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सिविल कानून
पट्टा एवं अनुज्ञप्ति
« »01-May-2024
परिचय:
संपत्ति में अधिकार सामान्य तौर पर ऐसी संपत्ति के विक्रय के माध्यम से बनाया जाता है। हालाँकि, पट्टा एवं अनुज्ञप्ति, इस नियम के अपवाद हैं, जहाँ अचल संपत्ति को विक्रय किये बिना, उस पर अधिकार प्राप्त किया जाता है।
पट्टा:
- संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 105 पट्टे को परिभाषित करती है।
- इसमें कहा गया है कि अचल संपत्ति का पट्टा, ऐसी संपत्ति का उपयोग करने के अधिकार का अंतरण है, जो एक निश्चित समय के लिये, व्यक्त या निहित, या शाश्वत रूप से, भुगतान की गई या वचनबद्ध किया गया मूल्य, या धन, फसलों का एक हिस्सा के आधार पर किया जाता है। सेवा या कोई अन्य मूल्यवान वस्तु, जो समय-समय पर या निर्दिष्ट अवसरों पर अंतरिती द्वारा अंतरणकर्त्ता को प्रदान की जाती है, जो ऐसी शर्तों पर अंतरण स्वीकार करता है।
अनुज्ञप्ति:
- भारतीय सुखाचार अधिनियम, 1882 की धारा 52 के अनुसार, जहाँ एक व्यक्ति एक या एक से अधिक व्यक्तियों को किसी निश्चित अचल संपत्ति में या उस पर कुछ करने का अधिकार देता है, जो ऐसे अधिकार के अभाव में, अविधिक होगा तथा ऐसा अधिकार यह सुख सुविधा या संपत्ति में हित के बराबर नहीं है, इस प्रकार बनाए गए अधिकार को अनुज्ञप्ति कहा जाता है।
निर्धारण के लिये कारक:
- यह निर्धारित करते समय कि कोई पट्टा या अनुज्ञप्ति है या नहीं, निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिये:
- विशिष्ट कब्ज़ा, अपने आप में एक पट्टे का संकेत है, हालाँकि ऐसा कब्ज़ा कुछ आरक्षण के अधीन हो सकता है।
- क्या करार में वे शर्तें निहित हैं, जो आमतौर पर पट्टे में पाई जाती हैं।
- लेन-देन का वर्णन करने के लिये पक्षकारों द्वारा वास्तव में उपयोग की जाने वाली अभिव्यक्ति।
- पक्षकारों के मध्य कुछ विशेष संबंधों का अस्तित्त्व का होना।
- अपने स्वामी के परिसर पर रहने वाला नौकर, एक किरायेदार या अनुज्ञप्तिधारी हो सकता है।
- परिसर पर मालिक द्वारा प्रयोग किये जाने वाले नियंत्रण की डिग्री।
- लेन-देन के आस-पास औपचारिकता की डिग्री, जितनी अधिक औपचारिकता, उतनी ही अधिक किरायेदारी का अनुमान।
पट्टा एवं अनुज्ञप्ति के मध्य अंतर:
पट्टा |
अनुज्ञप्ति |
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