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आपराधिक कानून
कल्याण कुमार गोगोई बनाम आशुतोष अग्निहोत्री और अन्य AIR 2011 SC 760
« »21-Aug-2024
परिचय
वर्तमान मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपीलकर्त्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य अर्थात् अनुश्रुत साक्ष्य की आलोचना की।
तथ्य
- असम राज्य विधान सभा निर्वाचन के लिये योग्य उम्मीदवारों से नामांकन आमंत्रित करते हुए एक नोटिस प्रकाशित किया गया।
- अपीलकर्त्ता ने असम राज्य विधान सभा निर्वाचन के लिये अपना नामांकन पत्र दाखिल किया।
- प्रतिवादी संख्या 2 ने उक्त निर्वाचन क्षेत्र के लिये भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया।
- रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा नामांकन को वैध घोषित किया गया।
- मतदान की तिथि को अधिसूचित विद्यालय में अधिसूचित मतदान केंद्र स्थापित नहीं किया गया था, बल्कि इसके स्थान पर मतदान किसी अन्य विद्यालय में कराया गया था।
- जिसके कारण मतदाताओं में भ्रम और अराजकता की स्थिति उत्पन्न हुई तथा कई मतदाता बिना वोट दिये ही लौट गए।
- अपीलकर्त्ता द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद मतदान को अधिसूचित मतदान केंद्र पर स्थानांतरित कर दिया गया।
- जब मतों की गिनती हुई तो अपीलकर्त्ता और प्रतिवादी संख्या 2 के बीच 175 मतों का अंतर था तथा प्रतिवादी संख्या 2 ने चुनाव जीत लिया।
- अपीलकर्त्ता ने मतदान केंद्र पर पुनर्मतदान की मांग करते हुए रिटर्निंग ऑफिसर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई।
- आयुक्त एवं ज़िला निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि मतदान केंद्र के संचालन से संबंधित समस्या का समाधान मतदान के दिन ही निर्वाचन पर्यवेक्षक के मार्गदर्शन में निर्वाचन क्षेत्र के ज़ोनल अधिकारी, सेक्टर अधिकारी, मजिस्ट्रेट एवं मतदान एजेंटों की उपस्थिति में तत्काल कर दिया गया।
- निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया।
- इसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।
शामिल मुद्दे
- क्या गैर-अधिसूचित स्थान पर मतदान और मतदान के समय में कटौती से निर्वाचन के परिणाम पर वास्तविक प्रभाव पड़ा?
टिप्पणी
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भारत में सभी मतदाता हमेशा मतदान के लिये नहीं जाते हैं और निर्वाचन में वोट करना विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है तथा किसी के लिये भी यह पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है कि कितने या किस अनुपात में वोट किसी उम्मीदवार को जाएंगे।
- वर्तमान मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपीलकर्त्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य अर्थात् अनुश्रुत साक्ष्य की आलोचना की।
- साक्ष्य अधिनियम में "अनुश्रुत साक्ष्य" वाक्यांश का प्रयोग नहीं किया गया है, क्योंकि यह गलत और अस्पष्ट है।
- भारतीय विधि के तहत साक्ष्य का यह एक बुनियादी नियम होता है कि अनुश्रुत साक्ष्य को स्वीकार नहीं किया जाता है।
- इस तरह के साक्ष्य की जिरह करके जाँच नहीं की जा सकती है और कई मामलों में यह माना जाता है कि किसी विशेष मामले में कुछ बेहतर गवाही दी जानी चाहिये, जो इसे बाहर करने का एकमात्र आधार नहीं है।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्त्ता द्वारा दिया गया तर्क कि मतदान स्थल में परिवर्तन के कारण उत्पन्न भ्रम के कारण 200 या 300 लोग वापस लौट गए, अस्पष्ट और बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया था तथा उसके द्वारा प्रस्तुत गवाहों ने प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं, बल्कि अनुश्रुत साक्ष्य दिये थे।
- उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिनियम की धारा 25 और 56 तथा निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 के नियम 15 के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया, लेकिन यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अनुपालन न किये जाने से निर्वाचन के परिणाम पर किसी भी तरह का प्रभाव पड़ा।
निष्कर्ष
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय की पुष्टि की तथा वर्तमान अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अपीलकर्त्ता अपने तर्कों को उचित संदेह से परे साबित करने में असफल रहा एवं उसके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य स्वीकार्य नहीं थे।