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सिविल कानून

स्थावर संपत्ति की बिक्री

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 04-Dec-2023

परिचय:

बिक्री स्थावर संपत्ति से संबंधित कोई भी लेन-देन है जो दो या दो से अधिक जीवित पक्षों के बीच होता है। संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act- TPA) के अध्याय–III में निहित धारा–54 बिक्री की अवधारणा से संबंधित है।

बिक्री की परिभाषा:

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा–54 में बिक्री को भुगतान की गई या वादा किये गए मूल्य या उस मूल्य का कोई भाग, जिसे दे दिया गया हो या देने का वचन दिया गया हो, के बदले स्वामित्व के अंतरण के रूप में परिभाषित किया गया है।

बिक्री का पंजीकरण:

  • धारा–54 के अनुसार, एक सौ रुपए या उससे अधिक मूल्य की मूर्त स्थावर संपत्ति के मामले में या प्रत्यावर्तन या अन्य अमूर्त वस्तु के मामले में, ऐसा अंतरण केवल एक पंजीकृत दस्तावेज़ द्वारा ही किया जा सकता है।
  • एक सौ रुपए से कम मूल्य की मूर्त स्थावर संपत्ति के मामले में, ऐसा अंतरण या तो एक पंजीकृत दस्तावेज़ द्वारा या संपत्ति की डिलीवरी द्वारा किया जा सकता है।
  • मूर्त स्थावर संपत्ति की डिलीवरी तब होती है जब विक्रेता, क्रेता या ऐसे व्यक्ति, जिसे वह निर्देशित करता है, की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेता है।

बिक्री हेतु अनुबंध:

  • स्थावर संपत्ति की बिक्री के लिये किया गया अनुबंध एक ऐसा अनुबंध है जो ऐसी संपत्ति के बिक्री पक्षों के बीच तय शर्तों के आधार पर होता है।
  • यह, अपने आप में, ऐसी संपत्ति में कोई हित प्रदान नहीं करता है या उस पर कोई शुल्क नहीं लगाता है।

बिक्री और बिक्री के अनुबंध के बीच अंतर:

बिक्री

बिक्री के अनुबंध

  • यह स्वामित्व का अंतरण है।
  • यह महज़ एक समझौता है।
  • यह क्रेता को पूर्ण हित प्रदान करता है।
  • इससे ऐसा कोई हित प्राप्त नहीं होता है।
  • यह रेम में एक अधिकार(किसी विशिष्ट संपत्ति से संबंधित) बनाता है।
  • यह व्यक्तिबंधी अधिकार बनाता है।
  • इसे एक पंजीकृत दस्तावेज़ द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिये।
  • इसे बिल्कुल भी पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं है।

वैध बिक्री की अनिवार्यताएँ:

  • बिक्री के पक्ष: बिक्री में, कम-से-कम दो पक्ष होने चाहिये। जो व्यक्ति अपनी संपत्ति अंतरित करता है, उसे अंतरणकर्त्ता/विक्रेता के रूप में जाना जाता है और जिस व्यक्ति को संपत्ति अंतरित की जाती है, उसे अंतरिती/क्रेता/विक्रेता के रूप में जाना जाता है।
  • योग्यता: वैध बिक्री के लिये क्रेता और विक्रेता दोनों को बिक्री की तिथि पर सक्षम होना होगा:
    • विक्रेता के पास उस संपत्ति का स्वामित्व होना चाहिये जिसे वह बेचने जा रहा है।
    • विक्रेता के पास इसका विधिक स्वामित्व होना चाहिये, तभी वह संपत्ति बेच सकता है।
    • विक्रेता अवयस्क नहीं होना चाहिये।
    • विक्रेता विकृत चित्त वाला नहीं होना चाहिये।
    • विक्रेता वैधानिक रूप से अक्षम नहीं होना चाहिये।
    • क्रेता को संपत्ति का स्वामित्व लेने के लिये सक्षम होना चाहिये।
    • बिक्री के समय लागू किसी भी विधि द्वारा क्रेता को स्थावर संपत्ति खरीदने से अयोग्य नहीं ठहराया जाना चाहिये।
  • बिक्री का विषय: यह विशेष रूप से स्थावर संपत्ति की बिक्री से संबंधित है। स्थावर संपत्ति (Immovable Property) मूर्त या अमूर्त हो सकती है।
    • मूर्त संपत्ति वह है जिसे स्पर्श किया जा सकता है, जैसे कि भूमि, घर, वृक्ष, भूमि से जुड़ी चीज़ें आदि, जबकि अमूर्त संपत्ति का तात्पर्य ऐसी संपत्ति से है जिसे स्पर्श नहीं किया जा सकता है, जैसे– नौका का अधिकार (Right of Ferry), गिरवी रखने का अधिकार (Right to Mortgage), मत्स्य पालन का अधिकार (Right of Fishery) आदि।
  • कीमत या प्रतिफल: कीमत बिक्री का एक अनिवार्य तत्त्व है। बिक्री के अनुबंध के समय, एक कीमत सुनिश्चित की जानी चाहिये जिस पर संपत्ति अंतरित की जा रही है।
    • कीमत का भुगतान बिक्री के समय या बिक्री से पूर्व या बिक्री के बाद किया जा सकता है। इसका भुगतान एकमुश्त या आंशिक रूप से किया जा सकता है।
  • संवहन: धारा–54 संपत्ति के अंतरण के लिये दो तरीके प्रदान करती है–
    • कब्ज़े की सुपुर्दगी, तथा
    • विक्रय विलेख का पंजीकरण