध्याय 14 (धारा 227-248) के उपबंध मिथ्या साक्ष्य और कपटपूर्ण विधिक प्रथाओं के विभिन्न रूपों को आपराधिक बनाकर न्यायिक प्रणाली की अखंडता को बनाए रखने के लिये एक व्यापक ढाँचा स्थापित करते हैं। ये उपबंध अपराधों की गंभीरता और परिणामों के अनुपात में क्रमिक दण्ड के माध्यम से विधिक कार्यवाही में सत्य और न्याय सुनिश्चित करने के लिये विधि की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं।