शेख तस्लीम शेख हकीम बनाम महाराष्ट्र राज्य
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पारिवारिक कानून

शेख तस्लीम शेख हकीम बनाम महाराष्ट्र राज्य

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 18-Jul-2024

परिचय:

यह मामला मुस्लिम विवाह के मामले में आपसी सहमति से तलाक की स्थिति से संबंधित है।

तथ्य:

  • वादी ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 498 (A), धारा 323, धारा 504, धारा 506 के अधीन उसके विरुद्ध दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) और न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष लंबित आरोप-पत्र को रद्द करने के लिये बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया क्योंकि मामला सौहार्दपूर्ण तरीके से हल हो गया था।
  • वादी ने यह भी कहा कि दोनों पक्षों ने कुटुंब न्यायालय के समक्ष तलाक के लिये आपसी सहमति व्यक्त कर दी है।
  • वादी ने भरण-पोषण राशि के रूप में 5 लाख रुपए का भुगतान किया है, जिस पर प्रतिवादी भी सहमत हो गई है।
  • प्रतिवादी ने भी उत्तर में सहमति शपथ-पत्र दायर किया और अपनी भरण-पोषण राशि की पुष्टि की।
  • प्रतिवादी ने वादी के विरुद्ध दायर आपराधिक शिकायत को वापस लेने के लिये भी आवेदन किया तथा कहा कि वह वादी के विरुद्ध आगे कोई आपराधिक कार्यवाही नहीं चाहती है।
  • पारिवारिक न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया और पुष्टि की कि पक्षकार अब पति-पत्नी नहीं हैं, क्योंकि वे तलाक लेने के लिये पारस्परिक रूप से सहमत हो गए हैं तथा साथ ही, श्रीमती जोहरा खातून बनाम मोहम्मद इब्राहिम (1981) के मामले को लागू कर पक्षों के बीच अन्य समझौतों को भी वैध ठहराया, जहाँ न्यायालय के बाहर पारस्परिक सहमति से की गई शादी को वैध माना गया था एवं इस तरह के तलाक को मुस्लिम विधि के अंतर्गत 'मुबारात' कहा जाता है।

शामिल मुद्दे:

  • क्या मुस्लिम विधि के अंतर्गत पारस्परिक सहमति से लिये गए तलाक को मान्यता दी गई है?

 टिप्पणियाँ:

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 के अनुसार, ऐसे मामलों में निर्णय का नियम, जहाँ पक्षकार मुस्लिम हैं, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के प्रावधानों के अनुसार माना जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 7 के अनुसार, विवाह की वैधता या किसी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति की घोषणा भी कुटुंब न्यायालय के समक्ष विषय-वस्तु के रूप में ली जा सकती है।
  • उच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि विधि का निर्धारण और उसे लागू करने में कुटुंब न्यायालय का निर्णय सही था तथा तलाक के लिये पारस्परिक रूप से सहमत पक्षों की स्थिति (मुबारात) का निर्धारण भी कुटुंब न्यायालय द्वारा उचित ढंग से किया गया था।

निष्कर्ष:

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि मुस्लिम विधि और संदर्भित मामलों के आधार पर दोनों पक्ष अब विवाहित नहीं हैं, अतः उसने याचिका को अस्वीकार करने की अनुमति दे दी।